Menu Close

दक्षिण भारत के महामहम कुंभमेला महोत्सव का हुआ शुभारंभ !

  • कुंभकोणम के प्रमुख मंदिरों में संपन्न ध्वजारोहण विधि से महोत्सव का हुआ आरंभ

  • कांची कामकोटी पिठ के शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी जयेंद्र सरस्वतीजी की वंदनीय उपस्थिती

  • मेले में ३६ लाख हिन्दूओंके आने की संभावना

तांजावुर (तमिलनाडू) : १३ फरवरी के दिन ‘दक्षिण भारत का कुंभमेला’ समझे जानेवाले महामहम महोत्सव का शुभारंभ हुआ।

तांजावुर जनपद के कुंभकोण में आदिकंबेश्‍वरर, नागेश्‍वरर, काशी विश्‍वनाथर, आबिमुगेश्‍वरर, कलाहस्तिश्‍वरर एवं सोमेश्‍वर इन मंदिरों में ध्वजारोहण विधि कर महोत्सव का आरंभ हुआ।

इस अवसरपर कांची कामकोटी पिठ के शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी जयेंद्र सरस्वतीजी की वंदनीय उपस्थिती रही।

१. विविध मठोंके मठाधिपति एवं साधु-संतोंने कुंभकोणम के सरोवर में स्नान किया।

२. साधु-संतोंसमेत सहस्रों हिन्दूओंने भी पवित्र सरोवर में स्नान किया।

३. ध्वजारोहण विधि के कार्यक्रम में स्थानीय जिलाधिकारी एवं अन्य महत्त्वपूर्ण पदोंपर विराजमान प्रशासकीय अधिकारी भी उपस्थित थे।

४. २२ फरवरीतक चलनेवाले इस मेले में प्रातः ६ से रात के १० बजेतक स्नान करना संभव है।

५. इस मेले में ३६ लाख हिन्दू श्रद्धालु आने की संभावना होने से प्रशासनद्वारा आवश्यक सुविधाओंका प्रबंध किया गया है।

कावेरी नदी के तट पर बसे हुए कुंभेश्‍वर मंदिर में महामहम हेतू उपस्थित श्रद्धालु

महामहम का इतिहास

लोग अपने पापोंसे मुक्त होने के लिए गंगा, यमुना, सरस्वती, शरयु, गोदावरी, महानदी, नर्मदा, कावेरी एवं पायोश्‍नी इन नदियों में स्नान करते थे।

उन पापोंसे मुक्त होने के लिए सब नदियां ब्रह्मदेवजी के पास चली गईं। ब्रह्मदेवजीने इन नदीयोंके पाप धोने के लिए उन्हें एकत्रित रूप से कुंभकोणम के सरोवर में स्नान करने के लिए कहा। तब से इस महोत्सव का आरंभ हुआ है।

क्या है महामहम महोत्सव ?

महामहम महोत्सव हर १२ वर्षों में एक बार आता है। पिछला महामहम महोत्सव मार्च २००४ में मनाया गया था।

इस महोत्सव के समय देश की सभी महत्त्वपूर्ण नदियां कुंभकोणम के सरोवर में एकत्रित होती है, ऐसी हिन्दूओंकी आस्था है !

इसलिए इस काल में इस सरोवर में किए हुए स्नान का फल, जो सभी नदियों में किए हुए स्नान के एकत्रित फल है, उतना मिलता है। महामहम महोत्सव का अंतिम दिन सब से ‘विशेष’ समझा जाता है; क्योंकि इस दिन कुंभकोणम के सभी मंदिरों में स्थित देवताओंकी मूर्तियोंको सरोवर में स्नान कराया जाता है। इस दिन लाखो हिन्दू सरोवर में स्नान करते हैं। इसे ‘तीर्थावरी’ कहते हैं।

इस दिन किए हुए स्नान से पापोंका हरण होता है, ऐसी हिन्दूओंकी आस्था है। स्नान के पश्‍चात देवताओंको अर्पण के रूप में धन अथवा भेंट वस्तूएं दी जाती हैं।

स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *