इस संदर्भ में अंग्रेजी मासिक ‘सनातन प्रभात’ में एक लेख प्रसिद्ध किया गया था। उसे पढकर केरल के एक वाचक, अधिवक्ता श्री. के.जी. मुरलीधरन ने शबरीमाला देवस्थान की इस परंपरा संबंधी जानकारी दैनिक सनातन प्रभात के संपादकीय विभाग को दी है, उसे हम आप के लिये प्रस्तुत कर रहें हैं . .
श्रद्धालुओंका ‘ब्रह्मचर्य भाव’ के टिके रहने के लिए ही शबरीमला मंदिर में १० से ५० वर्ष आयु वर्ग की महिलाओंके प्रवेशपर प्रतिबंध !
मा. संपादक, सनातन प्रभात
आपके दैनिक के १.१२.२०१५ के अंक में (तथा अंग्रेजी पाक्षिक सनातन प्रभात के १ से १५ जनवरी के अंक में) ‘शबरीमाला देवस्थान में महिलाओंके प्रवेशपर प्रतिबंध योग्य अथवा अयोग्य’ इस शीर्षक के नीचे प्रकाशित लेख के संदर्भ में यह जानकारी देनेवाला पत्र भेज रहे हैं। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट की गई है तथा उसकी सुनवाई शीघ्र ही होनेवाली है ! प्राचीन काल से ही शबरीमाला मंदिर में १० से ५० वर्षतक के आयु के महिलाओंका प्रवेश प्रतिबंधित है !
उसके पीछे होनेवाले मूल कारण निम्नानुसार हैं . . .
केरळ राज्य में ५ मंदिर शास्ता मंदिर के रूप में जाने जाते हैं। उसमें से हर मंदिर में होनेवाली देवता को विशिष्ट भाव से पूजा जाता है।
१. कुलत्थपुळा मंदिर में ‘बालक भाव’ से पूजा की जाती है।
२. आर्यनकाव मंदिर में ‘युवक भाव’ से पूजा की जाती है।
३. अचन्कोइल मंदिर में ‘शास्त की पत्नियां पूर्णा एवं पुष्कला’ इनके सहित पूजा की जाती है।
४. इरूमेली मंदिर में ‘क्षात्र भाव’ से पूजा की जाती है।
५. शबरीमाला मंदिर में ‘अय्यप्पा’ के रूप में पूजा की जाती है।
‘शास्ता’ शब्द ‘संस्कृत धातू शास्र अर्थात नियम’ पर आधारित है। ‘धर्मशास्ता’ का अर्थ धर्म से शासन चलानेवाला तथा ‘अय्यप्पा’ का अर्थ पंचमहाभूतोंका स्वामी। केरळ राज्य के मंदिर तथा उनमें होनेवाली पूजाएं ‘तंत्र शास्र’ के अनुसार की जाती हैं। शबरीमाला मंदिर में भी इसी शास्र के अनुसार कार्य चलता है। इस शास्र के २ भाग होते हैं।
१. शिल्पभाग – यह मंदिर के ‘वास्तूनिर्माण’ से संबंधित है।
२. क्रियाभाग – यह ‘पूजा’ से संबंधित है।
जब किसी मंदिर में देवता की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा तंत्रशास्र के अनुसार जिस भाव से की जाती है, उसी भाव से मूर्ति की पूजा आगे जाकर की जानी चाहिए, ऐसा शास्र कहता है।
शबरीमाला मंदिर के मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा ‘ब्रह्मचर्य भाव’ में की जाने के कारण श्रद्धालुओंको पूजा के पूर्व ४१ दिनोंतक ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक होता है। (इन ४१ दिनोंका एक मंडल होता है; अर्थात ‘सौर पंचांग’ एवं ‘चांद्र पंचांग’ इनमें होनेवाला अंतर ३६५ – ३२४ = ४१ दिन होते हैं।)
सभी पूजक श्रद्धालुओंका ‘ब्रह्मचर्य भाव’ टिके रहने के लिए ही शबरीमाला मंदिर में १० से ५० वर्ष आयुवर्ग की महिलाओं तक ही प्रवेश प्रतिबंधित है ! अन्य महिलाओंके लिए प्रतिबंधित नहीं है !
आज ये उत्पन्न किया गया विवाद उचित नहीं है। इसे कोई ‘हितसंबंधी’ (पुरोगामी ?) व्यक्तियोंने उत्पन्न किया है, यह शीघ्र ही स्पष्ट होगा ! ‘हिन्दु धर्म’ ने काल के अनुसार परिवर्तन करने के लिए कभी भी विरोध नहीं किया है। ‘हिन्दु धर्म’ में जितनी व्यक्ति स्वतंत्रता दी गई है, उतनी अन्य किसी भी ‘धर्म’ में दिखाई नहीं देगी !
जब कोई श्रद्धालु मंदिर में जाता है, तब उसका मन वहां की उपास्य देवता की ‘पूजा पद्धति’ से जुडना महत्त्वपूर्ण होता है। इसी कारण शबरीमाला मंदिर में केवल १० से ५० वर्ष आयुरवर्ग की महिलाओंतक ही प्रवेश प्रतिबंधित किया गया हैं !
हिन्दु धर्म में ‘शुद्धी’ को अत्यंत महत्त्व दिया गया है ! यह शुद्धी ‘मात्र बाह्य’ न होते हुए ‘आंतरिक’ ही होनी चाहिए, यह हिन्दु धर्म की विशेषता है !
मासिक धर्म चालू रहते, महिलाओंको मानसिक, साथ ही शारीरिक कष्टोंका सामना करना पडता है। ऐसी स्थिति में ‘शुद्धी’ का टिकना संभव नहीं होता। इसीलिए इस काल में केरल राज्य के कोई भी मंदिर में महिला प्रवेश नहीं करती, साथ ही अपने घर में भी पूजा-अर्चना नहीं करतीं।
– अधिवक्ता के.जी. मुरलीधरन, उन्निथन पतनमतिट्टा, केरळ
[email protected]
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात