उत्तराखंड त्रासदी के एक वर्ष: आपदा के जख्म अब भी हैं हरे !

आषाढ कृष्ण पक्ष ५, कलियुग वर्ष ५११६ 


देहरादून –  उत्तराखंड में दैवीय आपदा से हुई तबाही को एक साल पूरा हो चुका है, मगर इस त्रासदी के जख्म अब भी हरे नजर आ रहे हैं। कुदरत के कहर से तबाह हुए गांवों में न तो जिंदगी पटरी पर लौट पाई है और न क्षतिग्रस्त सड़कें, पुल, स्कूल व अस्पताल ही पूरी तरह दुरूस्त हो सके। इस त्रासदी में मारे गए लोगों के परिजनों व पीड़ित परिवारों फौरी राहत भले ही मिल गई हो, मगर आपदा में बेघर हुए हजारों परिवारों को एक साल बाद भी नई छत नसीब नहीं हो पाई। चारधाम यात्रा शुरू करने के लिए लगातार हाथ-पैर मारती रही सूबे की सरकार ने अब तक उन ३३७  गांवों की सुध लेना भी मुनासिब नहीं समझा, जो खतरे के मुहाने पर खड़े हैं।

जून, २०१३  की आपदा में बेघर हुए राज्य के करीब ढाई हजार परिवारों को सूबे की सरकार एक साल बाद भी नई छत मुहैया नहीं करा पाई। इस तात्कालिक व बेहद महत्वपूर्ण मसले को लेकर नीति-निर्धारण में हुई देरी सबसे बड़ी अड़चन साबित हुई। पूर्व में उनके लिए प्री-फैब्रिकेटेड मकान बनाने का निर्णय हुआ, लेकिन इन आवास की गुणवत्ता पर सवाल उठने के बाद उन्हें आवास बनाने के लिए आर्थिक मदद देने का फैसला हुआ। राहत की बात सिर्फ यह है कि नए आवास तैयार होने तक सरकार इन परिवारों को किराए के रूप में प्रतिमाह तीन हजार रुपये की सहायता दे रही है।

ऐसे हर परिवार को नए आवास के लिए चार किस्तों में पांच लाख रुपये दिया जाना है। करीब २२६५  परिवारों को डेढ़ लाख रुपये की पहली किस्त दी जा चुकी है, जबकि ७७  परिवारों के लिए भूमि चयन की प्रक्रिया जारी है। साथ ही, २००  परिवारों को दो लाख रुपये की दूसरी किस्त दे दी गई है। जनवरी २०१४ में शुरू हुआ यह काम दो साल में पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया है। आपदा के खतरे से जूझ रहे गांवों के सुरक्षित स्थान पर विस्थापन की राह भी सरकार नहीं तलाश पाई। राज्य में ३०४  संवेदनशील गांव विस्थापन के लिए चिन्हित किए जा चुके हैं, जिनमें से १७५  गांवों का जीएसआई, खनिकर्म व आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा तकनीकी सर्वे भी हो चुका है।

औसतन १०६  मकानों व ५४५  जनसंख्या वाले ऐसे प्रत्येक गांव के विस्थापन पर औसतन ३५.०४  करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। राज्य सरकार ने इन गांवों के विस्थापन के लिए केंद्र से १०६५३ करोड़ की वित्तीय मदद मांगी, मगर केंद्र सरकार ने इस मद में पैसा देने से हाथ खड़े कर दिए। नतीजा यह कि राज्य सरकार आपदा के खतरे से जूझ रहे इन गांवों के पुनर्वास व विस्थापन की नीति तो तैयार कर चुकी है, मगर वित्तीय संसाधनों के अभाव में यह मुहिम अब पूरी तरह खटाई में पड़ती दिख रही है।

स्त्रोत : जागरण 

Leave a Comment

Notice : The source URLs cited in the news/article might be only valid on the date the news/article was published. Most of them may become invalid from a day to a few months later. When a URL fails to work, you may go to the top level of the sources website and search for the news/article.

Disclaimer : The news/article published are collected from various sources and responsibility of news/article lies solely on the source itself. Hindu Janajagruti Samiti (HJS) or its website is not in anyway connected nor it is responsible for the news/article content presented here. ​Opinions expressed in this article are the authors personal opinions. Information, facts or opinions shared by the Author do not reflect the views of HJS and HJS is not responsible or liable for the same. The Author is responsible for accuracy, completeness, suitability and validity of any information in this article. ​