हम अपना परिचय एक ‘भारतीय’ के रूप में कराते हैं; परंतु इसकी अपेक्षा हमें, स्वयं को पहले एक ‘हिन्दु होने’ की अस्मिता पुरे विश्व को दिखानी चाहिए ! – डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी
पुणे (महाराष्ट्र) : विश्व में अबतक ४६ संस्कृतियोंका अस्त हुआ; परंतु उसमें से केवल हिन्दु संस्कृति ही टिकी हुई है !
हिन्दु संस्कृति पुनः अपने वैभव के शिखरपर होगी !
यह सब ऋषी एवं संत इनके तपःसामर्थ्य के कारण होगा; परंतु इसमें हमें अपना योगदान देना चाहिए, ऐसा प्रतिपादन भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने किया। वे २६ जनवरी के दिन पुणे में आकुर्डी के आंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ के (इस्कॉन) मंदिर में आयोजित २५ वे प्रेरणा समारोह में बोल रहे थे।
इस कार्यक्रम का प्रारंभ दीपप्रज्वलन से किया गया। इस कार्यक्रम में ८०० से भी अधिक युवक उपस्थित थे। इस्कॉन के श्री. गोविंदप्रभु ने प्रस्तावना की।
डॉ. स्वामी ने आगे कहा ….
१. अपनी विजिगिषु वृत्ति के कारण गुजरात, महाराष्ट्र एवं राजस्थान इन प्रदेशोंके राजाओंने संघटित होकर पहले खलिफा के आक्रमण को रोका। उनके इस संघटन एवं विजिगिषु वृत्ती के कारण वे अगले ४०० वर्षों तक भारत की ओर देखने का भी साहस नहीं कर सके ! आज हिन्दूओंने यदि ऐसी ही विजिगिषु वृत्ति दिखाई, तो हम ‘इसिस’ को समाप्त कर सकते हैं !
२. विगत २०० वर्षोंसे (मेकॉले प्रणित) शिक्षाप्रणाली के माध्यम से भारतियों में हीनता की भावना उत्पन्न हुई है ! वास्तव में ७०० वर्ष पूर्व हमारा राष्ट्र सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक एवं शिक्षा इन सभी क्षेत्रों में सर्वोत्तम था। हमें भारतियोंको इसका भान कराकर उनमें बसी हुई ‘हीनता की भावना’ को दूर करना होगा !
३. हिन्दूओंको अपनी दुर्बल मनोभूमिका को छोडकर एक दृढ मनोभूमिका का अवलंब करना चाहिए। हम अपना परिचय एक ‘भारतिय’ के रूप में कराते हैं; परंतु इसकी अपेक्षा हमें,स्वयं को पहले एक ‘हिन्दु होने’ की अस्मिता पुरे विश्व को दिखानी चाहिए !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात