हिंदु रहना जातिवादी रहना नहीं है !

वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी, कलियुग वर्ष ५११६

हिंदुओंको स्वयंको हिंदु कहलवा लेना ही लज्जाजनक प्रतीत होने लगा है !


देशमें हिंदुओंको जातिवादी कहनेकी एक प्रथा ही चालू हो गई है । इसलिए हिंदुओंको स्वयंको हिंदु कहलवा लेना ही लज्जाजनक प्रतीत होने लगा है । अतः किसीने यदि हिंदुत्वकी घोषणा की, तो उसे धर्मांध, भगवा आतंकवादी इस प्रकारके लेबल लगाए जाते हैं । हिंदुओंको इस स्थितिसे बाहर निकालकर हिंदुत्वका उद्घोष अधिक तीव्रतासे करनेकी आवश्यकता है । इस विषयपर आगे दिए लेखमें चर्चा की गई है ।

१. इतिहाससे सीख न लेनेवाले भारतीय

हिंदुत्व भारतियोंका प्राण है । केवल इस प्रमुख कारणसे अपना देश अनेक युगोंसे टिका हुआ है । हिंदुओंमें अंतर रहनेमें ही उनके शत्रुओंका सुख है, जो अनेक बार दिखाई दिया है । हमारा इतिहास हमारे लिए अत्यंत कटू है; परंतु संक्षेपमें देखा जाय, तो हिंदुओंकी असफलता एवं पराजय आपसमें अंतर एवं दगाबाजीसे संबंधित हैं । यथा, अलेक्जांडरका विजय एवं अंभी राजासे आरंभ हुई यह शृंखला आगे जयचंद एवं घोरी, जगत शेठ एवं क्लाईव, राणी लक्ष्मीबाई एवं सिंधिया ऐसी चालू ही रही । यह सूची ऐसी ही आगे तक चालू रह सकती है । अपने देशका कामकाज कौनसी दिशामें चल रहा है ?, इस विषयमें अनेक चर्चा एवं वादविवादके कार्यक्रमोंमें न्यायनिवारण करनेपर भी अपने ऐतिहासिक कालसे चलती आई सफलतामें परिवर्तन होनेकी बात समझमें नहीं आती । इतना ही नहीं, अपितु हम इससे कोई सीख भी नहीं लेते ।

२. हिंदु बहुसंख्यक होनेकी वस्तुस्थिति प्रस्तुत करनेपर जातिवादीके रूपमे तिरस्कारित करना

वर्ष २०११ की जनगणनाके अनुसार भारतमें जनसंख्याका विभाजन ८०.५ प्रतिशत हिंदु, १३.४ प्रतिशत मुसलमान, २.३ प्रतिशत ईसाई, १.९ प्रतिशत सिक्ख, ०.८ प्रतिशत बौद्ध, ०.४ प्रतिशत जैन एवं ०.६ प्रतिशत अन्यधर्मीय इस प्रकार है । भारतके भूभागपर ८० प्रतिशत हिंदुओंका अधिवास है, यह वास्तविकता ध्यानमें लेकर जिस समय राष्ट्रीय स्तरकी चर्चामें स्पष्ट रूपसे ‘अपने देशका भवितव्य कैसे होना चाहिए,’ प्रस्तुत किया गया, उस समय स्वयंको गोबेलेजियन प्रवर्तक कहलानेवाले लोगोंने हिंदुओंको जातीवादीके रूपमें तिरस्कारित किया । इसके विरुद्ध कोई प्रभावी उपाय नहीं किया गया । इसालए ये प्रवर्तक अधिक सुदृढ हो गए ।

३. हिंदु रहना अव्यक्त ही रखनेका अर्थ

देशके संयुक्त पुरोगामी सरकारद्वारा पिछले दशकमें किए गए कर्तृत्वोंमे एक कर्तृत्व है, सरकारद्वारा अधिकांश हिंदुओंके साथ पूर्णत: पक्षपात करना । हिंदु रहना अपराध समझकर उनपर दबावतंत्रका उपयोग किया गया । हिंदुओंके सामाजिक बहुमानपर आंच लाई गई तथा ऐसे प्रयास किए गए कि वे हिंदु हैं, यह बात समाजमें घोषित करनेका हिंदुओंको साहस न हो । हिंदु रहना केवल अव्यक्त ही रहना चाहिए, क्योंकि यह उजागरीसे स्पष्ट करना जातीवादी होनेके समान ही है, ऐसा केंद्रकी संयुक्त पुरोगामी सरकारका अलिखित नियम है । यह नियम षडयंत्रद्वारा हिंदुओंमें बोया जा रहा है । कहनेको अत्यंत दु:ख प्रतीत होता है कि एक कार्यक्रममें एक अत्यंत विख्यात व्यक्तिको उसका धर्म कौनसा ?, ऐसा पूछनेपर उस व्यक्तिको अजिबसा लगा एवं उसका चेहरा ही निस्तेज हो गया । उसे इसका उत्तर देनेका साहस नहीं हुआ । उनके नामसे केवल धर्म ही नहीं, अपितु वे कौनसे प्रदेशसे आए, यह भी समझमें आ गया था । उनपर क्षणभरमें हिंदुके रूपमें जातिवादका सिक्का लगेगा इस भयसे उत्पन्न विकृत मनस्थितिका निश्चित रूपसे यह परिणाम था ।

४. हिंदुओंपर पिछले इतिहासका लांछन

संयुक्त पुरोगामी सरकारकी नीति धूर्त एवं कठोर थी । हिंदु अर्थात एक गुट अथवा जाती अथवा आपको जिस नामसे पुकारनेकी चाह हो वह नाम । जो सिंधू नदीके उस पार भूभागमें निवास करते हैं तथा जिन्हें अपनी मातृभूमिका हिंदुकुश पर्वत एवं सिंध प्रांतके सागरसे नीचे उतरे मुसलमान आक्रमकोंसे बचाव करना संभव नहीं हुआ, वे हिंदु । इस पराजयका आघात एवं उसका लांछन अब तक भी हिंदुओंके अंतःकरणमें अंदरतक जमा हुआ है । वे पराजित हुए, उन्होंने राज्य गंवाया । मृत्यु, विध्वंस एवं लूटका सामना किया । लगभग ५०० वर्ष विदेशी आक्रमकोंकी जनताके (प्रजा) रूपमें रहे ।

५. हिंदुओंपर विदेशियोंका धार्मिक वर्चस्व

यह ध्यानमें लेना आवश्यक है कि विदेशियोंका ये केवल राजनीतिक नहीं, अपितु धार्मिक वर्चस्व होनेके कारण ही भारतमें मुसलमान राज्यकी नींव रखी गई । इतिहासका यह भार अपने सभीके मनके अंदरतक संग्रहित है, जो निरंतर हमें इस बातका स्मरण करवाता है कि विदेशी विजेताओंकी दृष्टिमें भारत पराजितोंका देश था । वर्तमानमें भी किसी भी चर्चामें इस विषयको दबा दिया जाता है, उसपर मौन रखा जाता है; परंतु यह बात प्रत्येक व्यक्तिके अंतर्मनको व्यथित करती है । स्वतंत्र भारतमें रहनेकी इच्छा रखनेवाले मुसलमानोंसे संबंध विकसित करनेसे प्रतिबंधित किया जा रहा है । हिंदुओंको यदि देशका भवितव्य सुरक्षित एवं सर्वसमावेशक करना है, तो उन्हें यह शर्तें स्वीकार करनी पडेंगी । इतिहासके विषयमें अत्यंत खुले मनसे, प्रगल्भ तथा विश्वासपात्र संवाद कर यह उपाय ढूंढना चाहिए ।

६. भारतने इस्लामीकरणको विरोध क्यों किया ?

तब भी एक बडा अनुत्तरीत रहस्य शेष रहता ही है । अन्य देशोंमें मुसलमानोंद्वारा पराजित सभी लोगोंको इस्लाममें धर्मपरिवर्तित करते समय भारतने इस्लामीकरणको विरोध क्यों किया ? विजेताओंद्वारा अमानवीय अत्याचार, धार्मिक शुद्धिकरण, वंशहत्या, धर्मपरिवर्तन एवं जिजिया कर इत्यादि सभी उद्देश निष्प्रभ हुए एवं जनताका एक बडा गुट धर्मपरिवर्तित हुए बिना ही रह गया । वर्ष १९०१ की अखंड भारतकी जनगणनाके अनुसार भारतमें १९ करोड ४० लाख हिंदु थे । जिहादकी समस्यापर अनेक तत्त्व प्रस्तुत किए गए; परंतु मूल समस्यापर समाधान कोई नहीं ढूंढ सका । निश्चित रूपसे अपने देशमें राजनीतिक वर्चस्व होते हुए भी मध्ययुगीन जिहादके सभी तंत्र निष्प्रभ सिद्ध हुए । जिस समय विदेशी आक्रमक सत्तामें रहते हैं, उस समय ऐतिहासिक स्मृति, परंपरा एवं दंतकथाओंके माध्यमसे होनेवाली सांस्कृतिक उत्क्रांति न्यून होती है । स्थानीय लोगोंकी आस्था एवं धर्मके स्वयंस्फूर्त विकासको निश्चित कालावधिके उपरांत समाजद्वारा अस्वीकार प्रथाओंके रूपमें विराम दिया जाता है । इस्लामी कार्यकालका ह्रास समीप आया एवं इतिहासमें भारतपर बडा संकट आया । यह संकट इस प्रकार था कि समुद्रमार्गसे बडी संख्यामें आक्रमण- कारियोंका एक गुट आया एवं उसने भारतमें व्यापार कर राजनीतिक सत्ता स्थापित की ।

७. हिंदुओंको १९४७ के विभाजनकी वेदनाएं अब भी चुभती हैं !

स्थल एवं कालसे संपूर्ण रूपसे विसंगत पूर्व एवं पश्चिमके संस्कृतिका मंथन हुआ एवं परस्परविरोधी कल्पनाओंका संयोग हुआ, जिससे स्वातंत्र्य आंदोलन खडा हुआ । अपने देशमें लोकतंत्रकी कल्पना विदेशसे आयात हुई । लोकतंत्र अर्थात संख्या अतिप्राचीन कालावधिसे इस्लामी अमीर-उमरावशाही थी । वे स्वयंको भारतके सिंहासनका अधिकृत वारिस समझते थे । उनके समक्ष लोकतंत्र एवं उसकी संख्याका वैधानिक संकट आया । उनके पूर्वके तत्त्वोंको गौण स्थान मिलनेवाला था । कांग्रेस पक्ष मुस्लिम लीग पक्षसे समझौता करनेमें एवं देन-लेनमें असफल रहा, जिससे स्वतंत्र पाकिस्तानकी जोरदार मांग की गई । मुस्लिम लीगने स्वतंत्र भारतसे बाहर निकलनेका निर्णय लिया था । उसे उपनिवेशवादी शक्तियोंने उकसाया था । अतः भारतीय क्षेत्रके बाहर उन्होंने ऐसे स्थानपर जाकर उनका स्वतंत्र राष्ट्र स्थापित किया, जहांसे स्वतंत्र पाकिस्तानके लिए कभी बलपूर्वक मांग नहीं की गई थी । उत्तरप्रदेश एवं बिहारमें विद्यमान पाकिस्तानके समर्थक भारतमें ही रहे । संभवतः अतिप्राचीन समयमें भारत एवं पाकिस्तानमें रहनेवाली अमीर-उमरावशाही पुनः प्रस्थापित होगी, यह अचर्चित एवं अव्यक्त होगा । बंदुककी एक भी गोली व्यर्थ न जाने देते हुए हम विजयी हुए एवं हम ही हारे, तब भी विभाजनकी वेदनाएं अब भी चुभती हैं । दृढ हिंदु अथवा दृढ हिंदुत्व देखनेकी किसीको आदत नहीं है । बडेबडे वेदसंपन्न, समाजतज्ञ एवं विद्वान हिंदुत्वकी व्याख्या करनेमें असमर्थ रहे । मैं एक नम्र अधिवक्ताके रूपमें उनकी आस्था बढा सकता हूं; परंतु जिस व्याख्याको सर्वोच्च न्यायालयके एक निर्णयसे अंतिम रूप दिया गया है, वह हिंदुत्व मुझे ज्ञात है ।

८. केंद्रकी संयुक्त कांग्रेस सरकारने हिंदुओंमें भय उत्पन्न करना

इस्लामी एवं ब्रिटीश कार्यकालके पूर्वमें भी भारतमें ईसाई मिशनरियोंका आदरातिथ्य किया गया एवं यहुदी तथा पारसी लोगोंको आश्रय दिया गया । किसी भी धर्मको गौण समझकर कभी छल नहीं किया गया । अनेक युगोंसे हिंदुत्व भारतियोंका प्राण हैं एवं संभवतः यही कारण है कि पराजय, वंशहत्या एवं अनेक लोगोंद्वारा वश करनेका प्रयास किए जानेपर भी वह टिका हुआ है । अपनी कुल जनसंख्यामें ८० प्रतिशत लोग वर्तमानमें भारतपर राज्य करनेवाली सत्ताको सुरूंग लगा सकते हैं, ऐसा सुदृढ हिंदुत्व ध्वनित करते हैं । कांग्रेस सरकारने भयसे विकृत मनस्थिति उत्पन्न कर ‘हिंदु’ शब्द जातिवाचक है, ऐसा संबोधित किया । इसमें बहुसंख्यकोंको स्थायी रूपसे दुर्बल बनाया गया है । राष्ट्रीय परामर्शदाता मंडलद्वारा सिद्ध विषारी धार्मिक एवं लक्षि्यत हिंसा विरोधी विधेयकका प्रारुप जो शासन राष्ट्रपर मढना चाहती है एवं अपने देशमें विद्यमान धार्मिक अखंडताका विनाश करना चाहती है । प्रसारमाध्यमोंने बुदि्धवादी एवं नवमतवादियोंका एक वर्ग बढा दिया है । प्रसारमाध्यमोंद्वारा नियमित रूपसे हिंदुओंपर आघात करने हेतु पर्याप्त अवसर दिया जाता है एवं उसको वैधानिक रूपसे मान्यता मिल रही है ।

९. राजनीतिक आलोचक एवं प्रसारमाध्यम हिंदुत्वको धर्मांधता कहते हैं !

अपने देशके अल्पसंख्यकोंको जोरदार रूपसे यह स्पष्ट करना चाहिए कि अतिप्राचीन कालावधिसे समाजमें व्याप्त हिंदुत्वके चैतन्यसे उन्हें कोई भय एवं धोखा नहीं है । उनके धार्मिक अधिकारोंकी रक्षा भारतीय संविधानमें ही की गई है । १९९० के सर्वोच्च न्यायालयके निर्णयमें इस संदर्भमें अंतिम अर्थ बताया गया है कि सर्वसाधारण रूपसे हिंदुत्वका अर्थ है जीवन व्यतीत करनेका एक मार्ग अथवा मनकी एक स्थिति । मूलतत्त्ववादी हिंदु धर्मसे उसकी बरोबरी करना असंभव है । हिंदुत्व अथवा हिंदुवादी शब्दका अर्थ ‘विरोधी अर्थात हिंदु धर्मके अतिरिक्त अन्य धर्मीय सभी लोगोंके विरूद्ध मानसिकता’, ऐसा करना चूक है । राजनीतिक आलोचक एवं प्रसाररमाध्यम हिंदुत्व धर्मांधताका शब्द है, इस बातका समर्थन करते हैं ।

१०. बुद्धिमत्ताका उचित उपयोग किया गया, तो भारत महासत्ता बनेगा !

विश्वमें सभी देश भारतको दुर्बल एवं आंतरिक मतभेदसे नष्ट होते देखना चाहते हैं । एक सुदृढ भारत, जहां अधिकांश लोग उन्नति कर सकेंगे, झगडे न करते हुए एकत्रित रह सकते हैं, वहां सत्ताका समतोल बिगाडते हैं । अपने देशकी मानवी साधनसंपत्ति विकासको प्रेरित करती है । उचित शासनका अभाव होते हुए भी अपने लोंगोंकी सर्वसाधारण बुद्धिमत्ता अन्य अनेक विकसित देशोंके लोगोंकी अपेक्षा बहुत अधिक है । यदि विभाजक शक्ति एवं भ्रष्टाचारके अतिरिक्त राष्ट्रके निर्माण कार्यमें इसका विधायक उपयोग किया गया, तो भारत एक आर्थिक एवं राजनीतिका महासत्ता बनना संभव है ।

– अधिवक्ता राम जेठमलानी (संदर्भ : द संडे गार्डियन)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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