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वैज्ञानिक श्री. पी.एम. भार्गवद्वारा गोमांस के विषय में किए गए सन्दर्भहीन वक्तव्य का प्रतिवाद

‘आयुर्वेद के अनुसार गोमांस अनेक व्याधियोंपर समाधान !’ वैज्ञानिक श्री. पी.एम. भार्गव

चरक संहिता में गोमांस निषिद्ध ही है !

vasubaras

शिरोभाग : शास्त्रज्ञ (?) पी.एम. भार्गवद्वारा किया गया ‘आयुर्वेद के अनुसार गोमांस अनेक व्याधियोंपर समाधान !’, यह वक्तव्य अर्धसत्य है !

चरक संहिता में गोमांस की योग्यता एवं गुणधर्म बताए गए हैं। उसीप्रकार उस में रोगोंके उपयोग भी दिए गए हैं। इन संदर्भोंको हम आगे आगे देखेंगे ही; परंतु इस से पूर्व प्राचीन परिस्थिति भी समझ में लेना आवश्यक है ….

१. प्राचीन समय में आयुर्वेद सिखने से पूर्व धर्मशास्त्र का अभ्यास होता था। इसलिए छात्राओंको अच्छी तरह से ज्ञात था कि, ‘गोमांस नहीं खाना चाहिए’

प्राचीन समय में गुरुकुल में आयुर्वेद सिखाया जाता था। आयुर्वेद के लिए प्रवेश लेने से पूर्व छात्राओंको धर्मशास्त्र की शिक्षा ग्रहण करनी पडती थी। ‘गोहत्या करना महापाप है एवं गोमांस खाना सर्वथा निषिद्ध है’, यह हिन्दू धर्मशास्त्र में अनेक स्थानोंपर बताया ही गया है। इसलिए छात्र को ज्ञात रहता था कि गोमांस नहीं खाना चाहिए।

२. आयुर्वेद एक ‘शास्त्र’ होने से उस में सभी पदार्थोंकी योग्यता एवं गुणधर्म का उल्लेख होना

‘चरकसंहिता में गोमांस की योग्यता एवं गुणधर्म क्यों बताए गए होंगे ?’, तत्कालीन परिस्थिति का विचार करते हुए इस का अभ्यास होना चाहिए। आयुर्वेद शास्त्र है एवं ‘सर्वं द्रव्यं पाञ्चभौतिकम् अस्मिन् अर्थे।’ (चरकसंहिता, सूत्रस्थान, अध्याय २६, श्लोक १०) अर्थात ‘प्रत्येक पांचभौतिक वस्तु औषधि है’, यह आयुर्वेद का सिद्धांत है। इस के अनुसार आयुर्वेद एक शास्त्र के रूप में सभी बातोंके गुणधर्म बताता है। इसीलिए गोमांस के गुणधर्म भी बताए गए हैं।

३. एक वैद्य को गोमांस खानेवाले आसुरी लोगोंके स्वास्थ्य की जानकारी होने हेतू गोमांस के गुणधर्म आयुर्वेद में दिए जाते हैं

चरकसंहिता की कालावधि में (ख्रिस्तपूर्व न्यूनतम २ सहस्र वर्ष) चांडाल तथा म्लेंच्छ समान प्रजातियां थीं। उससे भी पूर्व के इतिहास में असुर, राक्षस आदि हो कर गए, यह हम सभी को ज्ञात है। इस प्रकार से आसुरी लोग यदि गोमांस का भक्षण करते होंगे, तो उनको कौन कौनसे रोग होने की संभावना है, कौन कौनसे नहीं, यह उनके आहार के गुणधर्म से ध्यान में आने हेतु चरकसंहिता में गोमांस के गुणधर्म बताए गए हैं।

४. चरकसंहिता में पहले ही गोमांस न खाने के विषय में नियम बताए गये है

शास्त्रज्ञ (?) भार्गव ने जिस चरकसंहिता का प्रमाण देते हुए गोमांस का महत्त्व बताने का दयनीय प्रयास किया है, उस चरकसंहिता में गोमांस के संबंध में मूल श्लोक एवं उनके अर्थ आगे दिए अनुसार हैं …

अहिततमानप्युपदेक्ष्यामः। गोमांसं मृगमांसानाम्। – चरकसंहिता, सूत्रस्थान, अध्याय २५, श्लोक ३९

अर्थ : प्राणियों के मांस में गोमांस स्वास्थ्य के लिए अत्यंत अहितकर है !

गव्यं केवलवातेषु पीनसे विषमज्वरे।
शुष्ककासश्रमात्यग्निमांसक्षयहितं च तत् ॥ – चरकसंहिता, सूत्रस्थान, अध्याय २७, श्लोक ८०

अर्थ : गोमांस केवल वातरोग, पुरानी सर्दी, सन्निपात ज्वर(विषमज्वर), कोरा खोकला, श्रम, अति भूक लगना तथा मांस का क्षय होना आदि विकारों में हितकर है।

अर्थात प्रथम ‘गोमांस अत्यंत अहितकर होनेसे उसे नहीं खाना चाहिए’ यह नियम बता कर ‘गोमांस से अमुक अमुक रोग अच्छे होते हैं’, यह अपवाद भी बताया गया है। अंग्रेजी में ‘The-exception proves the rule’, अर्थात ‘अपवाद से ही नियम सिद्ध होता है’, ऐसी कहावत है। भार्गव ने अपवाद बताया, जिस से ‘गोमांस नहीं खाना चाहिए’ यह नियम सिद्ध हुआ।

५. भार्गवद्वारा अर्धसत्य बता कर समाज को भ्रमित करना, एक बदमाशी है !

एक संत ने प्रवचन में बताया कि, “आप को नरक में जाना है, तो मद्यप्राशन करें !’’ अब कोई ऐसा कहेगा कि, उन संतोंने मद्यप्राशन करने को कहा है, तो ऐसा कहना जैसे बदमाशी है, वैसा ही भार्गव का वक्तव्य भी !

६. तार्किक दृष्टि से भी भार्गव का वक्तव्य विसंगत है

चरकसंहिता में जो विकार गोमांस खानेसे अच्छे होते हैं, ऐसा बताया गया है, साथ में उन विकारोंपर असंख्य औषधियां भी बताई गई हैं। कौनसा ‘बुद्धिमान’ इन औषधियोंके अतिरिक्त स्वास्थ्य के लिए अत्यंत अहितकर ऐसा ‘गोमांस’ खाना पसंद करेगा ? अर्थात ‘चरकसंहिता का आधा अधूरा पठन कर स्वयं की प्रसिद्धि हेतु बिना आधार के वक्तव्य करनेवाले ऐसे लोग ही गोमांस खाना पसंद कर सकते हैं, यहां पर इसे अपवाद समझें !

७. समाज को गोमांस खाने के लिए प्रेरित करनेवाले भार्गव किसान के उत्पन्न का साधन छिन कर ले रहे हैं !

आयुर्वेद के अनुसार गाय से मिलनेवाले ‘पंचगव्य’ के असंख्य विकारों में उपयोग बताए गए हैं। आधुनिक विज्ञानद्वारा भी स्वीकार किया गया है कि, ‘गोमूत्र’ कर्करोग के समान असाध्य माने जानेवाले विकारोंपर भी गुणदायी है। इतनाही नहीं, अपितु कुछ दिन पूर्व ‘इतने इतने लिटर गोमूत्र पर प्रक्रिया करने पर इतना इतना ग्राम सोना मिल सकता है’, ऐसा संशोधन भी हुआ है। गाय का पालन कर उसके गोमूत्र का उपयोग करने से स्वास्थ्य के साथ सोना भी मिलेगा; परंतु गाय को मार कर खाने से क्या मिलेगा ?

‘गोमूत्र’ का उचित उपयोग किया गया, तो दूध न देनेवाली गाय भी प्रतिवर्ष ३ लाख रुपये तक प्राप्त करा दे सकती है। यह ध्यान में न लेते हुए चरकसंहिता में दिए सूत्र का अपनी सुविधा के अनुसार अर्थ निकाल कर समाज को गोमांस खाने हेतु प्रेरित करनेवाले पी. एम. भार्गव किसान के उत्पन्न का साधन छिनना चाहते हैं। अपनी जिव्हा लालसा की आपूर्ति करने हेतु अन्नदाता के पेट पर लत्ता प्रहार करनेवालोंको क्या कहेंगे ?

हमने प्रतिदिन मिलनेवाला सोने का अंडा लेना छोड कर सोने के अंडे देनेवाली मुर्गी को ही मारनेवाले मूरख की कहानी सुनी है। यहां भार्गव भी कहानी के उस मूरख के समान आचरण कर रहे हैं। अंतर इतना ही है कि, सोने के अंडे की कहानी में बताया गया मनुष्य ‘मूरख’ है तो भार्गव ‘शास्त्रज्ञ (या शास्त्र-अज्ञ)’ हैं !

८. ‘पुरस्कार वापसी’ तज्ञों को आवाहन !

देश में बढती असहिष्णुता के विरोध में भार्गव ने कुछ दिन पूर्व पद्मभूषण पुरस्कार लौटाया था। आज देश में पुरस्कार वापिस करनेवाले ‘भातगोटियों’ का कारवां बढता ही जा रहा है। चांवल में यदि एकमात्र भातगोटा होता है, तो वह तुरंत दिखाई देता है; परंतु जब ‘भातगोटे’ बढने लगते हैं, तो भार्गव जैसोंके लिए प्रसिद्धि हेतु अन्य रूप ढूंढना आवश्यक होता है। इसीलिए उन्होंने यह वक्तव्य किया होगा ! भार्गव एक शास्त्रज्ञ होने से कुछ दिनों तक गोमांस के संबंध में उनके वक्तव्य से बहुत कोलाहल मचेगा। समाचार वाहिनियोंपर निरर्थक चर्चाएं होंगी। कुछ दिनों में प्रकरण शांत होगा एवं संभवतः भार्गव को प्रसिद्धि के लिए चरक संहिता’ से कोई नया वाक्य ढूंढना पडेगा !

भार्गव का ‘अभ्यास’ देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि, चरक संहिता में उन्हें ऐसा खलबलिजनक अन्य वाक्य नहीं मिलेगा। इसलिए उनकी सुविधा के लिए चरक संहिता में दिया गया अगला श्लोक सहायता हेतू देकर रखते हैं …

नातिशीतगुरुस्निग्धं मांसमाजमदोषलम्।
शरीरधातुसामान्यादनभिष्यन्दि बृंहणम् ॥ – चरकसंहिता, सूत्रस्थान, अध्याय २७, श्लोक ६१

अर्थ : बकरे का मांस एवं नरमांस (मनूष्य का मांस) दोनों एक समान ही हैं। इनकी योग्यताएं एवं गुणधर्म आगे दिए अनुसार हैं – ये मांस अधिक ठंड, भारी अथवा स्निग्ध नहीं है। इनके खाने से जादा दोष नहीं लगते। ये शरीर में स्राव बढा कर नुकसान नहीं करते। ये मांस बल प्रदान करनेवाले हैं !

९. चरक संहिता का मनचाहा अर्थ लगोनवालोंने ध्यान में लेना चाहिए कि, चरक संहिता किसी ऐरेगैरेद्वारा नहीं लिखी गई !

भार्गवजी ! गोमांस की अपेक्षा बकरे का मांस एवं नरमांस अधिक अच्छा है ! गोमांस का तूफान शांत होते ही दूसरा तूफान उत्पन्न करें ! अर्थात इस नए तूफान में भी उपरोक्त प्रतिवाद निश्चित रूप से टीका रहेगा; क्यों कि चरक संहिता किसी ऐरेगैरेद्वारा नहीं, अपितु महर्षि आत्रेय के पट्टशिष्य महर्षि अग्निवेशद्वारा लिखी गई है। उन्हें कभी पुरस्कार वापसी का नाटक नहीं करना पडा। ये महर्षि इतने द्रष्टे थे कि उन्हें यह भी ज्ञात था कि ४ सहस्र वर्ष के उपरांत कोई आवारा आएगा एवं सूत्रोंका त्रुटिपूर्ण अर्थ लगा कर ‘गोमांस’ को ‘औषधि’ बता कर लोगोंकी बुद्धि भ्रष्ट करने का प्रयास करेगा !

इसीलिए उन्होंने संहिता के बिलकुल प्रथम अध्याय में बता कर रखा है कि,

यो भेषजमविज्ञाय प्राज्ञमानी प्रयच्छति।
त्यक्तधर्मस्य पापस्य मृत्युभूतस्य दुर्मतेः।
नरो नरकपाती स्यात्तस्य संभाषणादपि ॥ – चरकसंहिता, सूत्रस्थान, अध्याय १, श्लोक १२९ और १३०

अर्थ : जो अक्कलशून्य पापी औषधि के सभी गुणधर्मोंको न जानते हुए स्वयं को बुद्धिमान समझ कर, स्वधर्म का त्याग कर प्रत्यक्ष मृत्यु का रूप लेकर औषधि प्रदान करता है, (केवल वह मनुष्य नहीं, अपितु) उससे केवल भाष्य करनेवाला भी नरक में सडते रहता है !

उपरोक्त श्लोक का अर्थ, उस में दिए संस्कृत शब्दोंका केवल मराठी भाषांतर है ! महर्षिद्वारा उस कालावधि में लिखा गया यह श्लोक वर्तमान की परिस्थिति को शत-प्रतिशत लागू होता है, यह देख कर महर्षि के चरणों में नतमस्तक होने को जी चाहता है।

आज भारत में गोमूत्र की नहीं, अपितु गोमांस की ‘औषधि’ बन रही है। भगवान श्रीकृष्ण की कालाविध में रहनेवाले अगणित गोधन के कारण भारत समृद्धि का स्वर्ग था। आज स्वार्थ हेतु हो रही गोहत्याओंके कारण भारतीय वास्तव में नरक के द्वार में खडे हैं।

ऐसी स्थिति में ‘भारतियोंको नरक में ढकेलने हेतु प्रोत्साहन देनेवाला भार्गव का वक्तव्य निष्प्रभ हों’, ऐसी नरकासुर का निर्दालन करनेवाले भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रार्थना !’

– वैद्य श्री. मेघराज माधव पराडकर, अध्यात्म विश्वविद्यालय, गोवा. (११.११.२०१५)

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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