भाद्रपद शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, कलियुग वर्ष ५११६
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नई दिल्ली – विश्व हिन्दू परिषद की दिल्ली ईकाई ने कहा कि गीता के ज्ञान को पाठ्यक्रम में शामिल करना आज की आवश्यकता है। विहिप ने मांग की है कि विश्व के महानतम ग्रंथ को अविलम्ब पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए जिससे अनैतिकता, भृष्टाचार, महिला उत्पीड़न इत्यादि अनेक गंभीर सामाजिक बीमारियों से निपटने के लिए आगे आने वाली पीढ़ी को सही दिशा मिल सके। विश्व हिन्दू परिषद दिल्ली के महामंत्री राम कृष्ण श्रीवास्तव ने गुरुवार को एक बैठक के बाद कहा कि गीता व महाभारत की शिक्षाएं यदि बाल मन में ही घर कर गईं होतीं तो आज जिन समस्याओं से देश को जूझना पड़ रहा है, शायद हमारे पास तक न फटकतीं।
गीता के ज्ञान को किसी धर्म या संप्रदाय से जोड़ कर देखने वालों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि आज से लगभग पांच हजार से अधिक वर्ष पूर्व, इन महान ग्रंथों की रचना जिस समय की गई, उस समय न मुस्लिम थे न ईसाई और न कोई अन्य वर्तमान मत-पंथ संप्रदाय। इन ग्रंथों में कहीं भी जब हिन्दू मुस्लिम या ईसाई शब्द आया ही नहीं तो इसे किसी सांप्रदायिक चश्मे से देखना ही वास्तव में सांप्रदायिकता है।
बैठक की विस्तृत जानकारी देते हुए विहिप दिल्ली के मीडिया प्रमुख विनोद बंसल ने बताया कि गीता और महाभारत मानवता और मानवीय जीवन मूल्यों को दर्शाने वाले मूल ग्रंथ हैं। विहिप के झण्डेवालान स्थित कार्यालय में गुरुवार को हुई इस बैठक में पारित एक प्रस्ताव के अनुसार विश्व हिन्दू परिषद भारत तथा देश की समस्त राज्य सरकारों से अनुरोध करती है गीता व महाभारत जैसे अनुपम ग्रंथों के उचित अध्ययन, पठन-पाठन व शोध की व्यवस्था अपने-अपने स्तरों पर करें जिससे प्रत्येक भारतीय हर प्रकार से समृद्ध होकर देश के साथ-साथ विश्व के चहुंमुखी विकास में अपना योगदान सुनिश्चित कर सके।
स्त्रोत : पर्दाफाश टुडे