आषाढ कृष्ण पक्ष नवमी, कलियुग वर्ष ५११६
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नई दिल्ली – इराक में कहर बनकर टूटे इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया यानी आइएसआइएस या आइएसआइएल का मकसद इराक और सीरिया के साथ-साथ उत्तरी अफ्रीका से लेकर भारत तक सुन्नी इस्लामिक राज कायम करने की है। इसका सरगना अबू बकर अल बगदादी है, जो ओसामा बिन लादेन का वारिस माना जाता है। इसका जन्म इराक के समारा शहर में हुआ था। २००३ में जब अमेरिका ने इराक पर हमला किया था तो उस समय बगदादी बगदाद की एक मस्जिद में मौलवी था। उसने चार साल अमेरिकी हिरासत में बिताए और बाद में रिहा होने पर २०१० में संगठन की नींव रखी। अक्टूबर २०११ में अमेरिका ने बगदादी को आतंकी घोषित करते हुए उसे जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए एक करोड़ डॉलर (करीब ६० करोड़) का इनाम घोषित कर दिया।
इराक में कम जनसंख्या (४० फीसद) वाले सुन्नी समुदाय से आने वाले सैन्य शासक सद्दाम हुसैन की मौत के बाद अमेरिकी सरपरस्ती में २००६ में वहां लोकतांत्रिक सरकार बनी। बहुसंख्यक (५५ फीसद) शिया समुदाय के नूर अल मलीकी की सरकार ने देश के सुन्नियों के खिलाफ भेदभाव शुरू कर दिया। भेदभाव पर अमेरिका ने आंखें बंद रखी। इससे जिहादी गुट आइएसआइएस के पक्ष में सुन्नी जनसमर्थन जुट गया। इस बीच २०११ में ओबामा सरकार ने इराक से अपनी फौज वापस बुलाने का फैसला कर लिया।
आइएसआइएस ने अमेरिकी सैनिकों पर भी हमला किया था, लेकिन उन्होंने असली खेल सैनिकों के जाने के बाद शुरू किया। आइएसआइएस ने पड़ोसी सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध का फायदा उठाते हुए काफी ताकतवर बन गया। पश्चिमी देश मानते हैं कि सीरिया उसे गुपचुप तरीके से मदद दे रहा है। इराक के शिया असर वाली सरकार के खिलाफ गुस्से की वजह से आम सुन्नी भी संगठन में शामिल हो चुके हैं। अब संगठन में इराकी सुन्नियों के साथ, खूंखार सीरियाई, अरब, अफ्रीकी, पाकिस्तानी और अफगान लड़ाके भी शामिल हैं। ये लोग जंग की भट्टी में तपे हुए हैं, इसीलिए सरकारी फौज का ईट का जवाब पत्थर से देने में कामयाब हो रहे हैं।
मगर तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि इराक में असली लड़ाई अभी बाकी है। माना जा रहा है कि इस जंग में बगदाद कमजोर साबित नहीं होगा। आइएसआइएस लड़ाकों की संख्या १० हजार से ज्यादा है। वहीं ढाई लाख सैनिकों वाली इराकी सेना के साथ पुलिस की ताकत भी है। इराकी सेना के पास टैंक, हेलीकॉप्टर और लड़ाकू विमान भी हैं। हालांकि इराकी सेना में शिया और सुन्नी दोनों ही समुदाय के सैनिक हैं। माना जा रहा है कि मोसुल पर जब आइएसआइएस ने हमला किया तब इराक के सुन्नी सैनिकों ने ऐसी सरकार के लिए लड़ना सही नहीं समझा जिस पर उनके समुदाय को दबाने के आरोप हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि संगठन में हजारों सुन्नी समुदाय के इराकी सैनिक शामिल हो गए हैं।
आइएसआइएस को भले ही दुनिया के सबसे बर्बर आतंकी संगठन के तौर पर जाना जाता हो। भले ही इस संगठन का मकसद हर क्षण बेकसूर लोगों का खून बहाना हो, लेकिन किसी आधुनिक कॉरपोरेट घराने की तरह यह संगठन अपने कारनामों की बैलेंस सीट हर साल जारी करता है। अपने सभी लड़ाकों की जरूरतों का पूरा ध्यान रखता है। कंप्यूटर ग्राफिक्स और आंकड़ों की मदद से तैयार इसकी सालाना रिपोर्ट देखकर ही इससे सहानुभूति रखने वाले लोग इसकी वित्तीय मदद करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक इनकी संपत्ति १४ हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है, जिनका इस्तेमाल वह अपनी गतिविधियों को चलाने के लिए करता है। इराक में कहर मचा रहे इस आतंकी संगठन की ताजा रिपोर्ट का अध्ययन अमेरिकी थिंक टैंक 'द इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वार' (आइएसडब्ल्यू) ने किया है।
आइएसआइएस की सालाना रिपोर्ट को देखकर किसी कंपनी के बैलेंसशीट होने का भ्रम हो सकता है। यह आतंकी संगठन अपने साल भर के कारनामों का विवरण अपनी सालाना रिपोर्ट में प्रकाशित करता है। इतना ही नहीं, इसमें वह अगले कुछ सालों के अपनों लक्ष्यों का भी विवरण देता है और पूर्व में लिए गए लक्ष्यों को कितना हासिल किया जा सका, इसकी भी जानकारी दी गई होती है। सालाना प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट को अरबी में अल-नाबा कहते हैं। अंग्रेजी में इसका मतलब 'द न्यूज' होता है।
दरअसल इस रिपोर्ट में बताया जाता है कि संबंधित साल में इस संगठन ने कितने बम धमाके किए, कितनी हत्याएं कीं, कितने रॉकेट हमले किए आदि। इसकी इन विध्वंसक उपलब्धियों पर गौरवान्वित होने वाले तथा इससे सहानुभूति रखने वाले लोग संगठन की बढ़-चढ़कर आर्थिक मदद करते हैं। इसके आलावा यह रिपोर्ट इस आतंकी संगठन की ताकत, क्षमता और संसाधनों के बारे में प्रचार-प्रसार के काम भी आती है।
अमेरिकी थिंक टैंक आइएसडब्ल्यू द्वारा इस आतंकी संगठन की ताजा रिपोर्ट के अध्ययन में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। अरबी में तैयार इस रिपोर्ट के ताजा अंक में पिछले नवंबर से १२ महीने पीछे के समयकाल को शामिल किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार इस समयावधि में आइएसआइएस ने इराक में १० हजार ऑपरेशंस को अंजाम दिया। इसमें एक हजार आत्मघाती हमले, सड़क किनारे चार हजार से अधिक बम धमाके और सैकड़ों कैदियों को मुक्त कराने जैसी गतिविधियां शामिल हैं।
स्त्रोत : जागरण