अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालयपर नेहरूके निधर्मी प्रशासनद्वारा विशेष सुविधा एवं अनुदानकी वर्षा

ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अष्टमी/नवमी, कलियुग वर्ष ५११६

अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालयपर नेहरूके निधर्मी प्रशासनद्वारा विशेष सुविधा एवं अनुदानकी वर्षा करना तथा विश्वविद्यालयके इतिहासकार मोहम्मद हबीबद्वारा विकृत इतिहास लिखना

ब्रिटिशोंने मुसलमानों हेतु अलीगढ विश्वविद्यालय स्थापित किया । स्वतंत्रता प्राप्तिके पश्चात उस मुस्लिम विश्वविद्यालयपर नेहरूके निधर्मी प्रशासनने विशेष सुविधा तथा अनुदानकी वर्षा की । इ.स. १९२० में अलीगढ विश्वविद्यालयके इतिहासकार मोहम्मद हबीबने ब्रिटिश प्रशासन द्वारा हिंदू-मुस्लिम युद्धका नया इतिहास लिखनेकी स्वीकृति करवाई । उस इतिहासकी पुनर्लिखाईके संदर्भमें कुछ मुख्य सूत्र,

१. (कहते हैं ) ‘मुस्लिम आक्रामकोंने हिंदुओंका प्रचुर संहार नहीं किया !'

झूठ : ‘मुस्लिम आक्रामक तथा शासकोंने हिंदुओंका प्रचुर संहार किया’, ऐसा कहते हैं; किंतु वास्तवमें ऐसा नहीं है । इस्लाम सलतनतकी जो ऐतिहासिक बखरी हैं, तैमूरलंग एवं बाबर जैसे कुछ प्रशासक तथा आक्रामकोंने अपनी बखरी (Chronicles) अपने जीवनमें ही लिखवा ली । उसमें हिंदुओंके महाभयंकर संहारके जो वर्णन हैं, अतिप्रचुर मात्रामें हिंदू स्त्रियोंके साथ निर्मम अत्याचार एवं बलात्कारके जो वर्णन हैं, लाखों मंदिर तोडनेकी जो जानकारी है, वह गंभीर नहीं है । वह अतिशयोक्ति है । उस दरबारके बखरकारोंने यह अतिरंजित वर्णन किया है । यह बात बडे आश्चर्यकी बात है । 
खंडन :
१. हिंदुओंके महाभयंकर संहारका, उस समयके बखरकारोंद्वारा किया गया वर्णन उन्हें अतिरंजित लगता है । ठीक है! तो हबीबसाहेब, आपका जो यह सिद्धांत है, अनुमान (hypothesis) है, यह कथन है, उसका एक तो प्रमाण दो । अपवादसे, ढूंढनेपर भी आपको प्रमाण मिला नहीं अथवा मिलेगा नहीं । तो उत्तर क्या खाक दोगे ? 
२. मुसलमानी आक्रामकोंके जो भयावह अत्याचार हैं, हिंदुओंके ये जो संहारकांड हैं, वे सभी ऐतिहासिक हैं, हबीब यह मानते हैं; किंतु वे कहते हैं कि 

२. (कहते हैं ) ‘संपत्ति लूटने हेतु मंदिर तोडे । वहां धार्मिक उद्देश्य नहीं, इस्लामके कारण नहीं !'

झूठ : ये हत्याकांड तथा स्त्रियोंके साथ होनेवाले जो बलात्कार हैं, उनका इस्लामसे कुछ भी संबंध नहीं । वहां अन्य कारण हैं, उधर ध्यान देना चाहिए । कभी कभी उस संदर्भमें इस्लामको दोष दिया जाता है । इस्लामका उपयोग किया जाता है; किंतु वह चूक है । असलमें सही कारण वहांकी आर्थिक परिस्थिति है । इन हिंदू लोगोंने सभी संपत्ति मंदिरोंमें एकत्रित की; अत: मुसलमान सेनाने मंदिर तोडे । संपत्ति लूटने हेतु मंदिर तोडे । वहां धार्मिक उद्देश्य नहीं, धर्म नहीं…
खंडन : हिंदुओंने मंदिरोंमें संपत्ति एकत्रित की, आज समाजके सामने यह झूठ  क्यों रखा जाता है ? सोमनाथ जैसे मंदिरकी संपत्ति (Temple property) मंदिरकी ही संपत्ति थी । हबीबके इस सिद्धांतकी पुष्टि करनेवाली यह एक सरासर झूठी बात है । हमें धोखा देने हेतु किया गया यह इतिहास संशोधन बिल्कुल तर्कहीन तथा पूर्णतः झूठ है । 
२ अ. सुलतान महम्मद गजनी (इ.स. ९९७ से १०३०) ने सिंध, गुजरात तथा पंजाबपर अनेक आक्रमण किए । महम्मद गजनी लुटेरा नहीं, अपितु इस्लामका अनन्य भक्त था । 
२ आ. ७१२-५ में अरब महम्मद बिन-कासिमने जो किया, उसीको हत्याकांड तथा विध्वंस कर सुलतान महम्मद गजनीने दोहराया । उसे संपत्तिसे मोह नहीं था, उसने संपन्न स्थितिमें स्थित मस्जिदोंको कुछ हानि नहीं पहुंचाई; किंतु सधन, तथा निर्धन हिंदुओंके मंदिरोंको  धराशायी किया । 
('… His massacres and acts of destruction were merely a replay of what the Arab Mohammed bin-Qusim had wrought in Sindh in 712-5. He did not care material gain. He left rich mosques untouched. But poor Hindu temples met the same fate at his hands as the rich temples.')
२ इ. सूर्यदेवकी वह विशाल मूर्ति वापिस करें; इस हेतु हिंदुओंने प्रचुर मात्रामें सुवर्ण एवं संपत्ति देनी चाही । उसने उसे अस्वीकार किया तथा मूर्ति तोड डाली । मस्जिदके पांवतले उसे स्थापित किया । वह कहता है, `जिस दिन कबर स्थित मृत व्यक्तियोंका निर्णय होगा, उस दिन मैं अल्लाके सामने कट्टर मूर्र्तिभंजक बनकर जाना चाहता हूं, मूर्तियोंका विक्रय करनेवाला बनकर नहीं ।’ उसका यह कथन उसके सभी शैतानी क्रूर कुकर्मोंका प्रमाण देनेवाला है । इस्लामके तत्त्व निष्ठासे आचरण करने हेतु ही उसने हिंदुओंके भयावह हत्याकांडोंके ये आसुरी कृत्य किए । इससे प्रसन्न होकर अल्ला उसे स्वर्गमें स्थान देनेवाला था । 
२ ई. दूसरा फिरोज शाह तुगलक (१३५१-८८), यह प्रशासक खुलकर कहता है,  `हमने हिंदुओंके अनगिनत मंदिर तोडे; क्योंकि हम इस्लामके सच्चे सेवक हैं । मूर्ति तथा मंदिरोंका भंजन हमारा धर्म है । वहां संपत्ति थी; इस कारण हमने मंदिर नहीं तोडे, किंतु हिंदू दूसरी-तीसरी श्रेणीके नागरिक थे । उन्होंने ‘झिम्मी' स्थिति स्वीकार की, तथा `जिझीया' स्वीकार किया; अत: वे बच गए , अन्यथा हम उनकी हत्या कर देते । इस्लामके, पैगंबरकी आज्ञाके अनुसार हमने हिंदू नास्तिकोंका(काफिरोंका) संहार किया । मंदिर तोडे ।’ एक बार तो फिरोजशाह बादशाहने सुनाया, `हिंदुओंके त्यौहार जब मनाए जाते हैं, उस समय मुझे बडा क्रोध आता है । मेरी धर्मभावनाका यह भयंकर अपमान है । मैं उसका प्रतिशोध लूंगा ही ।’  इस प्रकारका घृणास्पद कृत्य कर वह स्वयं आगे आकर कहता है, `उस त्यौहारके दिन मैं स्वयं ही वहां गया तथा उस त्यौहारमें सम्मिलित सभी हिंदुओंकी हत्या करनेका मैंने आदेश दिया । उनकी वह मूर्ति तथा मंदिर मैंने तोडे तथा उनके स्थानपर मस्जिदें स्थापित की । '

३. (कहते हैं ) ‘आक्रामक मुसलमान बहुसंख्य तुर्क थे, वे लुटेरे तथा जंगली थे !'

झूठ : ये आक्रामक मुसलमान बहुसंख्य तुर्क थे, वे लुटेरे एवं जंगली थे । वे बिल्कुल कुसंस्कृत थे । इस्लामके नीतिमान प्रभावमें आने हेतु उन्हें कुछ शतक तो लग ही जाएंगे । 
खंडन : इस बचकाने वक्तव्यके संदर्भमें क्या लिखें ?

४. (कहते हैं ) `हिंदुओंको इस्लामके प्रति आकर्षण हुआ, कनिष्ठ जाति -जमातिका द्वेष करनेवाले वरिष्ठ वर्गका अत्याचार उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था; अत: वे मुसलमान बन गए !'

झूठ : इस्लामी सैनिकोंकी हिंसा, हत्याकांड आदि अल्प महत्त्वपूर्ण हैं । अर्थात स्थापनाके संदर्भमें भारतमें इस्लामअल्प महत्त्वपूर्ण है, यद्यपि यह आक्रमण आदि कुछ कारण नहीं, किंतु लोगोंका मत परिवर्तन हुआ । वे इस्लामकी ओर आकर्षित हुए । कनिष्ठ जाति -जमातिका द्वेष करनेवाला ऐसा वरिष्ठ वर्ग एवं उनका अत्याचार उन्हें अच्छा नहीं लगा; अत: वे इस्लामी बने तथा उन्होंने धर्मांतर किया । उन्होंने हिंदु स्मृतिका त्याग कर मुस्लिमोंका ‘शरीयत’ स्वीकार किया; अत: हिंदुस्थानके मध्ययुगका नया इतिहास लिखा जाना चाहिए ।
दलित एवं वनवासियोंको हिंदू समाजके उच्च वर्णियोंने दलित बनाया, शोषण किया, छल किया; अत: मध्ययुगमें जो मुस्लिम आक्रमण हुआ, उसमें उन्होंने मुसलमानोंका साथ दिया । गजनीका महम्मद गोरी तथा औरंगजेबने जो मंदिर तोडे, उनमें स्थित बेशुमार संपत्ति लूटकर दलित निर्धनोंमें बांट दी तथा उच्च वर्णियोंकी हत्या की । दलितोंका उद्धार करने हेतु ही मुस्लिम आक्रमण हुए । पाठशाला, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय आदिमें यह इतिहास पढाया जाता है । 
खंडन : ऐसे ये सभी अनुचित सूत्र प्रस्तुत किए गए, उनमें जरा भी तथ्य नहीं है । अपवादसे भी, इतिहासमें कहीं ऐसा प्रमाण नहीं है कि नगरमें रहनेवाले मजदूरोंने, निचली जातियोंने हिंदुओंकी अत्याचारी समाजरचनासे मुक्ति पाने हेतु उसका स्वागत किया ।  मानवेंद्र रॉय नामके अग्रणी बोल्शेविकद्वारा कहा गया यह प्रखर झूठ है । इस हबीबने उसी झूठको पैâलाया । इसके विपरीत उसका समकालीन, सहयोगी अल्बेरूनी कहता है, `सभीके सभी हिंदू मुस्लिमोंके विरुद्ध जबरदस्त क्रोधित हो गए थे । '

– गुरुदेव डा. काटेस्वामीजी (घनगर्जित, फरवरी २००८) 

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