“भारत का पडोसी, बांग्लादेश अब अशांत होने लगा है। धीरे-धीरे इस्लामिक कट्टरपंथ यहां पैर फैला रहा है। हिंदुओंके लिए यहां समस्या तो पहले से थी, लेकिन अब मसला सांप्रदायिकता से निकल कर धार्मिक कट्टरवाद की ओर बढ़ रहा है। यह उन्माद हिंदुओंके घुटन का कारण भी बन रहा है। इस देश के हालातोंपर जायजे की पहली कड़ी।”
बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट के वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकोंके लिए लड रहे ६५ साल के अधिवक्ता श्री. रवींद्र घोष पुलिस स्टेशन की ओर कूच कर रहे हैं। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक यानी हिन्दू समुदाय की मालोती देवी और उनके पति की जमीनपर कब्जे के बाद दबंगोंने उनपर अत्याचार किए, मालोती रानी के साथ बदसलूकी की और पुलिस रिपोर्ट भी नहीं लिख रही है।
सर्वोच्च न्यायालय के उनके कमरे में रोज यही नजारा रहता है। अल्पसंख्यककों के पक्ष में लढने हेतु उनके पास पीड़ितोंका जमावडा लगा रहता है । ऐसे बहुत से हिन्दू परिवार हैं, जिनपर अत्याचार हो रहे हैं और पुलिस रिपोर्ट नहीं लिख रही है। रवींद्र घोष कहते हैं, ‘सभी खराब नहीं होते। यहांपर भी कुछ अच्छे लोग हैं जो हमारी मदद करते हैं। दुर्भाग्य से उनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है।’ रवींद्र घोष बगल में बैठे व्यक्ति की ओर हाथ से इशारा करते हुए कहते हैं, ‘मेरे सहकर्मी दोस्त गाजी को ही लीजिए। यह हर वक्त मेरे लिए खडे रहते हैं। कई बार इन्होंने मेरी मदद की जिसका बयान भी मैं नहीं कर सकता।’
श्री. रवींद्र घोष का नाम बांग्लादेश में प्रसिद्ध है। हर दिन उनको अल्पसंख्यकोंका पक्ष लेने के कारण जिहादीयोंद्वारा जान से मारने की धमकी मिला करती है, पर वह बिना किसी चिंता के अपने काम में लगे हुए हैं ।
सन १९७१ में बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद हिंदुओंकी संख्या इस विभाग में करीब ३९ प्रतिशत थी जो अब घट कर मात्र १० प्रतिशत रह गई है। ज्यादातर हिन्दू परिवार बांग्लादेश छोड कर या तो अमेरिका-यूरोप में बस गए हैं या भारत में पश्चिम बंगाल के कोलकाता को अपना स्थायी ठिकाना बना लिया है।
वहां रहने वाले हिन्दू परिवारोंका कहना हैं कि, यहां दिन ब दिन रहना मुश्किल होता जा रहा है। अब तो आवाज उठाने से भी जान को खतरा हो जाता है। पिछले दिनों बांग्लादेश में कई ब्लॉगरोंकी सिर्फ इसलिए हत्या कर दी गई क्यों कि वे अत्याचारियोंके साथ-साथ सहिष्णुता और बराबरी के अधिकार के लिए लिख रहे थे। हाल ही में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में दो विदेशियोंकी भी हत्या कर दी गई।
मारे गए एक ब्लॉगर के परिवार से मिलनेपर उन्होंने कुछ भी बोलने से पहले बस इतना अनुरोध किया कि उनके परिवार की पहचान छुपा दी जाए। उस युवा ब्लॉगर के पिता को लगातार धमकी मिल रही है क्यों कि उनकी बेटी अपने भाई के ब्लॉग को जीवित रखे हुए है। उस ब्लॉगर के पिता कहते हैं, ‘मीडिया बिलकुल सहयोग नहीं करता। यहां भारत की तरह नहीं है कि कोई भी घटना हो तो पूरा मीडिया तुरंत दौड पडे। यहां तो हिंदुओं के मामले में कोई ध्यान नहीं देता। न कोर्इ समाचारपत्र इस विषयमें समाचार प्रसिद्ध करते हैं न हि टीवी चैनल, हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध कोर्इ शब्द कहते हैं।
स्त्रोत : आऊट लूक