आषाढ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५११६
आचार्य योगेश शास्त्री, वैदिक प्रवक्ता, आर्य प्रतिनिधि सभा, बंगाल |
प्राचीन कालसे होनेवाला हिन्दुआेंका धर्मपरिवर्तन रोकनेके लिए अब आक्रामक पद्धतिका उपयोग करना आवश्यक है । सनातन-निर्मित ग्रंथ ‘धर्मपरिवर्तनके दांवपेचसे सावधान’का अध्ययन सबको करना चाहिए । हिन्दुआेंका धर्मपरिवर्तन हमारी ही चूक है । हम उन्हें सनातन परिवारसे कैसे जाने देते हैं । हिन्दुआेंके धर्मपरिवर्तनके लिए हिन्दू समाज ही अपराधी है । हिन्दू समाजको बचाया जा सकता है । हिन्दू सामान्य कारणोंसे अपना धर्मपरिवर्तन करते हैं ।
ईसाई हिन्दुआेंसे पूछते हैं क्या आप चोरी करनेवाले कृष्णकी उपासना करते हैं ?, क्या आप स्त्रियोंके वस्त्र चुरानेवाले कृष्णकी उपासना करते हैं ? अपने धर्म एवं देवताआेंकी वास्तविकता ज्ञात न होनेके कारण धर्मपरिवर्तन होता है । ईसाई जलमें भगवान कृष्णकी धातुकी मूर्ति तथा लकडीका क्रॉस डालते हैं तथा कौन डूबता है ?, इसकी परीक्षा लेते हैं । मूर्ति धातुकी होनेके कारण वह डूब जाती है तथा लकडीका क्रॉस तैरता रहता है । इसी प्रकार एक बार हमारे स्वामीजीने ईसाइयोंका क्रॉस एवं मूर्तिकी अग्निपरीक्षा ली । उस समय लकडी जल गई तथा संपूर्ण गांव ईसाई धर्ममें परिवर्तित होनेसे बच गया ।