फतवे मानना जरूरी नहीं, न ही शरीयत अदालतों का है कोई कानूनी आधार : सुप्रीम कोर्ट !

आषाढ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, कलियुग वर्ष ५११६ 


नई दिल्ली –  सुप्रीम कोर्ट ने आज एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि शरीयत कोर्ट को कानूनी दर्जा हासिल नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि फतवे की कानूनी मान्यता नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने निर्दोष लोगों के खिलाफ शरिया अदालत द्वारा फैसला दिए जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कोई भी धर्म निर्दोष लोगों को सजा की इजाजत नहीं देता। किसी दारूल कजा को तब तक किसी व्यक्ति के अधिकारों के बारे में फैसला नहीं करना चाहिए जब तक वह खुद इसके लिए नहीं कहता।

दिल्ली के वकील विश्व लोचन मदन ने याचिका दायर कर कहा है कि फतवा जारी करने वाली संस्‍थाएं समानांतर कोर्ट के तौर पर काम करती हैं और मुस्लिमों की धार्मिक और सामाजिक आजादी का निर्धारण करती हैं। याचिका में इसे गैर-कानूनी बताते हुए कहा गया है कि मुस्लिमों की आजादी काजी और मुफ्तियों के फतवों से नियंत्रित नहीं की जा सकती। 

फरवरी में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सुरक्षित रखते हुए कहा था कि यह लोगों की आस्था का मामला है। इसी वजह से कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकती।

तत्कालीन यूपीए सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वह मुस्लिम पसर्नल लॉ के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी। जब तक किसी के मौलिक अधिकारों का हनन न हो।

२००९ में जमीयत उलेमा हिंद ने राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्….' को गैर-इस्लामिक करार देते हुए इसके खिलाफ फतवा सुना दिया। यह फतवा जमीयत के राष्ट्रीय अधिवेशन में सुनाया गया। फतवे में कहा गया कि मुसलमानों को वंदे मातरम नहीं गाना चाहिए।   

जनवरी, २०१२ में लखनऊ के दारुल उलूम फरंगी महल ने मशहूर और विवादस्पद लेखक सलमान रुशदी के जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में भाग लेने के खिलाफ खिलाफ फतवा जारी कर दिया। फतवे में कहा गया, चूंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और हर किसी को अपनी बात रखने का पूरा हक है इसलिये मुसलमान पैगम्बर की शान में गुस्ताखी करने वाले शख्स (रुश्दी) का जायज तरीके से विरोध करें ताकि उसके नापाक कदम मुल्क की सरजमीं पर नहीं पड़ें। गौरतलब है कि भारी विवाद के चलते सलमान रुशदी ने समारोह में शिरकम नहीं किया था।

सितंबर, २०१३  में भारत की प्रमुख इस्लामिक संस्था दारुल उलूम ने फोटाग्राफी को गैर इस्लामिक और गुनाह करार दे दिया। दारुल उलूम के इस फतवे ने मुस्लिम समाज में एक नई बहस छेड़ दी। यह फतवा इंजीनियरिंग के स्नातक के सवाल के जवाब में दिया गया। फतवे में कहा गया, ‘फोटोग्राफी गैरकानूनी और गुनाह है। आप यह कोर्स न करें। अपने इंजीनियरिंग कोर्स के अनुसार कोई मुनासिब नौकरी ढूंढ लें।’ इंजीनियरिंग के जिस छात्र ने यह सवाल पूछा था वह फोटोग्राफी से जुनून की हद तक प्यार करता था और इसे कॅरिअर के तौर पर अपनाना चाहता था।

स्त्रोत : दैनिक भास्कर 

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