ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५११६
नियोजित प्रधानमंत्री मोदीसे हिंदु विधिज्ञ परिषदद्वारा मांग !
मुंबई – मालेगावमें वर्ष २००८ में हुए विस्फोट प्रकरणमें हिंदुनिष्ठोंको अकारण लिप्त कर उन्हें प्रताडित किया गया एवं उनपर आरोपपत्र प्रविष्ट करनेमें समयका अपव्यय किया जा रहा है है । इसलिए हिंदु विधिज्ञ परिषदने नियोजित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय गृहमंत्रालयको २० मई २०१४ को पत्र लिखकर राष्ट्रीय अन्वेषण संस्थाके महासंचालक शरदकुमारको निलंबित कर उनकी विभागीय जांच करनेकी मांग की गई हैै । इस पत्रमें हिंदु विधिज्ञ परिषदने न्यायालयमें प्रविष्ट जनताभिमुखी याचिकाओंकी संक्षेपमें जानकारी दी है । तत्पश्चात शरदकुमारके विरोधमें कार्यवाही करने हेतु आवश्यक कारणोंकी पूरी जानकारी दी ।
इस पत्रमें कहा गया है कि,
१. राष्ट्रीय अन्वेषण तंत्र स्थापित होनेसे पूर्व महाराष्ट्रका आतंकवादविरोधी पथक मालेगावमें वर्ष २००६ एवं २००८ में हुए विस्फोटोंकी जांच करता था । मालेगाव-२००६ के विस्फोटमें सभी अपराधी मुसलमान हैं, जबकि मालेगाव-२००८ के विस्फोटमें सभी अपराधी हिंदु हैं । अपराधियोंको लिप्त करने हेतु महाराष्ट्र आतंकवादविरोधी पथकद्वारा साक्ष्य एकत्र करते समय जो षडयंत्र रचा गया, उस विषयमें दोनो हीं प्रकरणोंमें लगाए गए आरोपोंमें साम्य है । दोनों ही प्रकरणोंमें आतंकवादविरोधी पथकद्वारा अपराधियोंका अपहरण कर उन्हें अवैधानिक रूपसे कारागृहमें रखना, अपराधियोंके घरमें आर.डी.एक्स. छिपाकर रखना, अपराधियोंके साथ मारपीट कर कबुलीजबाब लेना, इत्यादि आरोप लगाए गए हैं ।
२. ये दोनों प्रकरण राष्ट्रीय अन्वेषण तंत्रको हस्तांतरित किए गए । तत्पश्चात राष्ट्रीय अन्वेषण तंत्रने मालेगाव-२००६ विस्फोट प्रकरणमें पुनः जांच करनेका नाटक कर इस प्रकरणमें शीघ्रतासे पूरक आरोपपत्र प्रविष्ट किए । तत्पश्चात इस प्रकरणके अपराधियाने प्रतिभूति प्राप्त करने हेतु आवेदन पत्र दिया । इसपर राष्ट्रीय अन्वेषण तंंत्रने ना-हरकत पत्र दिया एवं अपराधियोंकी प्रतिभूतिपर मुक्तता की गई ।तदुपरांत इन्हीं अपराधियोंने अभियोगसे मुक्त करनेके विषयमें आवेदन दिया । इसे भी राष्ट्रीय अन्वेषण तंत्रने ना-हरकत पत्र दिया एवं सभी अपराधी मुक्त हुए ।
३.परंतु मालेगाव-२००८ प्रकरणके अपराधीr हिंदु रहनेसे राष्ट्रीय अन्वेषण तंत्रने अपनी पूरी शक्ति इन अपराधियोंको अधिकाधिक दिनतक कारागृहमें कैसे रखा जाएगा, इसपर व्यय की । इस प्रकरणके एक अपराधी सुधाकर चतुर्वेदीने मुंबई उच्च न्यायालयमें महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी पथकपर लगाए गए अपराधोंकी जांच होनेके संदर्भमें याचिका साक्ष्यहेतु संलग्न दस्तावेजोंके साथ प्रविष्ट की । इसपर राष्ट्रीय अन्वेषण तंत्रने मालेगाव-२००८ के प्रकरणमें न्यायालयके समक्ष ऐसा बचाव किया कि महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी पथकके विरुद्ध लगाए गए आरोप यह प्रकरण राष्ट्रीय अन्वेषण तंत्रको हस्तांतरित होनेसे पूर्वके हैं । इसलिए उनकी जांच नहीं की जाएगी । इस आशयका प्रतिज्ञापत्र अतिरिक्त पुfिलस अधीक्षक अरविंद दिग्विजय नेगीने १३.८.२०१३ को उच्च न्यायालयमें प्रविष्ट किया । यह सब बनाव महासंचालकने तत्कालिन गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदेको प्रसन्न रखने हेतु किया । इसलिए वे अपराधी सिद्ध होते हैं ।
क्या इस प्रकरणमें उपस्थित प्रश्नोंको शरदकुमार उत्तर देंगे ?
१. मालेगाव-२००६ के प्रकरणमें पूरक आरोपपत्र त्वरित प्रविष्ट किया गया; परंतु मालेगाव-२००८ के प्रकरणमें पूरक आरोपपत्र पिछले ३ वर्षोंसे प्रविष्ट नहीं किया गया । क्या यह शरदकुमारकी निष्क्रियता नहीं है ?
२. मालेगाव-२००८ के प्रकरणमें जांच करनेमें असमर्थता दर्शानेवाले तंंत्रद्वारा ऐसे ही अपराधियोंकी जांच मालेगाव-२००६ के प्रकरणमें शीघ्रगतिसे कैसे की गई ?
३. कर्नल पुरोहितको फंसाने हेतु घरमें आर.डी.एक्स.छिपाकर रखना, सैनिकी अधिकारियोंका दूरभाष छिपकर सुनना ये बातें देशकी सुरक्षाके लिए विनाशक घटक हैं । क्या यह शरदकुमारको ज्ञात नहीं है ?
४. क्या सुशीलकुमार शिंदेका सुनकर हिंदुओंको फंसाने हेतु राष्ट्रीय अन्वेषण तंत्रद्वारा दोनो ही प्रकरणोंमें अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाना भ्रष्टाचार नहीं है ?
इस प्रकारसे शरदकुमारद्वारा किए गए अपराध गंभीर सिद्ध होते हैं । इसलिए पत्रके अंतमें हिंदु विधिज्ञ परिषदद्वारा मांग की गई है कि उन्हें निलंबित कर उनकी विभागीय जांच हो ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात