आषाढ कृष्ण पक्ष द्वादशी, कलियुग वर्ष ५११६
जबतक हम अपने बलपर दंगोंका सामना नहीं करेंगे, तबतक हिंदु राष्ट्र असंभव है !
![]() पारस राजपूत, हिंदु हेल्पलाइन, मुंबई |
दस वर्षोंमें भारतमें ११ सहस्र दंगे हुए । उनमेंसे पंद्रह सौ दंगे बडे स्वरूपके हुए और ९ सहस्र दंगे जातियतावादी स्वरूपके हुए । जब दंगोंके माध्यमसे जिहादी हिंदुओंपर आक्रमण करते हैं, तब वे अचानकसे नहीं होते, किंतु पूर्वनियोजित होते हैं । इसलिए हमें उनकी ओर केवल दंगा समझकर नहीं, किंतु एक युद्धके रूपमें देखना चाहिए । दंगोंके माध्यमसे जिहादी पूरे विश्वमें उनकी जनसंख्या बढानेमें सफल हुए हैं । इसलिए जबतक हम अपने बलपर दंगोंका सामना नहीं करेंगे, तबतक हिंदु राष्ट्र असंभव है ।
. आगामी कालमें अफगानिस्तानके तालीबानी एक दिन भारतपर आक्रमण करेंगे । ऐसे प्रसंगोंमें हिंदुओंको प्राण बचाना कठिन होनेवाला है । ऐसे समयमें हिंदुओंकी रक्षा केवल नवयुवक ही कर पाएंगे । तब सनातन संस्थाके मार्गदर्शनमें साधनामें प्रवीण साधकोंद्वारा ही हिंदुस्थानका हिंदु बचनेवाला है ।
. हमें इस देशमें १ करोड सेनाकी आवश्यकता है । दंगोंके स्वरूपमें परिवर्तन आया है । इसलिए दंगोंसे संघर्ष करते समय अपनी स्वरक्षाके लिए आवश्यक सभी उपायोंकी योजना की जानी चाहिए । भयके कारण यदि हम पीछे हटेंगे, तो हमारा अंत निश्चित है । ऐसे प्रसंगोंमें यदि हमारे विश्वगुरु हमें प्रत्यक्ष कृत्य करनेकी आज्ञा करेंगे, तो हम वह भी करेंगे ।
इ.स. १९४७ में हुए दंगोंमें एक वर्षमें २० लाख हिंदुओंकी हत्या हुई, १० लाख महिलाओंको बंदी बनाया गया और १ करोड हिंदुओंको घर छोडकर पलायन करना पडा । आज जिहादीयोंके पास एके ४७, बम जैसे शस्त्र हैं । ऐसी स्थितिमें हिंदुओंकी क्या अवस्था होगी, इसकी आप कल्पना कर सकेंगे । आज इराकमें शिया-सुन्नी एक-दूसरेकी हत्याएं कर रहे हैं, तो क्या वे हिंदुओंको ऐसे ही छोड देंगे ? इसलिए हमें केवल सरकारपर निर्भर न होकर सर्व हिंदुओंको स्वरक्षाके लिए प्रशिक्षण लेना आवश्यक है ।
धर्मांधोंकी जनसंख्या रोकनेके लिए परधर्ममें गए हिंदुओंको पुनः स्वधर्ममें लेना चाहिए । साथ ही हमें उनका धर्म-परिवर्तन कर उन्हें भी हमारे धर्ममें लेनेका कार्य करना है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात