श्रावण शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, कलियुग वर्ष ५११६
हिन्दू राष्ट्रके विवादमें कोई भी धर्मके धर्मगुरु प्रविष्ट नहीं हुए हैं, केवल गोवाके चर्चके धार्मिक शाखाके मुख्य फादर मॅवेरीक फर्नांडीसने व्यर्थ निधर्मीपनका सुर निकाला है । इतना ही नहीं, उन्होंने तो हिन्दू राष्ट्रका विचार प्रस्तुत करनेवाले मंत्रियोंको देशमें निवास करनेका अधिकार ही अस्वीकृत किया है ! निधर्मीपनके संदर्भमें वक्तव्य देनेवाले फादर, प्रथम इस बातका उत्तर दीजिए कि इस देशके ईसाई पाठशालामें पढनेवाले अन्य धर्मीय छात्रोंपर येशुकी प्रार्थना करनेके लिए विवश किया जाता है, साथ ही उन्हें हिन्दू त्योहारोंके समय हाथपर मेहंदी, गलेमें देवताका पदक परिधान करनेका विरोध क्यों किया जाता हैं ।
पोप जॉन पॉलने भारतमें आकर यह वक्तव्य दिया था कि पूरा भारत ईसाईमय करना है; किंतु क्या उनका यह वक्तव्य भारतकी घटनाके अंतर्गत आता है ? पोर्तुगालके आक्रामकोंको स्वतंत्रता सेनानियोंने गोवासे निकालनेके पश्चात उनके विजयके सम्मानार्थ भारतमें भेजे गए सांग्रेस जहाजपर कांग्रेसके नेताओंको घटनाविरोधी कृत्य किया, इस कारणसे निकाल देनेकी मांग क्यों नहीं की गई ? जिस प्रकार पोप जॉन पॉलने विश्वके अनेक देशोंके इाqन्क्वजिशनकी यातनाके लिए खुले आम क्षमायाचना की है, यह फादर उसी प्रकारकी क्षमायाचना गोवाके इन्क्विजिशनके संदर्भमें करनेकी मांग क्यों नहीं करते ? यदि जनतंत्रप्रधान देश होते हुए भी इटली, इंग्लैंड ईसाई राष्ट्र हो सकते हैं; तो बहुसंख्य हिन्दुओंका भारत हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं हो सकता ?
शहाबानो परिवादमें राज्यघटना ही परिवर्तन करनेवाले कांग्रेसवालोंको अभी ही राज्यघटनाका स्मरण क्यों हुआ है
हिन्दू राष्ट्र संकल्पना घटनाविरोधी नहीं, अपितु घटनाके साथ ही है !
भाजपा तथा मगोपा इन दलोंके नेताओंद्वारा हिन्दू राष्ट्रविषयक विचार प्रस्तुत करते ही, अनेक घटनाबाह्य कार्य करनेवाले कांग्रेसके नेताओंको अकस्मात राज्यघटनाका स्मरण होनेपर उन्होंने उसकी कार्यान्विती करना आरंभ किया है । सुननेमें आया है कि उसके लिए वे राज्यपालसे भेंट की मांग करनेवाले हैं ! किंतु कांग्रेसके नेता प्रथम यह बात स्पष्ट करें कि स्वयं राज्यघटनामें अपनी सुविधानुसार ९७ परिवर्तन करनेवाले तथा मुसलमानोंके मतोंके लिए शहाबानो परिवादमें सर्वोच्च न्यायालयका निर्णय अस्वीकृत कर स्वयं ही राज्यघटनामें परिवर्तन करनेवाले कांग्रेसके नेताओंपर क्या कार्रवाई करनी चाहिए ।
बाबासाहेब आंबेडकरद्वारा लिखी गई मूल राज्यघटनामें निधर्मी शब्दका कहीं भी उल्लेख नहीं था । इंदिरा गांधीने आणीबाणीके समय १९७६ में ४२ वीं घटनादुरुस्ती कर धर्मनिरपेक्ष तथा समाजवाद, ये शब्द राज्यघटनामें प्रविष्ट किए । इसका अर्थ, १९७५ में यदि यह राष्ट्र निधर्मी करेंगे, ऐेसी घोषणा करना, घटनाबाह्य (असंवैधानिक) नहीं था; तो हिन्दू राष्ट्रकी घोषणा घटनाबाह्य कैसे हो सकती है ? यदि राज्यघटनाके कारण सबको विचारस्वतंत्रता प्राप्त हुई है, तो हिन्दू राष्ट्र संकल्पनाको घटनाविरोधी कैसे कह सकते हैं ? सोनिया गांधीको घटनाबाह्य रीतिसे नेशनल एडवायजरी कौन्सिलकी अध्यक्षा घोषित कर शासनके सारे सूत्र उसके हाथमें सौपनेंवाली कांग्रेस उसके घटनात्मक स्वरूपके संदर्भमें क्यों नहीं वक्तव्य देता ? साथ ही राज्यघटनामें धर्मपर आरक्षण देनेके लिए स्वीकृत नहीं है, ऐसा होते हुए भी हाल ही में महाराष्ट्रके कांग्रेस अघाडी शासनने मुसलमानोंको ५ प्रतिशत आरक्षण घोषित किया है । इस घटनाविरोधी कृत्यके लिए गोवाका कांग्रेस दल उनके विरोधमें कार्रवाई करनेकी मांग कर सकता है ?
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात