नगर, वास्तू आदिके विदेशी नाम हटानेके लिए आंदोलन करें !


        अरबोंसे लेकर अंग्रेजोंतक पोर्तुगीज, फ्रेंच, डच आदि अनेक विदेशियोंद्वारा साम्राज्य विस्तारके उद्देश्यसे भारतपर आक्रमण किए गए । भारतके कुछ क्षेत्रोंपर इस्लामी आक्रमणकारियोंने १ सहस्त्र वर्षोंसे अधिक तथा ईसाई आक्रमणकारियोंने ४५० वर्षोंसे भी अधिक कालतक राज्य किया है । ६७ वर्षपूर्व भारत एक राष्ट्रके रूपमें स्वतंत्र हुआ; परंतु परतंत्रताके ये चिन्ह आज भी नगर, वास्तू, मार्ग इत्यादिके नामके रूपमें जीवित हैं । वर्तमान स्वतंत्र भारतमें आज भी आक्रमणकारियोंद्वारा दिए गए नाम इलाहाबाद, अहमदाबाद, वास्को जैसे नगर और अकबर रोड, लोदी रोड इत्यादि मार्ग रस्ते हैं । इन विदेशी आक्रमणकारियोंके नाम हिंदुओंपर किए गए असीमित अत्याचारके चिन्ह हैं ! परतंत्रताके चिन्ह मिटानेकी आवश्यकता तथा उन्हें हटानेके लिए संगठित होकर आंदोलन करना, यह विषय मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूं ।

 

१. आंदोलनका उद्देश्य 

१ अ. राष्ट्रकी परतंत्रताके चिन्ह मिटानेके लिए हिंदुओंमें जागृति करना

        स्वतंत्रताप्राप्तिके उपरांत परतंत्रताके चिन्ह जडसे उखाडकर फेंक देना राष्ट्रके हितमें है; परंतु भारतमें सर्वपक्षीय राज्यकर्ताओंने परतंत्रताके इन चिन्होंको इस प्रकार सहेजकर रखा है, जैसे वे इन विदेशी आक्रमणकारियोंके वंशज हैं ! जापान, चीन, रशिया तथा फ्रांस इत्यादि देशोंमें सभी नगरों, मार्गो, प्रमुख चौराहों इत्यादिके नाम उनकी भाषानुरूप ही रखे गए है तथा उन्हें इसपर गर्व है । 
        इसके विपरीत भारतमें मार्गोंका, नगरोंका विदेशी नाम विकास समझा जाता है ! इस भ्रमको नष्ट करने तथाराष्ट्रकी परतंत्रताके चिन्ह मिटानेके संदर्भमें हिंदुओंमेंजागृति करनेके उद्देश्यसे इन विदेशी नामोंको हटानेके लिए आंदोलन करनेकी आवश्यकता है ।

१ आ.विदेशी आक्रमणकारियोंद्वारा किए धार्मिक अत्याचारोंका हिंदुओंको भान करवाना

        स्वतंत्रताप्राप्तिके उपरांत कथित सर्वधर्मसमभावको संजोनेके लिए विद्यालयीन इतिहासकी पुस्तकोंमें विदेशी आक्रमणकारियोंका उदात्तीकरण किया गया है । इसलिए विदेशी आक्रमणकारियोंद्वारा हिंदुओंपर किए गए अत्याचारोंका इतिहास ही भारतीयोंको ज्ञात नहीं है ! इसीलिए विदेशी नामोंको हटानेके लिए किए जानेवाले आंदोलनद्वारा इन आक्रमणकारियोंद्वारा हिंदुओंपर किए गए अत्याचारोंके विषयमें बताना पडेगा । जिस दिन स्थानीय हिंदू उनपर हुए धार्मिक अत्याचारोंको जान जाएंगे, उस दिन वे विदेशी आक्रमणकारियोंद्वारा दिए गए नाम परिवर्तित करनेके लिए मनसे सिद्ध होंगे ।

१ आ १.मुसलमानोंकी इस्लामी नामकरण करनेकी पद्धति !

        सर्वप्रथम इस पद्धतिसे हिंदुओंको परिचित कराना होगा । भूतकालमें मुसलमान नगरोंपर आक्रमण करते थे तब वहां घर जलाते थे और घर उध्वस्त करते थे । इसप्रकार उस नगरको ही नष्ट कर देते थे तथा उन्हें इस्लामी सुलतानके नामसे आबाद आबाद कहकर आगे कूच कर जाते थे । वे सभी गांव और नगर जिनमें आबाद अक्षर है, वे मुसलमानोंद्वारा नष्ट किए हुए हिन्दू नगर हैं ! यदि यह बात हम हिंदुओंको आंदोलनोंद्वारा बतानेमें सफल हो जाएं तो अहमदाबाद, इलाहाबाद जैसे सैकडों नाम लेना उनके लिए असहनीय होगा अथवा ऐसे नामोंको उपयोगमें लाना उन्हें अपराध प्रतीत होगा  !

१. इ. हिंदू संस्कृतिकी रक्षाके लिए प्रशासनपर दबाव डालना ।

        नगरोंका धर्मपरिवर्तन करनेसे केवल राष्ट्रपरिवर्तन नहीं होता; अपितु उससे सांस्कृतिक जीवनविषयक दृष्टिकोणमें भी परिवर्तन आता है । हैद्राबाद नगरका इस्लामीकरण होनेके पश्‍चात वहांके मुसलमानोंने हिंदुओंपर अनेक वर्षोंतक इस्लामी संस्कृति लादी थी । इसलिए हिंदू संस्कृतिकी रक्षाके लिए हमें इन विदेशी नामोंको हटाना आवश्यक है । अनेक राष्ट्रोंने स्वतंत्रता प्राप्तिके पश्‍चात विदेशी आक्रमणकारियोंद्वारा दिए गए नाम हटाकर अपने मूल नामोंको अबाधित रखा । श्रीलंकाने अंग्रेजोंद्वारा दिया गया सिलोन नाम परिवर्तित किया । पाकिस्तानकी निर्मितिके पश्‍चात वहांके राज्यकर्ताओंने नगरों एवं वास्तूके हिंदू संस्कृतिके अनुसार प्रचलित नामोंका इस्लामीकरण किया । इसीप्रकार भारतमें भी विदेशी आक्रमणकारियोंद्वारा दिए गए नगरों एवं वास्तुके नामोंका हिंदूकरण करना अपेक्षित था; परंतु सर्वपक्षीय भारतीय प्रशासक यह कार्य करनेमें असफल सिद्ध हुए । किसी भी राजनीतिक पक्षद्वारा विदेशी आक्रमणकारियोंके नाम हटानेके संदर्भमें अपने चुनाव घोषणापत्रमें कभी वचन नहीं दिया गया । केंद्रमें नई सरकार स्वयं उठकर इन परतंत्रताके ये चिन्ह नष्ट करेगी, यह अपेक्षा करना व्यर्थ है । इसलिए प्रशासनपर दबाव बनानेके लिए विदेशी आक्रमणकारियोंके नाम हटाने हेतु आंदोलन करना आवश्यक है ।

१ ई. नगरों, वास्तु आदिका हिंदु पद्धतिनुसार नामकरण करना अर्थात स्थानशुद्धि

        स्वभाषामें फारसी, अंग्रेजी इत्यादि विदेशी शब्दोंका उपयोग किया जाता है । विदेशी शब्दोंको हटाने तथा पर्यायी स्वभाषीय शब्दोंका उपयोग करनेसे भाषा शुद्धि होती है । स्वभाषाका चैतन्य बढता है । उसीप्रकार नगरों, वास्तु तथा मार्ग आदिको दिए गए विदेशी नामोंको हटाकर स्थानशुद्धी करनेसे उस स्थानोंका चैतन्य बढता है । हममेंसे अनेक अपने नामके आरंभके अक्षर अर्थात इनीशियल अंग्रेजी भाषामें लिखते होंगे, उदा. डी.के.कपूर ऐसा लिखनेकी अपेक्षा हम दर्शन कुमार कपूर ऐसा लिखेंगे, तो यह अधिक चैतन्यदायी लगता है, यह आप स्वयं अनुभव कर सकेंगे ।

 

२. विदेशी नाम दिए गए कुछ स्थान और उनका संक्षेपमें इतिहास

२ अ. राज्योंके नाम

२ आ १. दिल्ली नहीं, अपितु देहली कहें !

        पांडवोंकी राजधानी इंद्रप्रस्थ नगरके अवशेष टिके रहनेके लिए ग्यारहवी शताब्दीमें तोमर राजवंशके दूसरे अनंगपाल नामक राजाने इंद्रप्रस्थ नगरसे कुछ दूर देहली इस संस्कृत नामसे राजधानीका निर्माण किया । यह देहली नगर, पांडवकालीन इंद्रप्रस्थ नगर तथा पडोसके संस्थान मिलाकर वर्तमान दिल्ली राज्य बना है । मुगलकालमें देहलीका उच्चारण दिल्ली ऐसा होने लगा । इसलिए दिल्ली राज्यके लिए देहली यह संस्कृतनिष्ठ शब्दका उपयोग करना चाहिए । 
२ अ २. पश्‍चिम बंगाल नहीं, अपितु केवल बंगाल कहें !

        आज पूर्व बंगाल भारतमें नहीं है, इसलिए उर्वरित क्षेत्रको बंगाल कहना अत्यंत योग्य है; परंतु तब भी वर्तमानमें अंग्रेजोंद्वारा दिया गया पश्‍चिम बंगाल यह शब्दप्रयोग प्रशासकीय प्रपत्रोंमें किया जाता है । अब आगेसे हम इस राज्यको केवल बंगाल कहेंगे । वास्तवमें इस क्षेत्रका संस्कृतनिष्ठ नाम है वंग । हिंदु राष्ट्रमें हम उसे पुनः वंगमें परिवर्तित करेंगे ! 
२ अ ३. नागालैंडको भारतिय पद्धतिनुसार नागभूमी कहना चाहिए । 

२ आ. नगरोंके नाम 

२ आ १. नयी दिल्ली नहीं, अपितु नयी देहली कहें !

        दिल्ली राज्यके साथ ही देशकी राजधानीको नयी दिल्ली कहनेकी अपेक्षा नयी देहली ऐसा कहना चाहिए । हमने अपने सनातन प्रभात नामक नियतकालिकके माध्यमसे यह शब्द प्रचलित किया है । 
२ आ २. इलाहाबाद नहीं अपितु, प्रयागराज कहें !

        तीर्थराज प्रयाग, अर्थात सर्व तीर्थोंका राजा ! गंगा, यमुना और सरस्वती इन पवित्र नदियोंके त्रिवेणी संगमपर बसा यह नगर अकबरादी आक्रमणकारियोंद्वारा लूटकर उध्वस्त किया गया । उन्होंने उसका नाम इलाहाबाद प्रचलित किया ।

२ आ ३. फैजाबाद नहीं, अपितु अयोध्या कहें !

        उत्तरप्रदेशका फैजाबाद नगर इस्लामी आक्रमणकारियोंद्वारा नष्ट की गई प्रभु श्रीरामकी अयोध्या नगरी है ।

२ आ ४. सुलतानपुर नहीं, अपितु कुशभवनपुर कहें !

        प्रभु श्रीरामके पुत्र कुशके नामसे प्रसिद्ध कुशभवनपुर नगरमें कल्पवृक्ष और सीताकुंड है, इसलिए यह स्थान हिंदुओंका श्रद्धास्थान है । मुगलोंने इस नगरको उध्वस्त कर उसे सुलतानपुर नाम दिया ।

२ आ ५. देवबंद नहीं, अपितु देवीवन कहें !

        देवबंद यह नगर आज मुसलमानोंकी दार-उल-उलूम देवबंद नामक शिक्षा संस्थाके लिए सुप्रसिद्ध नगर है । पहले उसका नाम देवीवन था । यह नगर सेनाकी दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण होनेसे मुगलोंने उसका इस्लामीकरण किया । यहां श्रीत्रिपुरबाला सुंदरी शक्तिपीठ है । दुर्भाग्यसे आज स्वतंत्र भारतमें उसका उल्लेख देवीवन नामके स्थानपर देवबंद किया जाता है । यह ध्यानमें लें कि, आजमगढ, फिरोजाबाद, बुलंद शहर, मुजफ्फरनगर आदि उत्तरप्रदेशके बहुतांश नगरोंके नाम इस्लामी पद्धतिनुसार है !

२ आ ६. औरंगाबाद नहीं, अपितु संभाजीनगर कहें !

        खडकी नगरका नामकरण शाहजहांके पुत्रके नामसे औरंगाबाद रखा गया । इस औरंगजेबने दक्षिणमें आनेपर हिंदुओंपर कितने अत्याचार किए हैं, यह अलगसे बतानेकी कोई आवश्यकता नहीं है । धर्मांध इस्लामी शासनका अस्त हो चुका है, तब भी भारतीय राज्यकर्ता नगरका नाम संभाजीनगर करनेमें उत्सुक दिखाई नहीं देते । औरंगाबाद महानगरपालिकाका नामांतरणका प्रस्ताव महाराष्ट्रकी कांग्रेस सरकारने मुसलमानोंके मतोंके लिए अस्वीकार किया था, यह सर्वज्ञात है ।

२ आ ७. हैद्राबाद नहीं, अपितु भाग्यनगर कहें !

        वर्ष १९४८ तक महाराष्ट्रके मराठवाडा क्षेत्रपर हैद्राबादके निजामका शासन था । उसने भाग्यलक्ष्मीके नामसे प्रसिद्ध भाग्यनगरका नाम अपनी धर्मांध मानसिकतासे हैद्राबादमें परिवर्तित किया । हैद्राबाद संस्थानका इस्लामीकरण करनेके लिए विभिन्न प्रांतोंसे १२ लक्ष मुसलमान लाए गए और उन्हें वहां बसाया गया । इन मुसलमानोंने हिंदुओंको प्रताडित किया तथा हैद्राबाद संस्थानसे निष्कासित किया । निजामने हैद्राबाद संस्थानके राजूरका अहमदपूर, धाराशीवका उस्मानाबाद इसप्रकारसे अनेक नगरोंका इस्लामीकरण किया ।   

२ आ ८. गोमंतकभूमिकी पोर्तुगीजप्रचुर नामोंको भी बदलना आवश्यक !

        गोवामें भी मडगांवका नामकरण मठग्राम, पॅन्जीमका नाम पणजी, मापुसाका नाम म्हापसा, वास्को-द-गामाका नाम मुरगाव इसप्रकारसे सर्व पोर्तुगीजप्रचुर नामोंको शीघ्रातिशीघ्र बदलनेके लिए आंदोलन करना चाहिए । 

२ आ ९. ध्यान रखें कि, आंदोलन करनेसे ही नगरोंके नाम बदलते हैं !

        शिवसेनाने आंदोलन किया; इसलिए बाँबेका नाम मुंबई हुआ । इसीप्रकार मद्रासका नाम चेन्नई, कलकत्ताका नाम कोलकातामें परिवर्तित हुआ । बदला गया । ध्यान रखें  कि, यदि हम प्रभावी आंदोलन करेंगे, तो विदेशी नामोंके स्थानपर स्वदेशी नाम रखे जा सकते हैं । 

२ इ. क्षेत्रोंके नाम 

२ इ १. रेलस्थानक

        मुंबईमें रे रोड, चर्चगेट, काटन ग्रीन, डाकयार्ड रोड, एल्फिन्स्टन रोड, ग्रैंट रोड, किंग्ज सर्कल, मरीन लाईन्स, सांताक्रूझ आदी रेलस्थानकोंके नाम अभी तक अंग्रेजीमें ही हैं । नयी देहलीमें हजरत निजामुद्दीन रेलस्थानक आहे. प्रयागमें मुगलसराय यह बडा रेलस्थानक है । इन सभी रेलेस्थानकोंके नाम परिवर्तित करना अत्यावश्यक है ।

२ इ २. राष्ट्रपति भवनकी वाटिकाका नाम अभी तक मुगल गार्डन ही रखना !

        अंग्रेजोंने व्हाइसराय नामक एक अंग्रेजी राजप्रतिनिधिके लिए नयी देहलीमें व्हिक्ट्री हाऊसका निर्माण किया । उसके पीछे बनाई गई वाटिकाका नामकरण मुगल गार्डन किया गया । स्वतंत्रता प्राप्त करनेपर व्हिक्ट्री हाऊसका राष्ट्रपति भवन ऐसा नामकरण किया गया । परंतु मुगल गार्डन यह नाम अबाधित रखा गया । भारतको उध्वस्त करनेवाले मुगलोंका नाम राष्ट्रपति भवनकी वाटिकाको देना अर्थात राष्ट्रकी अस्मिता पैरोंतले कुचलना ही है । इसलिए हमें प्रशासनसे मांग करनी है कि यह नाम परिवर्तितकर भारतीय नाम दिया जाए । 

२ इ ३. राजधानी देहलीमें पग-पगपर दिखनेवाले इस्लामी अत्याचारोंके चिन्ह

        वर्तमानमें देहली नगरमें पग-पगपर इस्लामी आक्रमणकारियोंके चिन्ह दिखते हैं । दीवाने-खास, लाहौरी दरवाजा, दिल्ली दरवाजा, छत्ता चौक, नौबतखाना, दीवाने आम, हमाम, सम्मनबुर्ज, हयातबख्श बांग, जफर महल, शाहबुर्ज, आजायबघर, सलीमगढ, कुतुबमिनार, अलाई दरवाजा, अलाई मिनार, तुगलकाबाद, पुराना किला, चांदनी चौक जैसे स्थानोंके इस्लामी नाम हमें एक-एक कर परिवर्तित करने  हैं । 

२ ई. मार्गोंके नाम

        आज भी नयी देहलीमें अकबर मार्ग, औरंगजेब मार्ग, शाहजहां मार्ग, तुगलक मार्ग आदि मुगल आक्रमणकारियोंके नामसे मार्ग हैं । जिन मुगलोंने हिंदुओंपर अनन्वित अत्याचार किए, उनका उदात्तीकरण क्यों सहन करें ?

२ उ. वास्तूके नाम

        मुंबईमें गेट वे ऑफ इंडिया यह अंग्रेजोंद्वारा दिया गया नाम अभी तक अबाधित है । अब हमें आग्रह करना है कि, इस वास्तूका नामकरण भारतीय पद्धतिसे  हो ।

 

३. विदेशी आक्रमणकारियोंके नाम हटाकर स्वदेशी नाम देनेकी पद्धतिको जान लें !

        विदेशी नाम हटाकर उस स्थानको क्या नाम देना चाहिए इस संदर्भमें भी हमें विचार करना आवश्यक है ।

३ अ. जनपद गैजेटसे स्थानका मूल नाम ढुंढे और वह दें !

        विदेशी आक्रमणकारियोंके नामसे प्रसिद्ध स्थानका अथवा नगरका मूल नाम क्या था, इसकी जानकारी विकीपिडीया इस जालस्थलपर (वेबसाईटपर) उपलब्ध होती है । यदि विकीपिडीयापर संदर्भ न मिले तो, उस नगरके अथवा वास्तूके डिस्ट्रीक्ट गैजेटमें इसका उल्लेख होता है । प्रत्येक जनपदके जनपदाधिकारी कार्यालय अथवा शासकीय मुद्रणालयमें जिला गैजेट देखनेको मिलता है अथवा उसे वहांसे क्रय किया जा सकता है । उस गैजेटसे संबंधित स्थानका मूल नाम और उसके नामांतरणका इतिहास पढा जा सकता है । आंदोलन करनेपूर्व यह जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है ।

३ आ. क्षेत्रके स्थानीय इतिहासको ध्यानमें लेकर नाम दें !

        विदेशी नाम परिवर्तित करते समय कभी कभी यह ध्यानमें आता है कि, उस नगरका मूल नाम अर्थहीन था अथवा उस क्षेत्रमें हिंदुओंके लिए महत्त्वपूर्ण इतिहास घटा था । स्थानीय लोगोंको वहांके प्रेरणादायी इतिहासका सदैव स्मरण हो, ऐसे नाम उस क्षेत्रको दे सकते हैं । 

३ इ. देवता, ऋषि, संत, राष्ट्रपुरुष एवं क्रान्तिकारियोंके नाम दें !

        भारतियोंकी दृष्टिसे देवता, ऋषि एवं संत वंदनीय होते है तथा राष्ट्रपुरुष और क्रान्तिकारी प्रेरणादायी होते हैं । उनकी परंपराको संजोने तथा उनके स्मरणका एक मार्ग है, स्थानोंको देवता, ऋषि, संत, राष्ट्रपुरुष और क्रांतीकारियोंका नाम दे । अध्यात्मशास्त्रीय सिद्धान्त है कि, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध और उससे संबंधित शक्ति साथमें विद्यमान रहती है। इसलिए क्रूर विदेशी आक्रमणकारियोंके नामका उच्चारण करनेसे वातावरणमें अनिष्ट स्पंदन उत्पन्न होते हैं । देवता, ऋषि और संतोंमें चैतन्य होता है । उनके नामका नाम उच्चारण करनेसे वातावरणमें अच्छे स्पंदन उत्पन्न होते हैं ।

 

४. आंदोलन कैसे करें ?

अ. अपने क्षेत्रके ऐसे स्थान जिन्हें विदेशी

आक्रमणकारियोंने अपने नाम दिए हैं, वे स्थान आंदोलनके लिए निश्‍चित करें !

        इससे स्थानीय लोगोंको इस आंदोलनमें सम्मिलित करना सरल होगा ।  

४ आ. हस्ताक्षर अभियान चलाएं !

        विशिष्ट क्षेत्रमें किसी स्थानके नामांतरणकी मांग किसी विशिष्ट संगठनकी नहीं, अपितु सामान्य जनताकी है, यह जनप्रतिनिधि तथा प्रशासनके ध्यानमें लानेके लिए हस्ताक्षर अभियान चलाएं ।

४ इ. स्थानीय स्वराज्य संस्था और

जनपदाधिकारी कार्यालयोंको नामांतरणकी मांगका निवेदन दें !

        अपने क्षेत्रमें नगरों, वास्तु इत्यादिके विदेशी नाम परिवर्तितकर स्वदेशी नाम देनेके संदर्भमें एक निवेदन सिद्ध करें । इस निवेदनमें नगरको कौनसा स्वदेशी नाम देना है, इसकी जानकारी सकारण लिखें । इसे जनताके हस्ताक्षरोंका पत्र जोडे । स्थानीय स्तरके प्रतिष्ठित व्यक्ति, विविध समविचारी संगठनोंके प्रमुख इत्यादिकी मंडली बनाएं और उनकेद्वारा यह निवेदन ग्रामपंचायत, जनपद परिषद, नगरपालिका आदी स्थानीय स्वराज्य संस्था तथा जनपदाधिकारी कार्यालयोंको दें । निवेदन प्रस्तुत करें तथा प्राप्ति लें । इससे आगे न्यायालयीन कार्योके लिए उनका उपयोग हो सकता है ।

४ उ. लोकजागृतिद्वारा जनआंदोलन खडा करें !

        निवेदन देनेके उपरांत अगला चरण है, प्रशासन और राज्यकर्ताओंपर दबाव डालना ! यह विषय जनपदके अधिकाधिक नागरिकोंतक और प्रसारमाध्यमोंतक पहुंचानेके लिए अपने क्षेत्रमें क्षमतानुसार आंदोलन, मोर्चा निकालकर जनजागृति करें ।

४ उ. स्थानीय क्षेत्रोंको स्वदेशी नाम देनेकी घोषणा पत्रकार परिषदद्वारा करें !

        नामांतरणके आंदोलनका प्रमुख ध्येय यह है कि, उस जनपदके प्रत्येक घरमें नामांतरणकी आवश्यकताकी चर्चा होनी चाहिए । अधिकाधिक समाचारपत्रोंके वृत्तपत्रोंके माध्यमसे यह विषय नागरिकोंतक पहुंचानेके लिए आंदोलनकेपूर्व ही पत्रकार परिषद लें । इस प्रकारकी पत्रकार परिषदके माध्यमसे नामांतरणकी मांग करनेकी हमारी स्पष्ट वैचारिक भूमिकाके साथ ही आंदोलनका प्रचार-प्रसार भी हो सकता है । 

४ इ. राष्ट्रीय स्तरपर करनेकी कृति

४ इ १. जनहित याचिका प्रविष्ट करें !

        देशके प्रमुख नगरों, वास्तुओंके विदेशी नाम परिवर्तित करनेके लिए धर्मप्रेमी अधिवक्ताओंकी सहायतासे जनहित याचिका प्रविष्ट कर सकते है । हमें इसप्रकारसे व्यवस्था करनी चाहिए कि, जिससे जनहित याचिका प्रविष्ट करनेसे राष्ट्रीय प्रसारमाध्यमोंद्वारा इस याचिका का यथायोग्य प्रसार हो । पत्रकार परिषद अथवा प्रसारपत्रक प्रकाशित करना इत्यादि माध्यमोंसे भी प्रयास करने चाहिए ।

४ इ २. प्रत्येक शासकीय और अशासकीय पत्रव्यवहारमें स्वदेशी नामोंका ही उल्लेख करें !

        हमें स्वयं अपने दैनिक शासकीय और अशासकीय पत्रव्यवहारोमें स्वदेशी नामोंका उल्लेख करनेके साथ लोगोंका भी उस दृष्टिकोनसे प्रबोधन करना आवश्यक है । उदा. औरंगाबादकी अपेक्षा संभाजीनगर । सदैव स्वदेशी नामोंकानामोंका उपयोग केवल औपचारिक कृति नहीं अपितु नामांतरणके विचारोंकी चिनगारी है । यह चिनगारी उस नामको बचानेके लिए प्रयास करनेवाले प्रत्येक व्यक्तिके मनमें हिंदु संस्कृती और राष्ट्रकी अस्मिता जागृत किए बिना नहीं रहेगी ।

४ इ ३. प्रसारमाध्यमोंद्वारा स्वदेशी नामोंका प्रसार करें !

        प्रसारमाध्यम अत्यंत प्रभावी माध्यम हैं । इनके माध्यमसे भी स्वदेशी नामोंका प्रसार हो सकता है । समाचारपत्रोंमें पत्रलेखन, स्तंभलेखन इत्यादिके लिए स्वदेशी नामोंका उपयोग करें । दूरदर्शन प्रणालपर आयोजित चर्चासत्रोंमें भी स्वदेशी नामोंका ही उपयोग करें । व्हॉट्स अप, फेसबूक इत्यादि सामाजिक जालस्थलोंद्वारा विदेशी नाम हटानेके लिए जागृति कर सकते है ।

४ इ ४. जिन स्थानोंके नाम विदेशी हैं, ऐसे स्थानोंके स्वदेशी नाम प्रचिलित करने हेतु प्रयास करें !

        कुछ नगरोंके नाम शासनद्वारा पारित नहीं हैं, तब भी व्यवहारमें प्रचलित हैं । उदा. महाराष्ट्रके औरंगाबादका संभाजीनगर, होशंगाबादकी अपेक्षा नर्मदापुरम् । लोग इन नामोंका अधिकाधिक उपयोग करें, इसलिए  हमें प्रयास करने चाहिए ।   

 

५. वर्तमानमें हिंदुओंके कुछ स्थानोंके होनेवाले इस्लामीकरणको रोकें !

        ऐसा नहीं है कि नगरों, वास्तू आदीके नाम केवल स्वतंत्रताके पूर्व ही परिवर्तित किए गए थे, अपितु वे आज भी नियोजनबद्ध पद्धतिसे परिवर्तित किए जा रहे हैं ।

५ अ. कुछ दिनपूर्व ही कश्मीरकी शंकराचार्य पहाडीका नामकरण तख्त-ए-सुलतान किया गया ।  
५ आ. वाराणसीमें अयोध्या कॉलनी नामक बस्ती है । वहां रहनेवाले मुसलमान घरका पता लिखते समय अयोध्या कॉलनीके स्थानपर अमनपुरी लिखते है ।
५ इ. सुलतानपुरसे फैजाबादका यह मार्ग गोमती नदीके सेतुसे होकर जाता है । उस स्थानका नाम गोमतीनगर है । लगभग १०-१२ वर्षपूर्व मुसलमानोंने गोमतीनगरकी पट्टिका निकालकर फेंक दी । वहां हिंसाचार किया तथा धमकियां देकर पांचोपीरन इस नामकी पट्टिका लगाई । यह पट्टिका अभीतक वहां है । इसका तात्पर्य यह है कि, आज भी नगरोंका इस्लामीकरण चालू है । उसे रोकनेके लिए हमें सक्रिय  होना आवश्यक है ।  

 

६. आवाहन

        विदेशी नामहटाकर स्वदेशी नाम देनेका यह नामांतरण अभियान हमें अपने-अपने क्षेत्रमें चलाना है और जनक्रान्तिका बीज बोना है । हिन्दू राष्ट्र स्थापित होनेपर हम सभी विदेशी नाम हटाकर उन्हें मूल संस्कृतपर आधारित नाम देंगे । 

जयतु जयतु हिन्दुराष्ट्रम् ।

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