वैशाख पौर्णिमा, कलियुग वर्ष ५११६
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१. विदेशमें चोरी अपराध है, जबकि भारतमें व्यभिचार भीषण अपराध रहना :
आज वहांका समाज अर्थप्रधान हो रहा है । वहां चोरी विलक्षण भीषण अपराध माना जाता है, जबकि वैदिक समाजमें व्यभिचार भीषण अपराध है ।
अ. मनुस्मृतिके अनुसार शरीर एवं मन अनुशासित रहकर व्यक्तिका उस अपराधसे परावृत्त होना :
मनुस्मृतिमें पाप एवं उपपाप तथा उनके प्रायश्चित दिए गए हैं । ये प्रायश्चित ऐसे हैं कि इनका आचरण करनेपर शरीर एवं मन दोनों ही अनुशासित रहते हैं एवं व्यक्ति निश्चित रूपसे उस अपराधको करनेसे परावृत्त होती ही है ।
२. हिंदु धर्ममें पापनिष्कृतिके लिए विविध मार्ग रहना :
ईसाई धर्ममें कन्फेशन्स (confessions) (पाप मान्य करना) हैं, उसीप्रकार वैदिक धर्ममे भी हैं । ब्राह्मणसभा, (पंडितोंकी सभा), धर्मसत्र अथवा यज्ञयागमें जाकर अपना पाप घोषित करना, सब ब्राह्मणोंके समक्ष पापकी स्वीकृति देना प्रायश्चितका एक प्रकार है । ऐसा मनु कहते हैं । यहां पापनिष्कृति है ।
३. एक ब्रह्मचारीको स्त्रीसंगसे पातक लगनेके कारण उसके आचार्यने उसे प्रायश्चित बताकर करवा लेना एवं उसे शुद्ध करना :
दक्षिणामूर्ति कथा पढनेमें आई । इसमें एक ब्रह्मचारीको स्त्रीसंगके कारण पातक लगता है । वह अपने आचार्यको इस पापके संदर्भमें बताता है । पश्चात छः माहतक प्रतिदिन अलग-अलग घर एवं तदुपरांत अपने आसपासके गांवमें मधूकरी मांगने हेतु जाता है । मधूकरी मांगते समय ‘मैं ब्रह्मचारी हूं । गुरुकुलमें रहता हूं । मेरा वेदाध्ययन हो गया है । मैंने स्त्रीसंभोगका पातक किया है,‘ इसप्रकार सर्वत्र वह अपना पाप बताता है । तदुपरांत उसके आचार्य उससे दो चांद्रायण एवं विष्णुयाग कराकर उसे शुद्ध बनाते हैं । आचार्यके ही सगेसंबंधियोंमेंसे गोत्र जुडनेवाली एक लडकी उसे वधुके रूपमें दी जाती है । दोनोंका विवाह होता है एवं अब उसे समाजमान्यता प्राप्त होती है ।
– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (संदर्भ : मासिक घनगर्जित, मार्च २०१३)
(हिंदु धर्मकी महानता यही है कि वह प्रायश्चितकर्मसे स्वयं अपना शुद्धिकरण कर सकता है । भगवान श्रीकृष्ण भी गीतामें कहते हैं कि कोई व्यक्ति कितना भी बडा पाप क्यों न करें, परंतु यदि उसकी आंखोंमें पश्चातापका एक भी अश्रु बहता है, तो वह व्यक्ति मुझे प्रिय है एवं मैं उसका उद्धार करता हूं । हिंदु धर्ममें बताए गया कर्मकांड, उसमें बताए गए प्रायश्चित एवं भगवंतको अपेक्षित मनशुद्धिकरणवाले प्रायश्चित्तके कारण ही हिंदु धर्म सर्वश्रेष्ठ है । इससे यही दिखाई देता है कि इसके सामने पश्चिमी सभ्यतावाले व्यक्तियोंके पापकर्मकी शिक्षापद्धति कितनी अपरिपक्व एवं संकुचित है । इसमें मानवका पुनरुद्धारक तत्त्व ही लुप्त दिखाई देता है । तब भी हमने अंधेपनसे अंग्रेजोंद्वारा हमपर बलपूर्वक थोपी गई एवं अन्याय बढानेवाली न्यायपद्धति चालू रखी है, जिसके दुष्परिणाम हम भुगत रहे हैं । ‘हिंदु राष्ट्र’में कदापि ऐसा नहीं होगा । – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात