गंगा नदीके अस्तित्वको धोखा !

ज्येष्ठ पूर्णिमा, कलियुग वर्ष ५११६

यदि ऐसी ही स्थिति रही, तो . . .
. . .पाप हम सबके सिरपर होगा !


वर्तमान समयमें भारतियोंके लिए अनन्यसाधारण महत्त्व रखनेवाली गंगा नदीकी अत्यधिक दुरावस्था हो गई है । फरवरी २००९ में स्थापित 'नैशनल गंगा रिवर बेसिन ऑथारिटी' के (एन.जी.आर.बी.के) सदस्य एवं पर्यावरणशास्त्रज्ञ बी.डी. त्रिपाठीने चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि गंगा नदीका अस्तित्व ही धोखेमें आ गया है । पिछले ४० वर्षोंके संशोधनके अनुसार गंगाकी स्थिति इतनी गंभीर है कि अब यदि कदम नहीं उठाया गया, तो गंगा कहीं लुप्त न हो जाए, ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई है । 

कांग्रेस सरकारद्वारा अब्जों रुपयोंका व्यय !

वर्ष १९८५ में राजीव गांधीने गंगा शुद्धिकरणका नाटकीय कार्य हाथमें लिया  । अबतक इस योजनापर डेढ सहस्र करोड रुपए व्यय हो चूके है । वर्तमान समयमे चालू कामोंपर और भी २० सहस्र करोड रुपए व्यय होना अपेक्षित है । यदि गंगा नदी स्वच्छ नहीं हुई, तो पश्चात इतनी बडी मात्रामें व्यय हुआ निधि कहां गया ? इसका शोधन करना पडेगा । इस निधिका अपहार हुआ होगा, ऐसा ही कहना पडेंगा । गंगा नदी भारतके उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, जारखंड, बिहार एवं पश्चिम बंगाल इन पांच राज्योंमे बहती है । पांचो ही राज्योंने इस नदीको प्रदूषित करनेमें सहायता की । केंद्रशासनद्वारा गंगाको 'राष्ट्रीय नदी' के रूपमे घोषित किया गया है; परंतु उसे राष्ट्रीय रखने हेतु कोई उपाययोजना अथवा रचना नहीं सिद्ध की । श्री. त्रिपाठीने गंगाकी इस स्थितिके विषयमें कांग्रेस सरकारका अनेक बार ध्यान केंद्रित करनेका प्रयास किया; परंतु सरकारने उसे जानबूझकर दुर्लक्षित ही किया । ‘एन.जी.आर.बी.के'  समिति स्थापित होनेके उपरांत चार वर्षोंकी कालावधिमें केवल तीन बैठकें आयोजित की गई । संभवत: गंगा नदी समाप्त होने हेतु ही ये सब प्रयास चालू हैं, इस प्रकारकी आशंका हिंदुओंके मनमें उपस्थित हो रही है । 

वर्तमान स्थिति 

प्रतिदिन गंगामें १.१ करोड लिटर गंदा पानी मिल जाता है । १९८२ में गंगामें डॉल्फीनकी संख्या ५ सहस्र थी, जो अब केवल १ सहस्र ८०० है । वर्तमान समयमें गंगाका प्रवाह न्यून हो गया है । पानी बहाकर ले जानेकी क्षमता न्यून हो गई है तथा नदीका पानी दिनोंदिन न्यून हो रहा है । इसलिए अब गंगाका प्रदूषण यह विषय महत्वपूर्ण नहीं रहा, अपितु गंगाकी रक्षाका विषय महत्त्वपूर्ण हो गया है । 

गंगाका आध्यात्मिक महत्त्व ! 

गंगा हिंदुओंके जीवनमें उनके जन्मसे मृत्युतक एक अनिवार्य अंग है । बिलकुल जन्में  बच्चेको गंगाजल पिलाया जाता है, तो मृत्युके अवसरपर भी गंगातीर्थ ही पिलाया जाता है । भारतियोंमें विद्यमान सभी १६ संस्कारोंमें कहीं न कहीं गंगाका जल निश्चित रूपसे तीर्थके रूपमें प्रयुक्त किया जाता है । गंगाके जलमें मूलतः जंतू मारनेकी क्षमता होती है । इसलिए यह जल पुनः शुद्ध करनेकी आवश्यकता नहीं प्रतीत होती । इतना पवित्र गंगाजल वर्तमान समयके राजनेताओंकी निष्क्रियताके कारण भारी मात्रामें प्रदूषित हो गया है एवं नागरिकोंको अब ऐसा भय प्रतीत हो रहा है कि कहीं उसके पीनेके कारण रोगका प्रादूर्भाव न हो । यदि ऐसी ही स्थिति रही, तो देशको मिले एक विशाल आध्यात्मिक वारिससे हम वंचित रहेंगे एवं उसका पाप हम सबके सिरपर होगा ! 

कठोर निर्णयोंकी आवश्यकता ! 

बिजली उत्पन्न करने हेतु गंगाके मार्गमें अनेक स्थानोंपर बडे बांधोंका निर्माणकार्य किया गया है । अनेक स्थानोंपर प्रवाह अडाया गया है । इसलिए आगे-आगे जाते समय उसका प्रवाह ही न्यून हो रहा है । भविष्यमें ऐसे कोई भी बांधका निर्माणकार्य करनेपर स्थायी रूपसे प्रतिबंध लगाना पडेंगा । चालू रहनेवाले सभी बडे बांधोंके निर्माणकार्यको भी रोक लगानी पडेंगी । बिजली उत्पन्न करने हेतु अन्य नैसर्गिक पर्यायोंका उपयोग करना पडेंगा । गंगा नदीके तटपर सहस्रों कारखानोंका पानी प्रक्रिया किए बिना छोडा जाता है तथा अनेक महानगरपालिकाओंका मैलामिश्रित जल गंगाके प्रवाहमें छोडा जाता है । यदि प्रकिया न करते हुए किसी व्यक्तिने पानी छोडा, तो उस प्रत्येकपर फौजदारी  प्रविष्ट कर कारागृहमें डालना होगा । गंगा नदीके परिसरमें किनारेपर कहीं भी निर्माणकार्य करनेवाले लोगोंको प्रतिबंध करना पडेगा । जिन्होंने ऐसे निर्माणकार्य किए हैं, उनके निर्माणकार्य समय आनेपर तोडना भी पडेंगे । भारतके प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदीने वाराणसीसे चुनाव लडनेके कारण हिंदुओंकी आशाएं कुछ मात्रामें पल्लवित हो गई हैं  । श्री मोदीने ऐसा भी कहा है कि ‘गंगा नदीकी सुरक्षा मेरे प्रमुख कार्योंमें एक है' ।

इसलिए वे सीधे कार्यको कब आरंभ करेंगे, इसपर सबका ध्यान केंद्रित है !

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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