अहमदाबाद – गुजरात उच्च न्यायालय ने मुस्लिम महिला की उस याचिका को निरस्त कर दिया जिसमें उसके पति के दूसरे विवाह को अस्वीकार करने की मांग की गई थी। साथ ही स्पष्ट किया कि, पहली पत्नी की मंजूरी के बिना भी मुस्लिम पति दूसरा विवाह कर सकता है। न्यायाधीश जे.बी. पारडीवाला की पीठ ने भावनगर निवासी साजेदा बानू की याचिका निरस्त करते हुए ये निर्णय दिया।
उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की, मुस्लिम विवाह को मुस्लिम पर्सनल लॉ-बोर्ड के नियमों के अनुसार ही देखा जा सकता है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि, पति चाहे तो अपने जीवन के कार्यकाल में चार विवाह कर सकता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार मुस्लिम पुरुष एक पत्नी के जीवित होने पर भी दूसरा विवाह कर सकता है। इसके लिए उसे पहला विवाह विच्छेद करने की भी आवश्यकता नहीं है।
मुस्लिम लॉ के अनुसार विवाह एक करार है जो मात्र व्यक्तिगत आनंद और बच्चों के लिए किया जाने वाला करार है। खास कर पुरुषों की जरूरतें इसमें प्राथमिक रूप से होती हैं। पैगंबर के उपदेशानुसार, जो व्यक्ति विवाह नहीं करता वह उनका अनुयायी नहीं है। जहां तक महिला पर अत्याचार का मामला है, इसे स्थानीय न्यायालय में चलाया जा सकता है।
स्त्रोत : जागरण