आषाढ शुक्ल पक्ष दशमी/एकादशी, कलियुग वर्ष ५११६
नदियां प्रदूषित करने पर कठोर कानून की नहीं, कठोर अनुपालन की है जरूरत !
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गंगा में थूकने या फूल पत्ती फेंकने वालों को जेल भेजने या १० हजार रूपए तक का जुर्माना करना समस्या का सतही समाधान है। इससे लाख करोड़ों गुना प्रदूषण तो उद्योगों और शहरी निकायों द्वारा गंगा में उच्छिष्ट और शहर की गंदगी बहा कर फैलाया जाता है। नदियां प्रदूषित करने पर कठोर कानून ही नहीं कठोर अनुपालन की जरूरत है। सुश्री उमा भारती मंत्रालय संभालने के साथ ही जल प्रदूषण पर कड़ा कानून ला रही हैं जिसमे नदियों मे मैला डालने पर तीन दिन की जेल और दस हजार रुपया जुर्माना होगा। उमा जी कडा कानून नही चाहिये, वह तो पहले से ही है और वह भी सवा सौ साल पुराना जिसमें ५० रुपया दंड का प्रावघान था ।
जरा सोचिए उस समय तो शायद कलेक्टर को भी इतना वेतन नहीं मिलता रहा होगा। लेकिन आज की तारीख में यह सवाल अनुत्तरित है कि अभी तक कितने पकड़े गए और कितनों पर जुर्माना हुआ।
इस देश का यही तो दुर्भाग्य है कि कानून तो हैं पर उन्हें अनुपालन कराने वाला कोई नहीं। मजा तो यह कि उस जुर्माना राशि मे एक पैसे का भी इजाफा नहीं किया गया। तो उमा जी कसिये उन एजेंसियों को जिन्हें कानून का पालन कराना है। साथ ही दंड प्रक्रिया व्यवहारिक रखिए ताकि भ्रष्टाचार का मौका न मिले।
स्त्रोत : निती सेन्ट्रल