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पाठशालाआे में संस्कृत भाषा को अनिवार्य करना आवश्यक नहीं : केन्द्रीय समिति

चैतन्ययुक्त भारतीय भाषा संस्कृत को सिखाने के लिए भारतमें ही मांग करनी पडती है तथा तामसिक पाश्चात्त्य इंग्रजी भाषा मांग न करते हुए भी सिखार्इ जाती है, यह भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है ! – सम्पादक, हिन्दूजागृति

नई दिल्लीसंस्कृत भाषा के पुनरुत्थान के लिए पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालास्वामी की अध्यक्षता में बनी समिति का कहना है कि, संस्कृत भाषा को पाठशालाआे में अनिवार्य विषय के तौर पर पढाए जाने की आवश्यकता नहीं है। समिति ने कहा कि, त्रिभाषा सूत्र के अनुसार पाठशाला और परीक्षा समिति को उन लोगों को संस्कृत की पढाई करानी चाहिए, जो उसमें रुचि रखते हों। 

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से गठित ७ सदस्यीय समिति ने अनुशंसा की है कि, सभी संस्कृत तथा वैदिक पाठशालाओं को संदीपनी वेद विद्या प्रतिष्ठान जैसे निश्चित समितीयों के तहत मान्यता दी जानी चाहिए। टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में गोपालास्वामी ने कहा, ‘हम किसी भी भाषा को अनिवार्य बनाए जाने के विरूद्ध हैं।’ यही नहीं समिति ने संस्कृत के शिक्षण में भी व्यापक बदलाव किए जाने की मांग की है। 

गोपालास्वामी ने कहा कि समस्या यह है कि पहले संस्कृत का व्याकरण पढ़ाया जाता है। उन्होंने कहा, ‘ऐसी कोई भाषा नहीं है, जिसका पहले व्याकरण पढ़ाया जाता हो। व्याकरण तो एक स्तर के बाद पढ़ाया जाना चाहिए। इसलिए तौर-तरीकों में बदलाव किए जाने की आवश्यकता है।’

समिति ने सामान्य रूप से उपयोग किए जाने वाले संस्कृत के शब्दों का अलग शब्दकोश बनाए जाने की भी अनुशंसा की है ताकि भाषा का मानकीकरण हो सके और उसे सरल बनाया जा सके।

स्त्रोत : नवभारत टाइम्स

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