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पंढरपूर के श्री रूक्मिणी मंदिर में शासनद्वारा महिला पुजारीयोंकी नियुक्ति करने के संदर्भ में ‘धर्मशास्रीय भूमिका’

पंढरपूर के श्री रूक्मिणी मंदिर में शासनद्वारा महिला पुजारीयोंकी नियुक्ति की है, आप इस नीति का स्वागत करेंगे ? – झी २४ तास इस समाचार वाहिनीपर हुई चर्चा

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झी २४ तास इस समाचार वाहिनीपर हुई चर्चा में पंढरपूर के श्री रूक्मिणी मंदिर में शासनद्वारा महिला पुजारीयोंकी नियुक्ति की है, आप इस नीति का स्वागत करेंगे ?, ऐसा प्रश्‍न हिन्दु जनजागृति समिति के प्रतिनिधियोंसे पूछा गया।

श्री. सुनील घनवट

उस संदर्भ में ‘धर्मशास्रीय भूमिका’ यहां प्रस्तुत कर रहें हैं . . .

१. हर मंदिर की पौरोहित्य करने की कसौटीयां एवं पूजा करने की पद्धति यह कर्मकांड के नियमोंके अनुसार तथा परंपरा के अनुसार सुनिश्‍चित होती हैं।

यह नियम एवं परंपरा उस मंदिर में वंशपरंपरा से पूजा करनेवाले पुरोहितोंको ही ज्ञात होते हैं। पौरोहित्य करनेवालों में अकस्मात परिवर्तन होने से नित्य पूजा की प्रथा एवं परंपरा खंण्डित होती है। शासन ने श्री रूक्मिणी मंदिर में सैंकडो वर्षों से पौरोहित्य करनेवाले उत्पातोंको तुरंत हटाकर पूजाविधी ज्ञात न होनेवाली महिला पुजारीयोंकी नियुक्ति कर धार्मिक परंपराओंको बहुत बडी क्षति की है तथा उस से मंदिर की पवित्रता को भी बाधा पहुंची है।

२. हिन्दु धर्मशास्र के अनुसार किसी भी मंदिर में किया जानेवाला पौरोहित्य, पौराहित्य की शिक्षा लिए हुए पुरूष पुरोहितोंद्वारा ही करने की प्रथा है।

महिला पुरोहित की संकल्पना ही धर्मशास्र को संमत नहीं है। श्री रूक्मिणी मंदिर में महिला पुरोहित नियुक्त करने की शासनकी यह नीति निंदनीय ही है।

३. राजसत्ता तो, धर्मसत्ता के अधीन ही होती है, यह भारत का इतिहास है !

धार्मिक क्षेत्र की धर्मपरंपराओंके संदर्भ में राजसत्ताद्वारा निर्णय लिया जाना, ये तो राजधर्म को हटाने जैसा है तथा यह समाजहित के लिए हानीकारक है।

सडक एवं पूल निर्माण कार्य में जैसे छोटे-छोटे निर्णय भी गलत साबित होने के कई उदाहरण हैं। इस पार्श्वभूमिपर धर्मशास्र का ज्ञान न होते हुए भी पंढरपूर के श्री रूक्मिणी मंदिर में महिला पुजारियोंकी नियुक्ति करने का निर्णय शासनद्वारा लेना अनुचित ही है !

श्री रूक्मिणी मंदिर में महिला पुरोहितोंकी नियुक्ति करने जैसा निर्णय लेते समय शासन को धर्ममार्तंड, संत-महंत एवं शंकराचार्यजी इनसे मार्गदर्शन नहीं लिया। इसलिए जो धर्मसत्ता को अमान्य है उस निर्णय को परस्पर राज्यकर्ताओंने लेना, यह ‘उन्मत्तता’ का लक्षण है !

४. धर्म का पालन कठोरतासे ही करना होता है। उसमें सामाजिक भाव-भावनाओंका कोई स्थान नहीं होता ! केवल लोकेषणा के कारण पुरोगामी एवं सत्ताधारी लोग महिला पुरोहित, स्रीमुक्ति, धार्मिक क्षेत्र में स्री-पुरूष समानता जैसी ‘लोकानुनय’ करनेवाली भूमिका लेते हैं !

भले ही इस कारण उपर से ‘समाजपरिवर्तन’ होता दिखाई देता हो, परंतु धर्महानी के कारण उस से समाज की अवनती होती है। कालांतर से इस अवनती निर्मित पापोंको सामाजिक कलह, नैसर्गिक आपदा जैसे माध्यमोंसे पुरे समज को ही भुगतना पडता है !

इसके लिए पूर्णरूप से धर्मविरोधी निर्णय लेनेवाले राज्यकर्ता एवं उनके समर्थक उत्तरदायी होते हैं !

५. श्री रूक्मिणी मंदिर की पूजाविधी वंशपरंपरा से करनेवाले उत्पातोंको हटाकर महिला पुजारियोंद्वारा पूजाविधी करवानेसे अनेक धार्मिक परंपराओंको तोड-मरोड दिया है, ऐसा नगरवासी, वारकरी एवं श्रद्धालु इनका कहना है !

देवस्थान समिति इस से अवगत है; परंतु देवस्थान समिति मंदिर की पूजा में होनेवाली धार्मिक परंपरा निरंतर रखने के संदर्भ में सतर्क नहीं है !

रूक्मिणी मंदिर में होनेवाला पूजाविधी सुचारू रूप से न होने के कारण नगरवासी, वारकरी एवं श्रद्धालु मन से अत्यंत दुखी हैं। राज्यकर्ता रूक्मिणी मंदिर की पूजा की धार्मिक परंपरा को पहले जैसी निरंतर रखकर श्रद्धालुओंकी श्रद्धा की रक्षा करने का कर्तव्य निभाएं !

– श्री. सुनील घनवट, महाराष्ट्र राज्य संगठक, हिन्दु जनजागृति समिति

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

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