कभी यह मंदिर अखंड भारत का प्रमुख तीर्थ स्थल था परंतु बंटवारे की बंदिशों का असर यहां भी हुआ है। १९४७ से पहले जब भारत-पाक विभाजन नहीं हुआ था तो कराची के पंचमुखी हनुमान मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन करने आते थे।
विभाजन के बाद परिस्थितियां बदलने से यहां आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद उतनी नहीं रही परंतु यहां विराजमान हनुमानजी के प्रति भक्तों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई। आज भी बजरंगबली के दरबार में अनेक श्रद्धालु उन्हें नमन करने आते हैं।
इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। कहते हैं कि यहां विराजमान हनुमानजी पिछले १७ लाख वर्षों से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं। जिन हिन्दुओं ने विभाजन के समय अपना घर नहीं छोडा, उनके लिए ये मंदिर आस्था का अमिट चिह्न बन चुका है। यहां मंगलवार-शनिवार को काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
पंचमुखी हनुमान मंदिर कालचक्र के विभिन्न दौर से गुजरकर आज भी शान से खडा है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार १८८२ में इसका पुनर्निमाण हुआ था। इस मंदिर के दर्शन के लिए भारत से भी श्रद्धालु जाते हैं परंतु उन्हें पाकिस्तान सरकार से इसकी अनुमति लेनी होती है। इसकी प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल है।
श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान श्रीराम भी आए थे। यहां बालाजी की प्रतिमा जमीन से प्रकट हुई थी। जहां ये मंदिर है वहां से ११ मुट्ठी भरकर मिट्टी हटाई गई, तब प्रतिमा प्रकट हुई। ११ अंक का इस मंदिर में विशेष महत्व है।
यहां की प्रबल मान्यता के अनुसार जो श्रद्धालु बालाजी की ११ परिक्रमाएं पूर्ण करता है, वे उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं। २१ परिक्रमा करने वाले को हनुमानजी पुनः दर्शन का अवसर देते हैं।
मंदिर का इतिहास जितना पुराना है उतनी ही पुरानी है यहां के चमत्कारों की गाथा। पंचमुखी हनुमानजी के दर्शन से असंख्य श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण हुई है।
स्त्रोत : पत्रिका