श्रावण शुक्ल पक्ष द्वादशी, कलियुग वर्ष ५११६
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तिरूवनंतपुरम : बुधवार को आरएसएस के एक प्रमुख विचारक ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश एआर दवे द्वारा स्कूलों में गीता पढाए जाने का समर्थन करते हुए कहा कि गीता सिर्फ धार्मिक ग्रंथ नहीं है, यह एक उत्कृष्ट आध्यात्मिक और दार्शनिक कृति है। उन्होंने गीता को "राष्ट्रीय पुस्तक" घोषित करने की अपील की। आरएसएस समर्थक सांस्कृतिक मंच भारतीय विचार केंद्रम के निदेशक पी परमेश्वरम ने बुध को तिरूवनंतपुरम में कहा कि गीता ने कई शताब्दियों से भारत पर गहरा प्रभाव डाला है।
जिन्होंने एक बार भी भगवद् गीता पढी होगी, वे समझेंगे कि यह एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है। किसी भी अन्य किताब का इतना व्यापक प्रसार नहीं है। गीता की तरह कोई भी अन्य किताब इतनी बडी संख्या में व्याख्याओं के साथ प्रकाशित नहीं हुई है। परमेश्वरम ने कहा कि इसका प्रभाव समय और स्थान से परे है। यह किसी भी प्रखर मस्तिष्क के लिए ज्ञान का खजाना है और इसका प्रभाव शाश्वत है। महात्मा गांधी जैसी शख्सियत ने गीता को अपनी मां बताया था।
उन्होंने कहा था कि उन्हें जब भी उलझन या दुख महसूस होता है, वे गीता की शरण लेते हैं। गांधी ने हमारी स्वतंत्रता के संघर्ष को निर्णयात्मक ढंग से प्रभावित किया था। परमेश्वरम ने गीता को "भारत की राष्ट्रीय पुस्तक" घोषित करने की अपील करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान की मूल प्रति, जिस पर संविधान सभा के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर हैं, उसमें "गीतोपदेश" की तस्वीर थी।
उन्होंने पूछा कि जिस किताब को संविधान से सहमति मिली हो, उसे पढाया जाना असंवैधानिक कैसे हो सकता है।
बता दें, न्यायाधीश एआर दवे ने शनिवार को कहा था कि भारतीयों को अपनी प्राचीन परंपराओं की ओर लौटना चाहिए और महाभारत एवं भगवद गीता जैसे ग्रन्थों की जानकारी अपने बच्चों को छोटी उम्र से ही देनी चाहिए। इसके बाद प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू ने न्यायाधीश दवे के विचारों पर आपत्ति जताई थी।
स्त्रोत : खासखबर