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ऑस्ट्रेलियाके ‘मेलबर्न फेस्टिवल’में ‘बैक टू बैक थिएटर’निर्मित नाटकमें श्री गणेशका अनादर !


मेलबर्न, ऑस्ट्रेलियामें ६ से २२ अक्टूबरकी कालावधिमें वार्षिकोत्सव मनाया जा रहा है । इस उत्सवमें विविध कलाओंका समावेश किया जाता है, उदा. नृत्य, संगीत, नाटक इत्यादि । ‘बैक टू बैक थिएटर’नामक नाटक संस्थाने हाल ही में एक नाटक तैयार किया । उस नाटकमें दिखाया गया है कि, ‘हिंदुओंके देवता श्री गणेश जर्मनीके हिटलरसे लढकर स्वस्तिक चिन्ह वापस ले रहे हैं । ।’ नाटकमें श्री गणेश, श्रीविष्णु और शिवजी का अनादर है । इस नाटकमें हुए अनादरकी संक्षिप्त जानकारी तथा उसका निषेध करनेके लिए चलाए गए आंदोलनके विषयमें हमें आए हुए अनुभव यहां दे रहे हैं ।

निम्न पतेपर हिंदु निषेध कर रहे हैं ।

मेलबर्न फेस्टिवल, फैक्स क्र. : +६१ ३ ९६६३ ४१४१
इ-मेल : [email protected],
जालस्थान (संकेतस्थल) : www.melbournefestival.com.au

नाटकका कुछ उपहासात्म भाग

१. भगवान श्री गणेशको कोट-पैंट-टाय परिधान किए दिखाया है ।
२. हिटलरके नाजियोंने श्री गणेशको बंदी बनाकर चाकू दिखाया ।
३. भगवान श्री गणेशको मद्य प्राशन करते हुए दिखाया है ।
४. श्री गणेशकी तुलना ‘स्पाइडरमैन’ तथा ‘किंगकाँग’ के साथ की है ।
५. जिसने श्री गणेशकी भूमिका की है वह बीच-बीचमें हाथीका मुखौटा निकालकर कहता है, ‘‘‘मेरा शिश्न चूसो’’ ।
६. एक बार ऐसा पूछा जाता है कि, ‘क्या गणेशकी सूंड काफी लंबी है ?’ तब उपस्थित दर्शक हंसते हैं ।
७. एक मनुष्य केवल चड्डी पहनकर श्रीविष्णुकी भूमिका करता है ।
८. भगवान शिवको एक मनुष्यके दो टुकडे करते हुए दिखाया है ।

आंदोलनके संदर्भमें आए अनुभव

१. देवी-देवताओंके विडंबनात्मक नाटककी कपटी निर्माती एलिस नैश ! : ‘फोरम फॉर हिंदु अवेकनिंग’की ओरसे निषेध व्यक्त करनेवाले श्री. वाम्सी कृष्णाको नाटककी निर्माती एलिस नैशने बताया कि, ‘‘हम आपको बताना चाहते हैं कि श्री गणेशका अवमान करना, यह हमारा उद्देश्य नहीं है । यह नाटक मनोरंजन नहीं, अपितु यह देखनेका प्रयत्न है कि किस प्रकार देवी- देवता, चिन्ह इत्यादिके माध्यमसे कहानियां बताई जा सकती हैं ।’’ (मूलत: कोई कहानी बतानेके लिए हिंदु धर्मके देवी-देवता अथवा चिन्हका उपयोग करना अयोग्य है । साथ ही यह वस्तुनिष्ठ भी नहीं है । हिंदु धर्मके देवी-देवताओंको कोट-पैंटमें दिखाना भी गलत तथा अपमानजनक है । एलिस नैश चाहे तो ईसाई धर्मकी किसी बातका उपयोग इसके लिए कर सकती हैं । – संकलक)

इस नाटकमें क्या-क्या विडंबनात्मक है, यह संगणकीय पत्रद्वारा सूचित किया, तब नैशने कहा, ‘‘हम एक बैठक लेनेवाले हैं । इस बैठकमें  अनेक हिंदु संस्थाओंके लोग आनेवाले हैं । हम आशा करते हैं कि इस बैठकमें उन्हें हमारा हेतु स्पष्ट हो जाएगा ।’’ (अनेक हिंदुओंको यह समझमें ही नहीं आता कि हमारे देवी- देवताओंका अनादर हो रहा है । साथ ही उनमें  स्वाभिमान भी नहीं; इसलिए नैश जैसे लोगोंको लाभ होता है और वे अनादर करनेका दुस्साहस करते हैं । इसका विरोध करना चाहिए । – संकलक)

‘मेलबर्न फेस्टिवल’के व्यवस्थापकने भी यही बताया । उन्होंने कहा कि, ‘‘हमारे दिग्दर्शकको इस नाटक कंपनीका काम उत्तम लगा; इसीलिए लोगोंको नाटक देखनेके उपरांत ही यह निश्चित करना चाहिए कि क्या योग्य है ।’’

२. हमारा धर्म सहिष्णु है; अत: देवी-देवताओंके अनादरके विषयमें विरोध न करें, ऐसा कहनेवाले ऑस्ट्रेलियामें एक आश्रमके स्वामी ! : यहांके एक आश्रमके स्वामीजीने इस नाटकके विषयमें अपना मत व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मैंने स्वयं यह नाटक नहीं देखा; किंतु मेरे निकटवर्ती मित्रके बतानेपर ऐसे लगता है कि यह नाटक अच्छा है । गणेश प्यारा है; इसीलिए पार्वतीने उसे स्वस्तिक वापस लानेके लिए कहा । इस नाटकमें कुछ भी अनादरपूर्ण नहीं है । हिंदुओंको समत्व रखनेके साथ-साथ थोडी विनोदबुद्धी भी रखनी चाहिए । इस विषयमें इतनी गंभीरता नहीं रखनी चाहिए ।’’

(किसी भी देवी-देवताको वे जैसे नहीं हैं, वैसा उन्हें दर्शाना अत्यंत अयोग्य है; इसलिए वह अनादर ही है । देवी-देवता, यह कहानीके रूपमें प्रस्तुत करनेके लिए नहीं, अपितु आराधना के लिए हैं । इसकारण कोई भी हिंदु धर्माभिमानी यह सहन नहीं करेंगे । – संकलक) कुछ दिनों पश्चात् उन्होंने ‘यह नाटक देखा’, ऐसा कहा और बताया, ‘‘मेरे विचारसे इस नाटकके विषयमें वहां जाकर विरोध करनेकी आवश्यकता नहीं । वह एक नाटक होनेके कारण उसमें कुछ अपमानजनक नहीं । मैं भी हिंदु ही हूं, हमारा धर्म सहिष्णु है । हमें यह विषय यहीं छोड देना चाहिए ।’’ (नाटकमें हिंदु देवी- देवताओंका उपयोग मनोरंजनके लिए करना अयोग्य है और यह बात ऐसी नहीं है कि उसे ऐसे ही छोड दिया जाए ! – संकलक)

३. हम पराए देशमें रहते हैं; अत: ऐसे अनादरका विरोध नहीं करना चाहिए, ऐसा कहनेवाले हिंदु ! : मेलबर्नमें ‘हिंदु संस्कृति मंडल’के हिंदु सभासदोंने कहा, ‘‘हमें इस नाटकमें इतना अनुचित कुछ नहीं लगा । हम इन लोगोंके देशमें रह रहे हैं, अत: छोड दें । विरोध न करें ।’’ (अनादरके पहले ही प्रसंगमें हिंदुओंद्वारा विरोध न करनेसे यह ध्यानमें आता है कि वे कितने पराभूत मानसिकताके हैं । हम दूसरेके देशमें रहते हैं, इसलिए अपने धर्मके विषयमें कुछ भी सहन करना यह इसीका द्योतक है, इसीलिए धर्मजागृतिकी आवश्यकता है । इसीके साथ निषेध भी व्यक्त करना चाहिए । – संकलक)

– श्री. अतुल दिघे, ब्रिस्बेन, ऑस्ट्रेलिया.

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