श्रावण शुक्ल पक्ष दशमी, कलियुग वर्ष ५११६
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नर्इ देहली – कराची की पत्रकार और लेखिका रीमा अब्बासी ने पाकिस्तान में १५०० साल से भी ज्यादा पुराने मंदिरों के बारे में एक किताब लिखी है। 'हिस्टॉरिक टेंपल्स इन पाकिस्तान: ए कॉल ट्र कंसाइंस' नामक इस किताब में उनकी लेखनी के साथ छायाकार एम एजाज द्वारा ली गई तस्वीरों का बेहतर तालमेल है। इस किताब को हाल में दिल्ली में जारी किया गया। इस किताब में 'हिंगलाज', 'कटस राज', 'कालका गुफा' मंदिर, 'पंचमुखी हनुमान मंदिर' और 'शिवाला मंदिर' जैसे कई पुराने तीर्थस्थलों का वर्णन हैं, जो आज पाकिस्तान में हैं।
किताब में इन प्राचीन मंदिरों की जानकारियों के साथ इन तीर्थस्थलों, यहां की प्रथाओं, उत्सवों और क्षेत्रीय लोगों की तस्वीरें हैं। नियोगी बुक्स प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब को पर्याप्त शोध के बाद छापा गया है, ताकि भारत और पाकिस्तान की यादों में विश्वास के इन पुराने प्रतीकों को जीवंत रखा जा सके। किताब की प्रस्तावना प्रसिद्ध पत्रकार जावेद नकवी ने लिखी है।
रीमा अब्बासी ने बहुत सी यात्राएं करने और यह किताब लिखने के अपने फैसले पर कहा, 'पिछले दस साल तक मेरे लेखन में मूल ध्यान धर्मनिरपेक्षता, सहिष्णुता और बहुलतावाद के मूल्यों पर रहा। यह किताब मूल तौर पर उस सफर का चरम है। यह यात्रा विशेष तो पूरी हो गई है लेकिन तलाश अभी भी जारी है।'
लेखिका ने कहा कि यह काम उनके और एजाज के लिए एक गोरिल्ला परियोजना की तरह शुरू हुआ। इसके तहत उन्होंने देशभर में बलूचिस्तान, सिंध और पेशावर की यात्राएं कीं। पत्रकारिता में यूनेस्को इस्लामाबाद जेंडर पुरस्कार ले चुकी लेखिका ने कहा, 'आपको पाकिस्तान के बारे में बाहरी समझ और यहां रहने वाले लोगों की असलियत के बीच का फर्क जानने का मौका मिलेगा। आप देखेंगे कि उनमें आपस में कितना सदभाव है। इस किताब का हर स्मारक इस सदभावना का गवाह है।'
पुस्तक का अनावरण प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जवाहर सिरकार ने किया और कहा, 'मैं रीमा अब्बासी को इस बेहतरीन किताब के लिए धन्यवाद देता हूं। यह एकदम नया दृष्टिकोण है। मैं तस्वीरों के लिए एम एजाज का भी आभार प्रकट करता हूं। सिर्फ इस किताब के लिए ही नहीं, भारत में यह एक आम धारणा है कि पाकिस्तान में शायद कुछ है ही नहीं।'
किताब की छायाकार एम एजाज ने तीर्थस्थलों, कर्मकांडों और पूजा स्थल पर एकसाथ आने वाले लोगों में अपनी रूचि को उजागर किया। कराची में इंडस वैली स्कूल ऑफ आर्ट में पढ़ाने वाली एम एजाज ने कहा, 'हम बहुत मायनों में एक दूसरे के पूरक हैं। रीमा को हिंदू धर्म की अच्छी समझ है। वह बताती थी कि किन स्थानों और कर्मकांडों का महत्व है और इनमें से किसकी तस्वीरें ली जानी चाहिए। प्रकाश और स्थान को देखने की जिम्मेदारी मुझ पर होती थी।'
स्त्रोत : बिजनेस स्टैडर्ड