भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितिया, कलियुग वर्ष ५११६
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नई दिल्ली – राजग सरकार ने कहा है कि वह कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी को लेकर अपने वायदे पर अडिग है और यह सुनिश्चित करेगी कि अपने ही देश में किसी भी जाति, धर्म और संप्रदाय का व्यक्ति शरणार्थी की तरह न रहे।
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कौसर नाग यात्रा के संबंध में लोकसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव का जवाब देते हुए कहा कि सरकार कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर प्रतिबद्ध है और सरकार ने बजट में ५०० करोड़ रूपए का प्रस्ताव करके अपनी मंशा जता दी है।
उन्होंने कहा कि संसद को भी सर्वसम्मत से प्रस्ताव पारित करके इस मामलें में अपनी प्रतिबद्धता जतानी चाहिए। सिंह ने कहा कि उनकी सरकार जो वादा करती है, वह सोच समझकर और मजबूत इरादे के साथ करती है। उनका यह प्रयास होगा कि देश का कोई भी नागरिक अपनी ही मां की गोद में शरणार्थी बनकर न रहे, भले ही वह हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हो अथवा पारसी। सरकार ऎसे हर नागरिक का पुनर्वास करेगी।
गृहमंत्री ने कौसर नाग यात्रा बंद करने से कश्मीरी पंडितों की पुनर्वास योजना पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव के बारे में सदस्यों की चिंता का निवारण करते हुए कहा कि सरकार उन कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के लिए सार्थक उपाय करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो १९९० के आरम्भ में घाटी से विस्थापित होने के फलस्वरू प जम्मू तथा देश के अन्य भागों में बस गए हैं।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कौसर नाग यात्रा का कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास और उनकी घाटी में वापसी के बीच कोई संबंध नहीं है। उन्होंने बताया कि राज्य में आतंकवाद पनपने से पहले परंपरागतरूप से बड़ी संख्या में श्रद्धालु सावन में नागपंचमी के दिन पूजा करने के लिए असंगठितरूप से यहां आते रहे थे। बीच में यह यात्रा रूक गई थी, लेकिन राज्य के सुरक्षा परिदृश्य में सुधार के कारण एक बार फिर यह पूजा फिर से आरम्भ हुई है।
इससे पहले ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए सदस्यों ने कश्मीरी पंडितों के घाटी में पुनर्वास के साथ-साथ उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की।
हत्यारों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं
तेलंगाना राष्ट्र समिति की के कविता ने कहा कि इस सदन में फलस्तीन और गाजा सहित कई राष्ट्रीय और अंतररारष्ट्रीय मुद्दों पर तो चर्चा की गई लेकिन हम अपने ही देश में शरणार्थी हुए कश्मीरी पंडितों को भूल गए। कविता ने कहा कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद की शुरूआत के बाद करीब साढे तीन लाख कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी बनना पड़ा।
उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडितों की हत्या करने वाले लोगों के खिलाफ इतने वर्षो के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। उन्हाेंने जानना चाहा कि कश्मीरी पंडितों के घाटी में पुनर्वास के लिए सरकार के पास क्या कार्ययोजना है।
स्त्रोत : राजस्थाप पत्रिका