श्रावण कृ ८, कलियुग वर्ष ५११४
पुणे, ९ जुलाई (संवाददाता) – भारतियोंको पराधीन ( दास्यत्वकी ) मानसिकता त्याग देनी चाहिए । गुजरातमें सोरटी सोमनाथ मंदिरके पास हमने संस्कृत विद्यापीठकी स्थापना की है । गुजरात राज्यके सुवर्णमहोत्सवके समय १ लक्ष परिवारोंने संस्कृतमें बोलनेका निश्चय किया था एवं आज ८ से १० लक्ष नागरीक संस्कृत बोल सकते हैं । वैदिक गणित भी गुजरातमें सिखाया जाता है । हालहीमें हमने ‘भारतीय मंदिर व्यवस्थापन संस्था’की स्थापना की है । इस संस्थामें पढकर बाहर निकले पहले गुटके सभी लोगोंको अच्छी सेवाएं प्राप्त हुई हैं । संस्कृत भाषा ही भारतको वैश्विक महासत्ता बनानेमें समर्थ है, यह प्रतिपादन गुजरातके मुख्यमंत्री श्री. नरेंद्र मोदीद्वारा किया गया है । ‘एमआयटी’ इस शिक्षणसंस्थामें पंडित वसंत गाडगीळके ‘संस्कृत सेवा समर्पण’को ६१ वर्ष पूर्ण होनेके उपलक्ष्यमें आयोजित कार्यक्रममें वे बोल रहे थे ।
पंडित गाडगीळजीने कहा कि, संस्कृतकी सेवा आमरण करता ही रहूंगा । शिशुअवस्थासे महाविद्यालयतककी शिक्षा संस्कृतमें ही होनी चाहिए । आज गुजरातका अनुकरण करनेकी प्रथा प्रारंभ हो गई है , अतः गुजरातद्वारा संस्कृतको राजभाषाका स्थान दिया जाना चाहिए । इस समय ज्येष्ठ इतिहाससंशोधक श्री. बाबासाहेब पुरंदरे, संगणकतज्ञ डॉ. विजय भटकर, श्री. विश्वनाथ कराड, श्रीमंत शाहु महाराज आदि उपस्थित थे ।