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सरकार ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध को बताया सही

नर्इ देहली – सबरीमाला मंदिर में १० से ५० वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध को केरल सरकार ने सही ठहराया है। सर्वोच्च न्यायालय में शपथपत्र दाखिल कर राज्य सरकार ने कहा है कि, मंदिर में अनुष्ठान, समारोह और पूजा करने की विधि पूरी तरह से धर्म का हिस्सा है और संविधान इसकी अनुमती देता है।

राज्य सरकार ने दलील दी है कि, संविधान के अनुच्छेद २५ तथा २६ में सभी व्यक्ति और समुदाय को यह अधिकार मिला हुआ है कि वह अपने पसंद का धर्म अपना सकता है और वह अपने धर्म का प्रचार-प्रसार कर सकता है। 

सबरीमाला मंदिर का प्रशासन ट्रावनकोर देवास्वाम बोर्ड के हाथ में है, जो ट्रावनकोर-कोच्चि हिंदू रिलिजन इंस्टीट्यूशन एक्ट, १९५० के प्रावधान के तहत काम करता है। 

इस अधिनियम के तहत बोर्ड को मंदिर में अपने दस्तूर या परिपाटी के हिसाब से पूजा-पाठ की व्यवस्था करने का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए धर्म के मामले में पुजारियों का मत आखिरी होता है।

सरकार ने कहा कि मंदिर में १० से ५० वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी सदियों से है। यह मंदिर का अनूठा प्रतिष्ठा संकल्प है। सरकार ने पुजारियों के उस वक्तव्य का भी हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि, इस मंदिर में भगवान को नास्तिक ब्रह्मचारी के रूप में बताया गया है। इसलिए यह मान्यता है कि युवतियों को मंदिर में पूजा नहीं करनी चाहिए। 

सरकार ने कहा है कि, हर वर्ष इस मंदिर में आने वाले करीब चार करोड श्रद्धालुओं के अधिकार को ध्यान में रखना उसका कर्तव्य है। सबरीमाला मंदिर इस मामले में अनूठा है कि किसी भी धर्म को मानने वाले श्रद्धालुओं को वहां आने की अनुमति है। 

स्त्रोत : अमर उजाला

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