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रामजन्मभूमि आंदोलन को सफलता के शिखर तक पहुंचानेवाले विश्‍व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल का निधन !

नई दिल्ली – विश्व हिंदू परिषद के संरक्षक और अंतर्राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष अशोक सिंघल का आज गुडगांव के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। प्रकृती बिगडने के बाद उन्हें पिछले गुरुवार को दोबारा गुडगांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

डॉक्टरों के अथक प्रयास के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। ८९ साल के अशोक सिंघल को सांस संबंधी परेशानी थी । उनसे मिलने के लिए भाजप के कर्इ नेता अस्पताल पहुंचे। आज सुबह ही उनका स्वास्थ्य जानने के लिए भाजप के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी पहुंचे थे। सिंघलजी के निधन के पश्चात पूरे विश्व हिंदू परिषद में शोक का वातावरण है।

उनके निधन पर प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘सिंघल जी का संपूर्ण जीवन देश के लिए समर्पित था । आनेवाली पीढियों को उनसे प्रेरणा मिलती रहेगी !’

भाजपा सांसद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा, ‘वे हिन्दुत्व जागरण युग के प्रणेता थे । उनकी अंतिम इच्छा राम मंदिर निर्माण थी !’

भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ जी ने कहा, ‘रामजन्मभूमि आंदोलन को सफलता के शिखर तक पहुंचाने में अशोक सिंघल जी की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी ।’

हम भी हिन्दू जनजागृति समिति की ओर से अशोक सिंघल जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । साथ ही, हम कहना चाहते हैं कि, राम मंदिर निर्माण ही उनको दी गई वास्तविक श्रद्धांजलि होगी । इसके लिए सभी हिन्दुत्वनिष्ठों कोे संगठित रूप से कार्य आरंभ करना चाहिए । – हिन्दूजागृति

हिन्दुत्व के लिए अशोक सिंघलजी ने किया हुआ कार्य

अशोकजी का जन्म आश्विन कृष्ण पंचमी (२७ सितम्बर, १९२६) को उत्तर प्रदेश के आगरा नगर में हुआ था। उनके पिता श्री महावीर सिंहल शासकीय सेवा में उच्च पद पर थे। घर के धार्मिक वातावरण के कारण उनके मन में बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जागृत हो गया। उनके घर संन्यासी तथा धार्मिक विद्वान आते रहते थे। कक्षा नौ में उन्होंने महर्षि दयानन्द सरस्वती की जीवनी पढ़ी। उससे भारत के हर क्षेत्र में सन्तों की समृद्ध परम्परा एवं आध्यात्मिक शक्ति से उनका परिचय हुआ।

१९४२ में प्रयाग में पढते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया। उन्होंने अशोकजी की माता को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनार्इ । इससे माता ने अशोकजी को शाखा जाने की अनुमति दे दी।

१९४७ में देश विभाजन के समय कांग्रेसी नेता सत्ता प्राप्ति की खुशी मना रहे थे; पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा ? अशोकजी भी उन देशभक्त युवकों में थे। अतः उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य हेतु समर्पित करने का निश्चय कर लिया। बचपन से ही अशोकजी की रुचि शास्त्रीय गायन में रही है। संघ के अनेक गीतों की लय उन्होंने ही बनायी है।

१९४८ में संघ पर प्रतिबन्ध लगा, तो अशोकजी सत्याग्रह कर जेल गये। वहां से आकर उन्होंने बी.ई. अंतिम वर्ष की परीक्षा दी और प्रचारक बन गये। अशोकजी की सरसंघचालक श्री गुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही। प्रचारक जीवन में लम्बे समय तक वे कानपुर रहे। यहां उनका सम्पर्क श्री रामचन्द्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ। वेदों के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था। अशोकजी अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टतः स्वीकार करते हैं।

१९७५ से १९७७ तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबन्ध रहा। इस दौरान अशोकजी इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे। आपातकाल के बाद वे दिल्ली के प्रान्त प्रचारक बनाये गये। १९८१ में डाॅ. कर्णसिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ; पर उसके पीछे शक्ति अशोकजी और संघ की थी। उसके बाद अशोकजी को विश्व हिन्दू परिषद् का दायित्व दिया गया।

इसके बाद परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, गोरक्षा, आदि अनेक नये आयाम जुड़े। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, जिससे परिषद का काम गांव-गांव तक पहुंच गया। इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी। भारतीय इतिहास में यह आन्दोलन एक मील का पत्थर है। आज विहिंप की जो वैश्विक ख्याति है, उसमें अशोकजी का योगदान सर्वाधिक है।

अशोकजी परिषद के काम के विस्तार के लिए विदेश यात्रा पर जाते रहे हैं। इसी वर्ष अगस्त-सितम्बर में भी वे इंग्लैंड, हाॅलैंड और अमरीका के एक महीने की यात्रा पर गये थे। परिषद के महामंत्री श्री चम्पत राय जी भी उनके साथ थे। पिछले कुछ समय से उनके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था। इससे उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही थी। इसी के चलते १७ नवम्बर, २०१५ को दोपहर में गुडगांव के मेदांता अस्पताल में उनका निधन हुआ।

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