गोवाके धर्मांध पादरीका सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समिति द्वेष !

आषाढ शुक्ल पक्ष नवमी, कलियुग वर्ष ५११६

गोवासे प्रकाशित होनेवाले ‘दी नवहिंद टाईम्स' समाचारपत्रिकाके २९.६.२०१४ के अंकमें फादर विक्टर फेर्रावने ‘गोवाज् रिसपॉन्स टू कल्चरल मोनिजम' शीर्षकके नीचे सनातन संस्था एवं हिन्दू जनजागृति समितिपर आलोचनात्मक लेख लिखा है ।

आगे इस लेखका प्रतिवाद प्रकाशित कर रहे हैं ।


बडे-बडे शब्दोंका उपयोग कर टिप्पणी करनेवाले फादर फेर्राव !

फादर विक्टर फेर्रावका सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समितिपर टिप्पणी करना स्वाभाविक ही है । क्योंकि ईसाई मिशनरी गोवा तथा वर्तमानमें भारतके अन्य क्षेत्रोंमें आरंभ धर्मांतरणका विरोध करनेमें उपर्युक्त दोनों संगठन अघाडीपर हैं । 
सहज ही इस बातका क्रोध फादर फेर्रावके मनमें है; किन्तु यह दिखाई देता है कि टिप्पणी करते समय फादर फेर्रावका भान लेखके शीर्षकसे ही हट गया है । ‘मोनिजम' इस शब्दका मूल अर्थ एकसत्तावाद है । विश्वमें कितनी वस्तुएं हैं अथवा कितने प्रकारकी वस्तुएं हैं, इन प्रश्नोंके उत्तर पृथक होते हुए भी एकसत्तावाद एवं उसके विरोधी द्वयवाद एवं बहुसत्तावाद ऐसे भिन्न सिद्धांत तत्त्वमीमांसामें प्रचलित हैं । अर्थात ये सभी संकल्पना तत्त्वज्ञानसे संबंधित होते हुए भी ‘कल्चर' अर्थात संस्कृतिसे उनका कुछ संबंध नहीं है । इस बातसे फादर फेर्राव अनभिज्ञ होंगे । कदाचित उन्हें ‘एकाधिकारशाही,' (मोनोपॉली – Monopoly) यह शब्द अभिप्रेत होगा । 

 

इस लेखमें शीर्षकसे ही आरंभ यह विसंगति सनातन तथा हिन्दू जनजागृति समितिपर निराधार(तथ्यहीन) आरोप आगे पूरे लेखमें भी दिखाई देती है । 

लेखमें कुछ सूत्र छोडकर अन्य सूत्र ध्यान देनेके योग्य भी नहीं हैं । उनमें ‘सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृति समिति देशद्रोही हैं, उनमें राष्ट्रप्रेम नहीं है, उन्हें देशका विभाजन करना है, आदि सूत्रोंकी ओर जैसे कि जो संस्था राष्ट्र एवं धर्ममें अद्वैत है, ऐसा मानती है, उन्हें उपर्युक्त आरोपोंका प्रत्युत्तर देनेकी आवश्यकता ही नहीं है । फादर फेर्रावने गतिमान तथा पोषक सांस्कृतिक प्रक्रियाका उल्लेख किया है, वह भारतके प्राचीन परंपराकी देन है, ऐसी प्रक्रियाको हटाकर सनातन संस्था सांस्कृतिक युद्धकी दिशाकी ओर जा रही है, यह आरोप निराधार है । गतिमान एवं वैविध्यपूर्ण भारतीय संस्कृतिका जो उल्लेख फादर र्फेरावके लेखमें किया है, उस संस्कृमिमें आज गोवामें नशीले द्रव्य, पब, कार्निवलके नामपर चलनेवाले अश्लाघ्य प्रकरण, कैसिनो, डान्सबार, गोहत्या आदि समाविष्ट नहीं हो सकता, यह फादर फेर्राव भी स्वीकार करेंगे । 

ईसाई मिशनरियोंको हो रहे विरोधके कारण ही फेर्रावका सनातनद्वेष !

हिन्दू धर्मग्रंथके अनुसार प्रत्येक व्यक्तिको कर्म करनेका अधिकार है; किन्तु उपर्युक्त उल्लेखित सांस्कृतिक (?) प्रकरण इस अधिकारमें नहीं आते । भारतमें प्राचीन कालावधिसे ही अस्तित्वमें वैविध्यपूर्ण संस्कृति ही है; किन्तु फादर फेर्रावको अभिप्रेत होनेवाली नहीं । हिन्दुओंके विभिन्न त्योहार मनानेके, विवाह आदि सोलह संस्कारोंके, अंतिम संस्कार एवं श्राद्धकी विभिन्न पद्धति जम्मू-कश्मीरसे ही अस्तित्वमें हैं । उनमें आदिवासियोंकी पद्धति भी समाविष्ट हैं । उन सभीको हिन्दू धर्मका अभिमान है तथा हमारी दोनों संस्थाएं भी उसका आदर करती हैं । सप्ताहमें केवल एक दिन प्रार्थनास्थलपर जाकर प्रार्थना करना अथवा विश्वके सर्व धर्मियोंद्वारा एक ही उपासना पद्धतिका उपयोग करना, हिन्दुओंको अपेक्षित नहीं है । कदाचित नास्तिकोंको भी अपने विचारस्वातंत्र्यका आदर कर ऋषिपद प्रदान करना, यह केवल हिन्दू धर्ममें ही संभव है । किसी विशिष्ट उपासना पद्धतिको स्वीकार न करनेवाले सभी लोग नरकमें ही जाएंगे अथवा ‘काफिरों' की हत्या कर उनका धन दबोचकर उनकी पत्नी, बच्चोंको दास(गुलाम) बनाना हिन्दू धर्ममें नहीं बैठता, क्या इस बातसे भी फादर फेर्राव अनभिज्ञ हैं ? धर्म एक ही है, केवल भाषा, पद्धति विभिन्न हैं, इस कारणसे विभाजन हुए युरोपके देश तथा भाषा, पद्धति विभिन्न होकर भी केवल हिन्दू इस सूत्रसे बंधा खण्डप्राय भारतकी तुलना ही नहीं हो सकती । अतः भारतके समृद्ध, गतिमान एवं पोषक संस्कृतिको मारक सिद्ध करनेवाले पाश्चात्य संस्कृतिको सनातन संस्था तथा हिन्दू जनजागृतिद्वारा हो रहा विरोध उचित ही है । किन्तु यह विरोध फादर फेर्रावके ईसाई मिशनरियोंके धर्मांतरणकी प्रक्रियाके मध्य(बीचमें) आ रहा है । अतः फादर फेर्रावका यह प्रयास है । ईसाई धर्मका प्रचार करते समय उस धर्मकी महानता अन्योंके मनपर अंकित करनेकी अपेक्षा हिन्दू देवता, धर्मग्रंथ, वेशभूषा, मंदिरोंका विकृत स्वरूप उजागर करनेके प्रयास क्यों करने पडते हैं, क्या फादर इसका उत्तर दे सकते हैं ? 

‘वन्दे मातरम्’ न कहनेवाले मुसलमानोंके संदर्भमें फेर्राव क्या कुछ वक्तव्य दे सकेंगे ?

फादर फेर्रावने अपने लेखमें भारतको ‘मातृभूमि' कहनेका उल्लेख अनेक स्थानोंपर किया है । तो इस मातृभूमिको उसके मूल धर्मसे धर्मांतरित करनेके प्रयास क्यों आरम्भ हैं ? साथ ही भारतमें सबसे बडी संख्यामें होनेवाले मुसलमानोंका 'वन्दे मातरम्', मातृभूमिका वन्दन करनेवाला यह गीत गानेसे विरोध है । क्या इस संदर्भमें फादर फेर्राव प्रतिक्रिया व्यक्त करेंगे ?

हिन्दू अधिवेशनके कारण गोवामें कौनसा सामाजिक भूकम्प हुआ था ?

इस लेखका संकेत(निशाना) गोवामें आयोजित तृतीय अखिल भारतीय हिन्दू अधिवेशनकी ओर था । इस प्रकारके अधिवेशन अन्य धर्मीय आयोजित कर सकते हैं । यह हिन्दुओंका दुर्दैव्य है कि हिन्दुओंको हिन्दुओंके देश भारतमें ऐसे अधिवेशन आयोजित करने पड रहे हैं; किन्तु गोवाके अधिवेशनके कारण गोवामें कौनसा भूकम्प हुआ, इस संदर्भमें फादर फेर्राव क्या वक्तव्य देंगे ? हम गोवाको परशुरामकी भूमि मानते हैं । राज्यका विस्तार ध्यानमें रखते हुए देशके अन्य किसी भी विभागकी अपेक्षा गोवामें अधिक मंदिर हैं । ये मंदिर गोवामें ‘इंक्विजिशन' में हुए मंदिरोंके विनाशके पश्चात भी सुरक्षित हैं तथा गोमंतक भूमिकी सात्त्विकता निभाकर रखे हैं । गोवामें हिन्दू अधिवेशन आयोजित करनेके लिए बस यही एक कारण हो सकता है ।

 

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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