हिंदुओंकी राष्ट्र एवं धर्मके संदर्भमें दुःस्थिति एवं उपाय

वैशाख शुक्ल पक्ष सप्तमी, कलियुग वर्ष ५११६

हिंदुओंको भी धर्मसंस्कार उत्पन्न होने हेतु कुछ पीढियोंको शिक्षा देनी पडेंगी ! – प. पू. डॉ. आठवले


१. स्वधर्मके विषयमें अज्ञान !

अ. अधिकांश हिंदुओंके लिए ‘धर्म’ विषयपर पांच मिनट भी बोलना असंभव होता है ।

आ. अधिकांश हिंदुओंको धर्म क्या है ?, यह ज्ञात न रहनेके कारण उनकी स्थिति आगे दिए नुसार हो गई है ।

१. धर्माभिमान न रहना

२. धर्माचरण न करनेके कारण ईश्‍वरका आशीर्वाद न रहना

इ. उपाय : धर्मविषयक अज्ञान दूर करने हेतु हिंदुओंको धर्मशिक्षा ग्रहण करना आवश्यक है ।

२. धर्मशिक्षाका अभाव

आज भारतमें धर्मशिक्षाकी स्थिति भी  विदारक है ।

अ. ब्राह्मणद्वेषके कारण परंपरागत धर्मशिक्षा समाप्त हो गई है ।

आ. धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था एवं सर्वधर्मसमभावके अतिरेकी प्रचारके कारण विद्यालयमें हिंदुओंको धर्मशिक्षा देनेके लिए प्रतिबंधित किया गया है । 

इ. उपाय : मुसलमानोंको पिछले १४०० वर्षोंसे कट्टर धर्मशिक्षा मिल रही है । हिंदुओंको भी धर्मसंस्कार उत्पन्न होने हेतु कुछ पीढियोंको शिक्षा देनी पडेंगी ।

३. धर्माधिष्ठित राजनीतिक दृष्टिका अभाव !

अ. एक भी राजनीतिक दल हिंदुनिष्ठ नहीं है । इसलिए उनके माध्यमसे ‘हिंदु राष्ट्र’ स्थापित होना असंभव है ।

आ. केवल राममंदिर नहीं, अपितु उसके साथ भारतमें सुराज्य आने हेतु रामराज्य स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है, यह भाजपा आदि राजनीतिक पक्षोंके समझमें नहीं आता ।

इ. उपाय : ‘हिंदु राष्ट्र’का प्रसार कर हिंदुओंमें राजनीतिक दृष्टि उत्पन्न करना एवं ‘हिंदु राष्ट्र’ स्थापित करने हेतु हिंदुओंका संगठन करना ।

४. हिंदुओंमें धर्मजागृति करने हेतु ‘हिंदु राष्ट्र’ स्थापित करनेका प्रसार करें !

अ. धर्मजागृतिका तात्कालिक कार्य एवं ‘हिंदु राष्ट्र’ स्थापित करनेका प्रसार कर हिंदुओंको आकर्षित करनेकी क्षमता !

  ‘हिंदु राष्ट्र’ स्थापित करनेके संदर्भमें महत्त्व (प्रतिशत) हिंदुओंको आकर्षित करनेकी क्षमता (प्रतिशत)
तात्कालिक ध्येय १० ३०
अंतीम ध्येय – ‘हिंदु राष्ट्र’की स्थापना  ९० ७०
कुल मिलाकर  १०० १००

आ. सार्वजनिक धर्मसभा एवं साप्ताहिक धर्मशिक्षावर्ग : सार्वजनिक धर्मसभासे व्यापक मात्रामें जागृति होती है, तब भी अधिकांश रूपसे वह तात्कालिक स्वरूपकी होती है । इसके विपरित धर्मशिक्षावर्गके कारण जागृति होनेमें विलंब लगता है, परंतु आनेवाले स्थायी रूपसे संलग्न होते है ।

५. धर्मकार्य होने हेतु अबतक अनेक लोगोंने प्रयास करनेपर भी विशेष सफलता न मिलनेके कारण समझमें लें !

अ. समय पूरक न रहना : यह सूत्र साधकोंके संदर्भमें लागू होता है ।

आ. ईश्‍वरका आशीर्वाद न रहना : यह सत्र साधना न करनेवाले लोगोंके संदर्भमें लागू होता है ।  

– डॉ. आठवले (३.५.२०१४)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​