सर्वोच्च हिंदु शिक्षापद्धति तथा ब्रिटिशोेंकी शिक्षापद्धतिके माध्यमसे विविध अंगोंसे हुई भारत की अधोगति

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष ७/८, कलियुग वर्ष ५११६

ब्राह्मणोंने दलितोंको शिक्षासे वंचित रखा, इसप्रकार चिल्लाकर विलाप  करनेवालो, यह ध्यानमें लें !

१. ब्रिटिशपूर्व कालावधि

‘शालेय शिक्षामें उपाधि आदिकी पद्धति ही नहीं थी । श्रेष्ठ पारंपरिक शिक्षा थी ।

१ अ. शूद्र, अतिशूद्र निकृष्ट स्तरके व्यक्तियोंके लिए भी शिक्षाके द्वार खुले रहना : विख्यात ग्रंथ Memoirs of late Asia’ (J Murray London 1767 P. २३०-२३३) में कर्नल वेली नामक उच्चपदस्थ ब्रिटिश शिक्षाधिकारी हिंदुओंकी शिक्षाव्यवस्थाके संबंधमें लिखता है कि ‘शूद्र, अतिशूद्र जैसे निकृष्ट स्तरके व्यक्तियोंको भी पठन, लेखन, गणित, रामायण, महाभारत, पुराण आदि प्रसंग सिखाए जाते थे । युवा विद्यार्थियोंको यह पारंपरिक शिक्षा चार दीवारकी आड खोलीमें नहीं, अपितु खुले स्थानमें वृक्षके नीचे दी जाती थी । प्रत्येक ग्राममें एक थोर सम्माननीय व्यक्ति वृक्षको टेककर आसपासमें एकत्रित आए अनेक विद्यार्थियोंको सिखाते थे । विद्यार्थी अत्यंत पूज्य बुद्धिसे विद्या ग्रहण करते थे ।

१ आ.  शिक्षा उदरनिर्वाहका साधन नहीं, अपितु धर्मशिक्षापर आधारीत होनेके कारण हिंदुओंके आचरणमें मार्दव एवं नम्रता रहना : सभागृहकी आवश्यकताकी पूर्तिे मैदान एवं आकाशके छतसे की जाती थी । हिंदुओंके विनम्र संस्कारक्षम बच्चे श्रद्धाके साथ शिक्षा ग्रहण करते थे ।  शिक्षा केवल उदरनिर्वाहका साधन एवं व्यवसाय देनेवाली नहीं थी, अपितु अन्य विषय अर्थात कर्तव्य, जबाबदारी, आराध्य देवी-देवताओंके विषयमें दृढ भक्ति-भाव, सभी प्रौढ व्यक्तियोंके विषयमें सम्मान, अभिवादन शीलता, मानवता, न्याय, बुद्धि, करुणा, अनुकंपा, स्वजातिका अभिमान, कुलाचार इत्यादि बातें सिखाई जाती थीं । हिंदु लोगोंकी भाषा अत्यंत मधुर एवं आशयघन है । उनका पठन तथा उच्चारण गीतासमान मधुुर है । उनके आचरणमें मार्दव एवं नम्रता है । उनके कानूनमें अद्भूत मार्दव है । अखिल मानवके विषयमें करुणा है । परंपरा एवं आचरणका विनम्र चित्र उनके नियम एवं विधिनिषेधमें उभरा है ।

१ इ. अपूर्व गुफाओंका निर्माणकार्य करनेवाले शूद्र अध्यात्मज्ञानसे संपन्न रहनेके कारण ही उन्होंने गुफाओंपर अपना नाम न खोदना : ‘शिल्प तथा कला आदि कर्म शूद्रोंके हैं । शूद्रोंकी तीन पीढीयोंने दिनरात श्रम कर विश्वका सबसे बडा चमत्कार ‘कैलासकी गुफाओं’का निर्माण किया । आज भी अत्यंत प्रगत एवं विज्ञाननिष्ठ विश्व इन गुफाओंको  देखकर विस्मित होता है, आश्चर्यमुग्ध होता है । ‘शूद्र शिक्षासे वंचित थे’, ऐसा कहनेका साहस करनेवाला सडे दिमागका तथा पागल ही होगा । क्या गणित, भूमिति, त्रिकोणमिति, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, पुराण आदि बातोेंका सखोल अध्ययन रहे बिना ये कैलासकी गुफाएं निर्माण होनेकी संभावना है ? गुफाओंके दीवारोंपर दशावतारसे लेकर पुराणके सैकडों प्रसंग खोदे हुए हैं । क्या उन्हें चित्रकलाका ज्ञान नहीं था ? विशेष यह कि ऐसी अपूर्व गुफाएं तीन पीढियोंसे निर्माण करनेवाले एक भी व्यक्तिका नाम वहां नहीं है । इसका अर्थ यह गुफाएं निर्माण करनेवाले निश्चित रूपसे अध्यात्मज्ञानसे संपन्न थे । क्या इसके बिना लोकेषणापर मात करना संभव है ?

१ ई. अनेक पीढीयोंसे कलाकार घराने रहना : गायन, नृत्य, नर्तक, इत्यादि लोगोंके पारंपरिक घराने थे । अनेक पिढीयोंसे उन्हें वह शिक्षा मिलती थी । इन घरानोंमें बडे कलाकार एवं बडे व्यावसायिकोंको जन्म दिया है ।

२. ब्रिटिश सरकारकी कालावधि

ब्रिटिश आए एवं उन्होंने शिक्षाकी अवहेलना की; क्योंकि यह औपचारिक (अर्थात शालेय) शिक्षा नहीं, अपितु पारंपरिक शिक्षा थी ।

२ अ. ब्रिटिशोंने श्रेष्ठ भारतीय पारंपरिक शिक्षा पद्धति बंद कर निकृष्ट स्तरकी (शालेय) शिक्षापद्धतिको लाना : ‘निरक्षर अशिक्षित रहता है’, ऐसी प्रचलित शिक्षापद्धति कहती है, जो झूठ है । यशपाल विद्यापीठ अनुदान मंडलके अध्यक्ष हैं । वे निस्पृह श्रेष्ठ शिक्षाशास्त्रज्ञ हैं । वे कहते हैं, ‘सहस्रों वर्षोंसे खेती, बुनकर, सुतार, चर्मकार, मूर्तिरचना, शिल्प, भूखनन, बर्तन सिद्ध करना तथा सुवर्णकार जैसे असंख्य उद्योग एक पीढीसे दूसरी पीढीतक गए हैं । ये सहस्रों वर्षोंकी पारंपरिक व्यवस्था अक्षुण्ण है । बुनकर कपासके धागेसे वस्र सिद्ध करते थे । उन्हें रंग, धागा तथा वस्रोंका प्रथम श्रेणीका ज्ञान था । यह शिक्षा उन्हें ना किसी विद्यालयमें दी गई, ना उन्होंने कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण की ।

विद्यापीठ और क्या विशेष करेंगे ? यदि हमारे इन परांपराओेंको पुनरुज्जीवित किया गया, तो हमारा देश प्रथम श्रेणीमें अग्रभागमें रहेगा । अन्यथा दूसरी, तीसरी एवं चौथी ऐसी निकृष्ट श्रेणीयां प्राप्त होगी ।

२ आ. ब्रिटिश सरकारने जाति-जातिमें वैमनस्य उत्पन्न करने हेतु बहुजन समाजके बच्चोंके लिए शिक्षाके दरवाजे बंद करना : स्त्रिया एवं शूद्र ही नहीं, अपितु शूद्रसे शूद्रोंको सभी क्षेत्रोंमें शिक्षा दी जाती थी । शिक्षा सार्वजनिक थी । कोई अशिक्षित नहीं था । धर्मपालकी १. The Beautiful tree, २. Indian Science and Technology in the18th Century आदि पुस्तकोंका अभ्यास करें । यदि उनकी केवल ‘The Beautiful tree’ पुस्तक उपरी तौरपर पढी गई, तो भी हमारी पारंपारिक शिक्षाव्यवस्था कैसी सार्वत्रिक एवं श्रेष्ठ थी, यह ध्यानमें आएगा । ‘१९ वें शतकमें छोटे छोटे गावोंमें सर्वत्र विद्यालय थे । इन विद्यालयोंमें सभी जाति-धर्मके बच्चे शिक्षाग्रहण करते थे । किसीको मना नहीं किया जाता था । कोई शिक्षासे वंचित नहीं था ।’धर्मपाल प्रमाणके साथ यह अंकवारी देते हैं । उनकी दी हुई अंकवारी ब्रिटिश कलेक्टरद्वारा संग्रहित की गई है । अंग्रेज आए, उनकी सरकार आई एवं बहुजन समाजके बच्चोंके लिए शिक्षाके द्वार बंद हो गए । ब्रिटिश सरकार हिंदु समाजके टुकडे ही करना चाहती थी ।

Marshal Race एवं शिक्षाकी परंपरावाले एवं परंपरा न रहनेवाले ऐसे अनेक अंतर उत्पन्न किए गए । जाति-जातिमें वैमनस्य उत्पन्न किया गया । धर्मपालने मद्रास प्रेसिडेंसीका शिक्षा ब्यौरा प्रसिद्ध किया है, जिसमें अपना जनगणनाका ब्यौरा प्रयुक्त कर ब्रिटिशोंकी हरामखोरीके विपुल प्रमाण दिए हैं ।

हिंदु समाजके गायक, वादक, नर्तक, कलाकार, वास्तुविशारद, सुतार, कुंभार, सुवर्णकार, शेतकरी, बुनकर, चर्मकार, लोहार तथा वैद्य, ज्योतिषि, वेदपठन करनेवाले शास्त्री-पंडीत वैदिक, कीर्तनकार तथा प्रवचनकार जैसी यच्चयावत परंपराएं अविच्छिन्न तथा अखंड अबाधित कैसी रही, इसका अभ्यास हमें करना चाहिए । हमें उनका पुनरुज्जीवन करना चाहिए । शिक्षामें उन्हें स्थान देना चाहिए । प्राथमिक, माध्यमिक, महाविद्यालय, विद्यापीठ ऐसी औपचारिक शिक्षा भी मिलनी चाहिए ।

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिंतन, १७.७.२००८)

यदि ब्रिटिशोंद्वारा समाप्त अनौपचारिक शिक्षापद्धतिका पुनरुज्जीवन किया गया, तो भारत देश विश्वके समक्ष आदर्श रहेगा !

‘हमारी प्राचीन आचार्य कुलकी शिक्षाव्यवस्था नष्ट कर ब्रिटिशोंने हमें बौद्धिक दासतामें जकडकर रखा एवं सदाके लिए बहुजन समाजके अडानीपनकी दूरव्यवस्था उत्पन्न की । इसलिए देशकी शक्तिकी विलक्षण रूपसे क्षति हुई । प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष, प्रच्छन्न, अप्रच्छन्न ब्राह्मणद्वेषको विलक्षण उत्तेजन मिला एवं ब्राह्मणवर्ग अपराधगंडसे प्रभावित हुआ । अंग्रेजोंसे प्रभावित छायाके ब्राह्मणोंके मनमें ब्राह्मण्यके विषयमें तिरस्कार उत्पन्न हुआ । आधुनिक ब्राह्मण समाज प्रमाणके बाहर पश्चिमी विद्याओंके पीछे पड गया । यह कहना अवास्तव नहीं होगो कि यदि ब्राह्मणवर्ग अडानी रहता, तो देशकी विलक्षण सांस्कृतिक हानि नहीं होती थी ।

मेकॉले, मैक्सम्युलर तथा मार्क्सके षडयंत्रका परिणाम ब्राह्मणोंपर भी हुआ । यह वर्ग भी आधुनिक पश्चिमी विद्याओंके पीछे पड गया एवं मूल परंपराओंसे अलग हो गया है । हमें आज कंठरवसे अखंड घोषना करनी चाहिए कि यदि हमारी पूर्वकी अनौपचारिक आचार्य कुल शिक्षापद्धतिको जिसे ब्रिटिशोंने समाप्त किया है, पुनरुरज्जीवित किया गया, तो देखते ही देखते हमारा देश विश्वके समक्ष आदर्श रहेगा एवं विश्व उसका अनुकरण करेगा ।’

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिंतन, २४.७.२००८)

धर्मशिक्षाका महत्त्व

‘धर्म कहता है, ‘मानव सार्वभौम नहीं है । वह तो भुवनव्यवस्थाका एक अंश है । एक घटक है । धर्म एवं संस्कृति जीवन बितानेकी बाते हैं । इसके अनुसार प्रत्येक शास्त्रको इतिहास, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, वास्तुशास्त्र, कृषि, चिकित्सा जैसे सभी क्षेत्रोंमें धर्मका अधिष्ठान चाहिए । लोकजीवनके नित्यनैमित्तिक आचरणसे धर्म आविष्कृत होना चाहिए । अरे, अरे कहते कहते हमारा राष्ट्र सुवर्णमें लोटने लगेगा । भौतिक आत्मिक, पारलौकिक सभी समाज जीवन उज्जवल होगा, कृतार्थ होगा ।’

– गुरुदेव डॉ. काटेस्वामीजी (साप्ताहिक सनातन चिंतन, ३.७.२००८)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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