मुंबर्इ – पैरिस आतंकी आक्रमणो में कम से कम १२९ लोगों के मारे जाने के बाद शिवसेना ने कहा है कि, अब समय आ गया है कि भारत कश्मीर में समय-समय पर इस्लामिक स्टेट के झंडे लहराए जाने की घटनाओं से ‘कड़ाई’ के साथ निपटा जाए। शिवसेना ने यह भी कहा कि आतंकियों के मानवाधिकारों की बातें बंद की जानी चाहिए क्योंकि उन्हें जड से उखाडे जाने की आवश्यकता है।
शिवसेना ने मुखपत्र ‘सामना’ के एक संपादकीय में कहा, ‘पैरिस हमलों की जिम्मेदारी लेने वाला इस्लामिक स्टेट बीते कुछ समय में जम्मू-कश्मीर में भी सक्रिय हो गया है। कश्मीर में इस्लामिक स्टेट के झंडों को लहराया जाना एक बहुत गंभीर मुद्दा है। पैरिस में जनसंहार के बाद हमें इस मुद्दे से अधिक गंभीरता के साथ निपटने की जरुरत है।’ इसमें कहा गया कि, भारत के लिए यह जरुरी है कि वे इस बात को समझे कि पश्चिमी देशों की आतंकवाद के खिलाफ लडाई सिर्फ उनके अपने हितों तक सीमित है और ‘हमें आतंक से अपने तरीके से लडने की आवश्यकता है।’
शिवसेना ने यह भी स्पष्ट किया की अमरीका ने अपने स्वार्थ के लिए इराक और सद्दाम हुसेन को नष्ट किया था । फ्रांस, इस अमरिकी पाप का भागीदार है । सद्दाम के पतन के उपरांत सीरिया समेत मध्य एशिया के सारे राष्ट्रों में अराजकता निर्माण हुई । इसी अराजकता से इस्लामिक स्टेट जैसा भूत निर्माण हुआ है । अब आतंकवाद का ये भूत यूरोपीय राष्ट्रों को भी नहीं छोड़ रहा है ।
शिवसेना ने आगे यह भी लिखा है की, बीते कुछ वर्षों में फ्रांस में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ी है । जिस प्रकार इसकी बढ़ती जनसंख्या ने भारत में सिर दर्द निर्माण किया है, वही स्थिती इन दिनों फ्रांस में भी हैं । किंतु दोनों के बीच एक अंतर है । भारत के राजनेता मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या के सामने झुकने के लिए सदैव तैयार रहते हैं, परंतु फ्रांस का राजनेता इस बढ़ती जनसंख्या की आक्रामकता को कदापि स्वीकार नहीं करता ।
शिवसेना ने कहा, ‘पाकिस्तान समेत कई देशों ने पैरिस में हुए आतंकी हमलों की निंदा की है। आप इस बात पर सिर्फ हंस ही सकते हैं कि, पाकिस्तान जैसा देश इन हमलों की निंदा कर रहा है क्योंकि हमारा यह पडोसी देश तो एक ऐसा कारखाना है, जहां आतंकी बनाए जाते हैं। किंतु जब तक यह आतंकी हमले अमेरिका और यूरोपीय देशों की अपनी धरती पर नहीं होते, तब तक वे भारत के दर्द को नहीं समझ सकते।’
शिवसेना ने कहा, ‘आतंकवादी अब तो यूरोपीय देशों को भी नहीं छोड रहे। कभी अभेद्य कही जाने वाली उनकी सुरक्षा दीवारों में अब दरारें बढ रही हैं। इस घटना में मरने वालों की संख्या दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हुई किसी घटना की तुलना में सबसे ज्यादा है। यूरोप को इस घटना से सबक लेना चाहिए।’
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स