• आइ.एस.आइ.एस.के प्रयास विफल करने हेतु ही ‘इंडिया अगेन्स्ट इस्लामिक स्टेट’ (IAIS) अभियान
• आतंकवाद विरोधी कठोर कानून अस्तित्व में आने हेतु जनमत का प्रचंड दबाव लाने की अपेक्षा व्यक्त
पुणे (महाराष्ट्र) : इंटरनेट के माध्यम से आइ.एस.आइ.एस.के जिहादी आतंकवादियोंने पूरे विश्व के ६५ देशोंसे लगभग ३० सहस्र लोगोंको अपने जाल में फंसाया है !
आइ.एस.आइ.एस.के प्रयास विफल करने हेतु ‘भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन’ समान ‘इंडिया अगेन्स्ट इस्लामिक स्टेट’ (IAIS) अभियान चलाया जा रहा है।
देश की सुरक्षा के लिए सेना एवं पुलिस है ही, फिर भी एक सुज्ञ नागरिक के रूप में देश रक्षा हेतु सक्रिय होने का प्रत्येक भारतीय का नैतिक कर्तव्य होता है। इस दृष्टि से ही आइ.ए.आइ.एस. अभियान का आरंभ किया गया है।
IAIS जालस्थल के संपादक श्री. पारस राजपूत ने भारतमाता की रक्षा के लिए आतंकवाद विरोधी लडाई में सभी को सम्मिलित होने का आवाहन किया है। ३० जनवरी को आयोजित एक पत्रकार परिषद में वे बोल रहे थे।
इस अवसर पर पनून कश्मीर के श्री. राहुल कौल, हिन्दू विधिज्ञ परिषद के अधिवक्ता श्री. देवदास शिंदे तथा हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. अभिजीत देशमुख उपस्थित थे।
इस समय श्री. राजपूत ने आतंकवादविरोधी कठोर कानून अस्तित्व में आने हेतु जनमत का प्रचंड दबाव लाने की अपेक्षा व्यक्त की।
श्री. राजपूत ने आगे कहा कि ….
१. देश में आतंकवादविरोधी कठोर कानून हो, इस हेतु प्रयास करने की आवश्यकता है। वर्ष २००४ में सत्ता में आते ही प्रगतिशील संयुक्त दल ने पोटा कानून रद्द किया। वर्तमान समय के कानून की व्यवस्था के अनुसार आपने जो २५-३० जिहादी आतंकवादी पकडे हैं, उन्हें हम अधिक समय तक कारागृह में रख सकें, ऐसी स्थिति नहीं है। सभी ने अपने अपने क्षेत्र के केंद्रीय मंत्रियोंसे ‘आतंकवाद विरोधी कठोर कानून’ लाने की मांग करनी चाहिए।
२. आज देश के सेनादल में १० सहस्र से अधिक पद रिक्त हैं। एक ‘सामर्थ्यवान भारत’ के निर्माण हेतु अधिकाधिक युवकोंको सुरक्षादल में सम्मिलित होना आवश्यक है। इस दृष्टि से भी जनजागृति उत्पन्न करने हेतू यह अभियान चलाया जा रहा है एवं भविष्य में पूरे देश में अधिकाधिक स्थानोंपर चलाया जाएगा।
३. भारत में भारी संख्या में युवा शक्ति है, परंतु जिहादी आतंकवाद के कारण उनके अस्तित्व पर ही संकट आ गया है। वर्ष २०२० तक भारत को ‘खुरासान’ नामक इस्लामी देश में रूपांतरित करने का जिहादियोंका नियोजित षडयंत्र है। ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रहित के लिए तन, मन, धन एवं समय का बलिदान देना प्रत्येक नागरिक का आद्यकर्तव्य बनता है।
आइ.ए.आइ.एस. सिर्फ एक ‘जालस्थल’ नहीं, अपितु एक ‘राष्ट्रव्याप्त अभियान’ है ! – श्री. राहुल कौल
श्री. राहुल कौल ने कहा कि, ‘आइ.ए.आइ.एस.’ की ओर सिर्फ एक ‘जालस्थल’ के रूप में नहीं, अपितु एक ‘राष्ट्रव्याप्त अभियान’ की दृष्टि से देखना चाहिए। वर्ष १९९० में जिहादी आतंकवाद के कारण हिन्दुओंको कश्मीर छोडना पडा। आज ऐसी ही स्थिति देशवासियोंपर आ गई है। बम विस्फोट होने पर क्या करना चाहिए, इसका प्रशिक्षण लेते समय ही बम विस्फोट न हो, इसपर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। आज अमेरिका समान प्रगत राष्ट्र में सेना एवं वैद्यकीय शिक्षा पर बल दिया जाता है, न्यूनतम २ वर्ष तक तो ऐसी शिक्षा लेना अनिवार्य है। भारत में भी न्यूनतम २ वर्ष सैनिकी शिक्षा लेना अनिवार्य करना चाहिए।
अधिवक्ता श्री. देवदास शिंदे ने कहा कि, आज तक ऐसी आशा की जा रही है थी कि भारत में आइ.एस.आइ.एस. को आश्रय नहीं मिलेगा, परंतु वास्तविकता यह है कि, भारत से आइ.एस.आइ.एस. के दलाल पकडे जा रहे हैं। पूरे देश में अनेक स्थान पर जिहादी आतंकवादियोंके ‘स्लीपर सेल्स’ कार्यरत हैं। इसीलिए आतंकवाद के विरोध में शासन एवं जनता को जुड़ाने का एक माध्यम के रूप में यह आइ.ए.आइ.एस. अभियान आरंभ किया गया है।
श्री. अभिजीत देशमुख ने भी ऐसा मत व्यक्त किया कि, आतंकवाद के विरुद्ध संगठित रूप से प्रयास करना आवश्यक है।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात