सांगली (महाराष्ट्र) : विश्व की पहली १० लडाईयों में बाजीराव पेशवा ने निजाम से पालखेड में की हुई लडाई का समावेश है !
विदेशों मे बाजीराव पेशवापर पाठ्यक्रम है, साथ ही उनपर पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। उनका अंग्रेजी में चरित्र है। उनकेद्वारा की गई लडाईयोंको इंग्रज अधिकारी ग्रँट डफ ने ’मास्टरपीस’ जैसी उपाधी दी है ! बाजीराव पेशवा की युद्धनीति भी अतुल्य थी !
किंतु, ऐसे पराक्रमी पेशवा का चरित्र हमने, दुर्भाग्यवश ‘मस्तानी’तक ही सीमित रखा !
उसी कारण बाजीराव जैसे अद्वितीय एवं अपराजित योद्धा की महानता महाराष्ट्र में है, ऐसा नहीं लगता, ऐसा खेद महाराष्ट्र पाठ्यक्रम मंडल के इतिहास विशेषज्ञ समिति के सदस्य अधिवक्ता श्री. विक्रम एडके ने व्यक्त किया।
वे यहां ब्राह्मण सभा, सांगली एवं लोकमान्य टिळक स्मारक मंदिर इनके संयुक्त विद्द्यमान में आयोजित किए गए ’मस्तानी से परे, बाजीराव !’ इस विषयपर बोल रहे थे। यह व्याख्यान लोकमान्य टिळक स्मारक में संपन्न हुआ।
इस अवसरपर विधायक श्री. सुधीर गाडगीळ, ब्राह्मण सभा के अध्यक्ष श्री. केदार खाडिलकर, सर्वश्री तात्या बिरजे, माणिकराव जाधव, भूषण वाकणकर इनके सहित अनेक सांगलीवासी उपस्थित थे।
अधिवक्ता श्री. विक्रम एडके ने आगे कहा ….
१. संजय भन्साली ने अपने चलत्चित्र में बाजीराव पेशवे का चित्रण अत्यंत अयोग्य पद्धति से किया है। बाजीराव के जीवन में मस्तानी छोडकर, अन्य अनेक सूत्र सिखने योग्य हैं ! दुर्भाग्यवश हम उनको प्रेमवीर के रूप में ही देखते आये हैं। बाजीराव का युद्धकौशल्य ऐसा था कि, उन्होंने लढे हुए, हर युद्ध पर एक चलत्चित्र निर्माण हो सकता है !
२. छत्रपती शिवाजी महाराज ने छत्रसाल राजा को ६० वर्ष पूर्व दिया हुआ वचन बाजीराव पेशवा ने निभाया एवं उनकी सहायता भी की !
३. जिस काल में जहां दूसरों की सेनाएं प्रतिदिन १५ से २० मील की दूरी काटती थीं, वहां बाजीराव पेशवा की सेना ६५ से ७० मील की दूरी काटती थी !
४. बाजीराव पेशवा ने अपना एक स्वतंत्र ही युद्धकौशल्य सिद्ध किया था। वे किलोंकी जिस प्रकार से घेराबंदी करते थे, वहीं आगे जाकर ‘बाजीरावी घेराबंदी’ के नाम से विख्यात हुई। इस घेराबंदी को छेदना किसी भी शत्रू के लिए असंभव था !
क्षणचित्र
१. अधिवक्ता श्री. विक्रम एडके ने अपने व्याख्यान का आरंभ ‘गायत्री मंत्र’ से किया।
२. कार्यक्रम स्थलपर ‘सनातन निर्मित – बाजीराव पेशवा की प्रतिमा’ रखी गई थी।
३. ४ वर्ष पूर्व इसी सभागृह में अधिवक्ता श्री. विक्रम एडके ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर पहिला भाषण दिया था। उनके ‘व्याख्यान’ अध्ययनपूर्वक होने के कारण अब उन्हें विदेशोंसे भी व्याख्यानोंके लिए आमंत्रित किया जा रहा है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात