नर्इ देहली – राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एन जी टी) द्वारा हिंदू धर्म के परंपरागत दाह संस्कार को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला बताये जाने पर भारत के हिंदू संगठनों ने तीव्र विरोध किया है ।
दिल्ली में रहने वाले बृजमोहन लाल भाटिया ने दिल्ली में सूचना के अधिकार अधिनियम के आधार पर पृथक शमशान गृहों में दाह-संस्कार के विविध मार्गो के संबंध में विभिन्न जानकारियां जुटाई और एन जी टी में याचिका दायर की। याचिका में हिंदूओं के परंपरागत पद्धतीसे किए जाने वाले दाह-संस्कार को पर्यावरण के लिए खतरा बताया था। एन जी टी ने उनके द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को दाह-संस्कार में लकडियों के प्रयोग की अपेक्षा उसे पर्यावरण हितैषी बनाने का निर्देश दिया।
वहीं दूसरी तरफ हिंदू संगठनों में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के इस निर्णय को लेकर राेष व्यक्त किया है और उनका कहना है
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण प्रदूषण की आड में उनकी आस्था में दखल दे रही है। हिंदू संगठनों ने एनजीटी की पीठ द्वारा हिन्दुओं के दाह संस्कार को प्रदूषण फैलाने वाला और अस्थि विसर्जन को नदियों के जल को प्रदूषित करने वाले निर्देश को खारिज किया है।
हिंदू संगठनों की बैठक में दारा सेना के अध्यक्ष मुकेश जैन ने पारंपरिक दाह संस्कार के पक्ष में तर्क देते हुए कहा कि लकडियों के दहन से उत्पन्न कार्बन डाइ आॅक्साइड पेड पौधों का संवर्धन करती है और अस्थि विसर्जन की राख जल को स्वच्छ करती है। हड्डियों का कैल्शियम और फॉस्फोरस मछलियों को हड्डियां बनाने के पौषक तत्व देते हैं तो फिर यह पर्यावरण को कैसे खराब कर रहे हैं?
ओजस्वी हिंदू संगठन के कार्यकारी अध्यक्ष स्वामी ओमजी महाराज का कहना है कि, यह अमेरिका की केंद्रीय खुफिया एजेंसी (CIA) का षड्यंत्र है। एक सोचे समझे षड्यंत्र के अंतर्गत हिंदू धर्म को समाप्त करने का प्रयास किया जा रहा हैं। एनजीटी में याचिका दायर करने वाले व्यक्ति अमेरिका की फोर्ड फाउंडेशन से संबधित हैं और भारत में फोर्ड फाउंडेशन ही ऐसी हिंदू विरोधी गतिविधियों को प्रायोजित करता है जिससे स्पष्ट होता है कि, वह अमेरिका के इशारे पर ही भारत में हिंदू धर्म की परंपराओं पर अंकुश लगाकर उसे समाप्त करना चाहते हैं किंतु संत समाज ऐसा नहीं होने देगा।
स्त्रोत : स्पुटनीक न्यूज
४ फरवरी २०१६
हिन्दू दाह संस्कार पर्यावरण के लिए घातक : राष्ट्रीय हरित अधिकरण
हिन्दू दाह संस्कार नहीं, अपितु विज्ञान ही पर्यावरण के लिए हानिकारक सिद्ध हो रहा है, इसिलिए पृथ्वी के अस्तित्व का ही प्रश्न उत्पन्न हुआ है !
अग्नितत्व का महत्त्व न जाननेवाले राष्ट्रीय हरित अधिकरण ! – सम्पादक, हिन्दूजागृति
नई देहली : राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पर्यावरण मंत्रालय तथा देहली सरकार से कहा है कि, वे मानव शवों के दाह संस्कार के वैकल्पिक तरीके उपलब्ध कराने संबंधी योजनाओं की पहल करें । पंचाट ने लकडियां जलाकर किए जानेवाले पारंपरिक दाह संस्कार को पर्यावरण के लिए घातक बताया । (प्रतिदिन रासायनिक कारखानों से निकलनेवाला धूवां, नदी में छोडे जानेवाले रसायनमिश्रित पानी इन कारणोंसे कितना प्रदूषण होता है आैर दाह संस्कार के कारण कितना कथित प्रदूषण हाेता है, इसका अभ्यास राष्ट्रीय हरित अधिकरणने जनता के सामने लाना चाहिए – संपादक, हिन्दूजागृति)
न्यायमूर्ति यू.डी.सल्वी के नेतृत्ववाली पीठ ने कहा कि, लोगों की विचारधारा बदलने और विद्युत शवदाह एवं सीएनजी जैसे पर्यावरण अनुकूल पध्दती अपनाने की आवश्यकता है । पीठ ने कहा, यह आस्था और लोगों की जीवन दशा से जुडा है, इसलिए यह नेतृत्व करनेवालों और खास तौर से धार्मिक नेताओं का दायित्व है कि, वह आस्थाओं का दृष्टिकोण एक दिशा की ओर मोडें और लोगों की अपनी आस्थाओं का पालन करने की विचाराधारा में बदलाव लाकर उन्हें पर्यावरण अनुकूल रीति अपनाने के लिए मनाएं ।
एनजीटी ने कहा कि, दाह संस्कार के परंपरागत उपायों से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है और नदी में अस्थियां बहाने से पानी में प्रदूषण बढता है । पंचाट ने कहा कि, मृत्यु के बाद मानव देह का निपटान करना तब से एक समस्या रही है, जब धरती पर पहले मानव की मृत्यु हुई । यह देखना मुश्किल नहीं है कि, पार्थिव शरीरों को अगर लावारिस छोड दिया जाए तो वह स्वास्थ्य और मानवीय आधार पर उचित नहीं होगा ।
एनजीटी अधिवक्ता, डी एम भल्ला द्वारा दाखिल एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कहा गया था कि, परंपरागत पद्धति से मृत देह के अंतिम संस्कार से वायु प्रदूषण होता है इस कारण दाह संस्कार के वैकल्पिक उपाय उपयोग में लाए जाने चाहिएं ।
संदर्भ : खबर इंडिया