श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी, कलियुग वर्ष ५११६
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कोटा (राजस्थान) : अमरीका से लौटकर आई भगवान विष्णु और लक्ष्मी की दुर्लभ प्रतिमाएं शीघ्र ही श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए उपलब्ध हो सकती हैं। पांच वर्ष पूर्व चोरी हुई पुरामहत्व की मूर्तियां बरामदगी के बाद अमरीका ने भारत सरकार को सौंप दी है। मूर्तियों के न्यूयार्क स्थित भारतीय दूतावास में प्राप्त होने के बाद अब दिल्ली लाया जाएगा। अटरू के गड़गच मंदिर में एक बार फिर भगवान विष्णु-लक्ष्मी दर्शन दे सकते हैं।
विभाग के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मूर्तियां दिल्ली आने के बाद महानिदेशक स्तर पर चर्चा होगी। केन्द्रीय पुरातत्व विभाग का संग्रहालय दिल्ली में है। ऎसे में एक संभावना वहां रखे जाने की है। जयपुर सर्किल की भी कोशिश है कि प्रतिमा आए। यदि जयपुर सर्किल का प्रस्ताव स्वीकृत होता है और प्रतिमाएं दिल्ली संग्रहालय में नहीं रखी जाकर जयपुर भेजी जाती है तो अटरू के मंदिर में फिर से भगवान विष्णु-लक्ष्मी की प्रतिमा दर्शन दे सकती है।
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों अमरीका के कस्टम एवं प्रवासी प्रवर्तन के होमलेण्ड सिक्योरिटी इनवस्टीगेशन विभाग के कार्यकारी निदेशक जेम्स डिन्किन्स एवं भारतीय कौंसिल के जनरल धनेश्वर मूले के बीच हुई समझौता हुआ और प्रतिमाएं सौंपी गई।
ऎसे गई अमरीका
भारतीय प्रतिनिधि मूले ने प्रतिमाओं के अमरीका पहुंचने पर आश्चर्य जताते हुए अमरीका के सहयोग की तारीफ की। उन्होंने कहा कि प्रतिमाओं की तस्करी के पीछे सुभाष कपूर को मास्टरमाइंड माना जा रहा है। प्राथमिक जांच के अनुसार विष्णु-लक्ष्मी की प्रतिमा चोरी के बाद बेचकर समुद्री मार्ग से जहाज के जरिए थाईलैण्ड पहुंचाई गई। यहां इसे फिर से बेचा गया और लंदन के खरीदार ने खरीदा। वो इन्हें न्यूयार्क सिटी मार्च 2010 में प्रदर्शनी के लिए ले गया। जहां अमरीका के सिक्योरिटी इन्वेस्टीगेशन ने जब्त कर लिया।
मूल्य 15 लाख डॉलर
अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमत 15 लाख डॉलर (9 करोड़ रूपए) बताई जा रही है। ये मूर्तियां विष्णु-लक्ष्मी, विष्णु-पार्वती तथा काले पत्थर की बोधिसत्व की हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से वर्ष 2007-08 में इस मंदिर का स्वरूप सुधारने के लिए खुदाई कराई गई थी। विष्णु-लक्ष्मी की प्रतिमा इंटरपोल की टॉप-10 की सूची में शामिल थीं।
इस बारे में निदेशालय से कोई जानकारी नहीं ली गई है। प्रतिमा भारत को सौंप दी है, इसकी जानकारी है। आगे का निर्णय उच्च स्तर पर ही होगा। – सुरेश कुमावत, संरक्षण सहायक, भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग, कोटा
स्रोत : पत्रिका