न्यू यॉर्क : देश में बीफ को लेकर राजनीतिक विवाद लगातार कई दिनों तक रहा। कई राज्य सरकारों ने कानून बनाकर बीफ को बैन भी किया। सीएनएन की बीफ को लेकर एक रिसर्च रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बीफ किस तरह जलवायु के लिए खतरनाक है। पढ़ें, सीएनएन की रिपोर्ट :
पशु और जलवायु
‘कैटल’ और ‘क्लाइमेट’ वर्ड का इस संदर्भ में शायद ही इस्तेमाल होता है। बीफ वातावरण के लिए एसयूवी गाड़ियों की तरह है। ये गाड़ियां ज्यादा पेट्रोल खर्च करती हैं और वातारण में ज्यादा प्रदूषण फैलता है। अमेरिका के बारे में कहा जाता है कि यहां लोग बेइंतहा स्वार्थी हैं। ये उपभोग के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। यदि हमारे उपभोग के तरीकों से ग्रह को खतरा है तो सतर्क होने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन के लिए बीफ सबसे अहम कारक नहीं है लेकिन यह सच है कि जीवाश्म ईंधन से कार्बन का उत्सर्जन ज्यादा होता है। फिर इससे कौन इनकार कर सकता है कि बढ़ते तापमान के लिए बीफ खाने की आदत भी जिम्मेदार है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की फूड ऐंड ऐग्रिक्लचर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में १४.५ पर्सेंट ग्रीनहाउस गैस प्रदूषण के लिए पशु जिम्मेदार हैं। बीफ मामले में इस रिपोर्ट को सबसे प्रामाणिक रिपोर्ट माना जाता है। इस १४ पर्सेंट ग्रीनहाउस गैस में से पशुओं से जुड़ी इंडस्ट्री बीफ और डेयरी कैटल का योगदान ६५ पर्सेंट है।
जितने भी चारा खाने वाले पशु हैं वो मीथेन का उत्सर्जन ज्यादा करते हैं। पौधों की पत्तियां या घास बहुत पौष्टिक नहीं होती हैं। पशु इन्हें आसानी से पचा भी नहीं पाते हैं। चारा खाने और पचाने के दौरान मिथेन का सबसे ज्यादा उत्सर्जन होता है। मीथेन सबसे खतरनाक ग्रीनहाउस गैस है। ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए कार्बनडाइऑक्साइड के मुकाबले मीथेन २५ गुना ज्यादा ताकतवर है। ऐसे में बीफ को हम पर्यावरण के लिए विलन के रूप में देख सकते हैं।
पूरी दुनिया कोशिश कर रही है कि ग्लोबल वॉर्मिंग दो डिग्री से ज्यादा बढ़ने नहीं दिया जाए। इसके लिए कई तरह की कोशिशें हर लेवल पर की जा रही हैं। जलवायु में तापमान बढ़ने की प्रक्रिया उद्दोग क्रांति के बाद से ही शुरू हो गई थी। हमने तब से ही जीवाश्म ईंधन को जलाना शुरू कर दिया था। इसके बाद से ही जलवायु में परिवर्तन लगातार देखा जा रहा है। इसके कई खतरे भी हमें साफ दिख रहे हैं। सूखे की समस्या बढ़ रही है तो समुद्र के जल स्तरों में बढ़ोतरी हो रही है। इससे तटीय इलाके डूब रहे हैं।
औद्योगिक क्रांति के बाद से वातावरण में ०.८ डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ चुका है। वर्ल्ड बैंक का कहना है कि वातावरण में १.५ डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ चुका है। इसमें बढ़ते प्रदूषण का अहम योगदान है। वातावरण में बढ़ते तापमान को लेकर काम करने वाले स्कॉलरों का कहना है कि यदि पशुओं से पैदा होने वाले प्रदूषण को नहीं रोका गया तो बढ़ते तापमान को दो डिग्री से कम रखना असंभव होगा।
इस रिपोर्ट को तैयार करने के दौरान रिपोर्टर ने सेंट्रल टेक्सस के एक रेस्ट्रॉन्ट में आने वाले लोगों से बात की। यहां आने वाले लोगों ने बताया कि लोग यहां के स्वादिष्ट बीफ खाने आते हैं। यहां भूख लगने का मतलब ही है बीफ। पूछा गया कि क्या यहां शाकाहारी भी आते हैं? एक महिला ने जवाब दिया कि नहीं, मैंने तो किसी शाकाहारी को नहीं देखा है।
सेंट्रल टेक्सस के इस रेस्ट्रॉन्ट में सीएनएन रिपोर्टर भी बीफ खाने गया। रिपोर्टर ने कहा, ‘मैंने 0.61 पाउंड बीफ खाया और 0.66 पाउंड थाली में ही छोड़ दिया। वहां काम करने वाले लोग इसे कूड़े में डाल दिए। मुझे अजीब लगा। खुद मैं सहज नहीं पा रहा था। अगली सुबह मैंने शाकाहारी नाश्ता लिया। मैंने फिर हिसाब किया कि क्लाइमेट चेंज के लिए हमारा भोजन कम जिम्मेदार नहीं है। मुझे लगा का हमारी खान-पान की आदतों की बड़ी भूमिका क्लाइमेंट चेंज में है। इसके बाद मैंने मांस खाने के लिए पाले जाने वाले पशुओं से होने वाले प्रदूषण को लेकर डेटा तैयार किया।
स्त्रोत : नवभारत टाइम्स