भारत देश गांधीवादी होनेके कारण देशकी दुःस्थिति हो गई है ! – शरद पोंक्षे

वैशाख शुक्ल पक्ष नवमी, कलियुग वर्ष ५११६

अहिंसासे लडाई संभव है, यह शोधन गांधीजीसे पूर्व किसीने क्यों नहीं किया ?


कवले (फोंडा-गोवा) : महायुद्धमें अणुबमसे तहस नहस जपान देश आज प्रगति कर अमेरिकाका सामना कर रहा है । एक भी पानीका बूंद न रहनेवाले एवं रेगिस्तानके दुबई देशने ५२ वर्षोंमें कितनी प्रगति की है । दुबईवासियोंको आज २४ घंटे पानी एवं बिजली मिलती है । चारो ओरसे मुसलमान देशोंसे घिरा हुआ इसरायल देश आज विश्वमें गर्दन उठाकर स्वाभिमानसे खडा है; तो सुजलाम् सुफलाम् भारत देशकी स्वातंत्र्यप्राप्तिके पश्चात ६६ वर्षोंमें इतनी अवनति कैसे हुई ?

देशकी समस्याओंका निवारण कर सकनेवाले एकमात्र थे स्वा. सावरकर । उनके पास प्रत्येक समस्यापर उपाययोजना पाई जाती थी ।अमेरिका तथा युरोप खंडके देश सावरकरके समान जीवन बिताते हैं; इसलिए विश्वमें ये देश गर्दन उंची कर जीवन बिताते हैं तथा सुदृढ एवं प्रगति करनेवाले देशके रूपमें उनका नाम है । इसके विपरीत भारत गांधीवादी होनेके कारण भारतकी आज दु:स्थिति हो गई है ऐसा मुंहतोड प्रतिपादन कलाकार, सुप्रसिद्ध अभिनेता एवं विचारक श्री. शरद पोंक्षेने किया । वे ३ मईको कवले, फोंडामें (गोवा) श्री शांतादुर्गा शिक्षा समितिद्वारा सुवर्ण महोत्सवी वर्षके निमित्त आयोजित समारोहमें व्याख्यान मालिकाके दूसरे दिन वक्ताके रूपमें बोल रहे थे ।

श्री. शरद पोंक्षेद्वारा प्रस्तुत सूत्र

१. स्वातंत्र्यवीर सावरकरका महत्व भारतियोंके समझमें नहीं आया !

यदि स्वातंत्र्यवीर सावरकरने विदेशमें जन्म लिया होता, तो उनकी अत्यधिक प्रशंसा हुई होती । उनका मूल्य भारतियोंके समझमें नहीं आया । अपने ८३ वर्षोंके कार्यकालमें भारतमातापर जानसे अधिक प्रेम करनेवाले एवं मानव उद्धारके लिए प्रत्येक क्षण प्रयासरत स्वा. सावरकरकी वास्तवमें पहचान न होनेहेतु राजनेताओंने उनपर जानबूझकर लांच्छनास्पद आरोप लगाए । स्वा.सावरकरने १२ सहस्र पृष्ठ साहित्यकी रचना की है, जबकि अन्य लेखकोंने स्वा. सावरकरपर १२ सहस्र पृष्ठ साहित्यका लेखन किया है एवं विश्वमें ऐसा एकमात्र नेता है । स्वा. सावरकरने भाषा, राष्ट्र, धर्म, अस्पृश्यता निवारण, मानवजातिका कल्याण, कविता, नाटक आदि सभी विषयोंपर लेखन किया । कोई विषय नहीं छोडा । प्रवाहके विरुद्ध जानेका प्रचंड साहस रखनेवाले स्वा. सावरकर दूरदृष्टिवाले एक तडपता सूरज थे । इसलिए अनेक लोगोंको उन्हें पहचाननेमें कठिनताका सामना करना पडा ।

२. गांधीजीकी अहिंसाके कारण देशको स्वातंत्र्य मिला, यह चूक है !

गांधीजीकी अहिंसाके कारण देशको स्वातंत्र्य मिला, यह चूक है ! देशका स्वातंत्र्यसंग्राम वर्ष १८३० से आरंभ हुआ । तात्या टोपे, झांसीकी रानी आदि अनेक शूरवीर लढवय्ये तथा प्राणकी आहुति देनेवाले भगतसिंह आदि सहस्रों स्वातंत्र्यवीरोंने ब्रिटिशोंका वृक्ष मूलसे खोदना प्रारंभ किया था । जडमूलसे खोखला किया गया ब्रिटिशोंका वृक्ष स्वातंत्र्यकी लडाईमें अंततः गांधीजीके अहिंसा आंदोलनमें केवल ढकेलनेसे नीचे गिर गया । इसका अर्थ ऐसा नहीं कि अहिंसासे देशको स्वातंत्र्य मिला । श्रीरामने रावणके साथ शस्रसे युद्ध कर उसे मारा । श्रीकृष्णने शस्रसे युद्ध कर अनेक शत्रुओंको नष्ट किया । छत्रपति शिवाजी महाराजने तलवारके बलपर बलवान मुगलोंपर विजय प्राप्त की । अहिंसासे लडाई संभव है, यह शोधन गांधीजीसे पूर्व किसीने क्यों नहीं किया ? वर्तमान समयमें अन्याय होनेपर मेणबत्ती धारण कर मोर्चे निकालनेके समान खूसट प्रकार किए जाते हैं । मशाल हाथमें लेनेमें असमर्थ लोग ही ऐसा कर सकते हैं । गांधीजीकी अहिंसा भारतियोंके नस-नसमें भरी है । भारतियोंको उनके पराक्रमके इतिहाससे वंचित रखनेका यह परिणाम है । कहा जाता है कि इतिहासके पाठमें क्रिकेटर तेंदुलकरका पाठ रखा जाएगा है । देशकी स्थिति अत्यंत कठिन हो गई है ।

३. मेकॉलेकी शिक्षापद्धति

मेकॉलेकी शिक्षापद्धति भारतमें वर्ष १८३२ से लागू हो गई । इस पद्धतिसे भारतीयोंको संस्कृत भाषा, वेद आदि धर्मग्रंथ तथा भारतीय संस्कृतिसे दूर रखा गया । मेकॉले शिक्षा पद्धतिके कारण शूरवीर भारतियोंके दैदिप्यमान इतिहाससे भारतियोंको वंचित रखकर जाति एवं धर्ममें अंतर डाला गया ।

४. भारतरत्न !

भारतियोंसे तनिकभी संबंध न रहनेवाले नेल्सन मंडेलाको भारतमें आमंत्रित कर भारतरत्न दिया जाता है; परंतु स्वा. सावरकरको यह पुरस्कार नहीं दिया जाता, क्योंकि वे गांधीजीके विचारोंके अनुसार नहीं चले ।

५. स्वा. सावरकरका कहना

आज १२५ करोड भारतियोंमें ५ प्रतिशत भारतियोंके अतिरिक्त सभी भारतियोंका ध्यान स्वयंको पैसा संपत्ति एवं अलंकार अधिकाधिक कैसे मिलेंगे, इसपर केंद्रित रहता है । आज प्रत्येक व्यक्तिको ऐसी शपथ लेनी चाहिए कि ‘आजसे मैं देशके लिए प्रतिदिन न्यूनतम समय अवश्य दूंगा । नोकरदार एवम् उद्योगक्षेत्रके लोगोंने उचित मार्गसे एवं प्रामाणिक रूपसे पैसे कमाना, गृहिणियोंको केवल स्वदेशी मालका ही उपयोग करना ऐसा कर देशके लिए कार्य करना चाहिए । देशके उद्धारके लिए सुरक्षा एवं शिक्षा दो क्षेत्र महत्वपूर्ण है, ऐसा स्वा. सावरकरका कहना था ।

हिंदु होनेके संदर्भमें अभिमानसे बतानेवाले अभिनेता शरद पोंक्षे !

२०१२ में ‘जी मराठी’ वाहिनीपर हप्ता बंद कार्यक्रम चालू था । इस कार्यक्रममें मराठी अभिनेता मकरंद अनासपुरे सम्मिलित स्पर्धकोंको कुछ प्रश्न पूछते हैं । १८.१०.२०१२ को इस कार्यक्रममें सुप्रसिद्ध मराठी अभिनेता श्री. शरद पोंक्षे अतिथिके रूपमें सम्मिलित हुए थे । अनासपुरेने श्री. शरद पोंक्षेसे पूछा कि अभिनेताके साथ ही आपका परिचय एक हिंदुनिष्ठके रूपमें होने लगा है । इसपर पोंक्षेने उत्स्फूर्ततासे कहा कि इसमें क्या चूक है ? मैं एक हिंदु हूं ! – श्री. दीपक छत्रे, नागेशी, फोंडा, गोवा

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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