श्रावण शुक्ल पक्ष षष्ठी, कलियुग वर्ष ५११६
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भारत-प्रशासित कश्मीर में प्रशासन द्वारा कौसर नाग झील की धार्मिक यात्रा पर प्रतिबंध लगाने के बाद वहां सांप्रदायिक तनाव पैदा हो गया है।
श्रीनगर में अधिकारियों का कहना था कि ये यात्रा ''शांति और धार्मिक सदभाव के लिए ख़तरा" थी।
यात्रा, १९९० में घाटी छोड़ चुके कश्मीरी पंडितों का एक समूह कर रहा था।
यात्रा का विरोध
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़ इस यात्रा के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज कराने के लिए एक हज़ार से ज़्यादा लोग कौसर नाग की ओर मार्च कर रहे थे। इन प्रदर्शनकारियों की पुलिस से झड़पें भी हुईं। इस बीच अलगाववादियों ने शुक्रवार को घाटी में विरोध प्रदर्शन और शनिवार को दिन भर की हड़ताल का आवाहन किया है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता ख़ुर्रम परवेज़ का कहना है, "ये धार्मिक यात्रा नहीं है। ये एक सैन्य और राजनैतिक अभियान है। इस यात्रा से पर्यावरण और वन्यजीवन को ख़तरा है।"
पिछले कई दशकों से ये यात्रा नहीं हुई है। बीते सोमवार को जम्मू के रियासी से ये शुरु हुई और एक स्थानीय विधायक ने इसे औपचारिक तौर पर शुरु किया।
लेकिन बुधवार और गुरुवार को यात्रा के विरोध में कुलगाम, श्रीनगर और दूसरे क्षेत्रों में प्रदर्शनों और अलगाववादियों के वक्तव्य आने के बाद सरकार ने यात्रा रोक दी।
वहीं कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के संस्थापक संजय टिक्कू ने बीबीसी को बताया कि १९८९ से पहले होने वाली यात्राओं में कौसर नाग यात्रा भी शामिल थी। लेकिन घाटी में चरमपंथ बढ़ने के बाद से ये यात्रा बंद थी।
टिक्कू का कहना था, " अगर ४० लोग इस यात्रा पर जाते हैं तो इससे पर्यावरण पर क्या फ़र्क पड़ेगा? दरअसल कोई नहीं चाहता कि कश्मीरी पंडित लौटें।"
संजय टिक्कू कहते हैं कि इस यात्रा में शामिल संस्थाएं इसे रोके जाने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करेंगी।
अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी ने कहा, "ये यात्रा आरएसएस एजेंडा का हिस्सा है ताकि इस क्षेत्र से मुस्लिम पहचान मिट जाए।''
कौसर नाग झील कश्मीर के शोपियां ज़िले में समुद्र तल से १२ हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है।
स्त्रोत : बीबीसी हिन्दी