जेएनयू में ‘अफजल की घोषणा’ का प्रकरण
ठाणे के अखिल भारतीय नाट्यसम्मेलन में ‘हिन्दुत्व’ का पुरस्कार करनेवाला ‘वार्तालाप’ !
ठाणे (महाराष्ट्र) : इस देश पर आप को प्रेम करना ही चाहिए, यह एक ‘अलिखित’ नियम है !
जवाहरलाल नेहरू विद्यापीठ में जो हुआ, उस प्रकार अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के नाम पर यहां उधम मचाना ठीक नहीं ! यदि मैं वहां होता, तो अफजल की घोषणा करनेवालोंकी अच्छी तरह से धुलार्इ की होती ! केवल ‘हाथ सफाई’ ही नहीं, अपितु उसके भी आगे जाकर कृत्य किया होता !
प्रसिद्ध हिन्दुत्वनिष्ठ अभिनेता श्री. शरद पोंक्षे ने ऐसी स्पष्ट भूमिका व्यक्त की है। वे यहां आयोजित नाट्यसम्मेलन में हुए एक वार्तालाप में बोल रहे थे।
इस अवसर पर उपस्थित नाट्य रसिकोंने उन्हें ‘नथुराम’ के विषय में और १५ मिनट बोलने को कहा तब उन्होंने रसिकोंद्वारा उत्स्फूर्तता से पूछे गए प्रश्नोंके, विस्तार से उत्तर दिए।
इस समय, श्री पोंक्षे ने कहा …..
१. नथुराम गोडसे एक ‘राष्ट्रवादी’ विचारोंका युवक था, यह दबाया गया इतिहास पुनर्जिवित करने की आवश्यकता है। मैं गांधी हत्या का समर्थन नहीं करता; किंतु वर्तमान में ‘जाज्वल्य देशभक्ति’ की सीख देने की आवश्यकता है। नथुराम को, ‘गांधीजी’ पर नहीं, ‘जवाहरलाल नेहरू’ पर गोलियां बरसानी थी !
२. छत्रपति शिवाजी महाराज ने हाथ में शस्त्र लेकर ही स्वराज्य प्राप्त किया था। क्या, आपने कभी सुना है कि वे अनशन पर बैठे है ? घर घर में छत्रपति शिवाजी महाराज की तस्वीर होनी चाहिए तभी तो बालक एवं अभिभावकोंको उनके संदर्भ में कुछ तो जानने की आंस, जिज्ञासा निर्माण होगी !
४. फांसी के कुछ दिन पूर्व अंबाला के जेल में जेलर के साथ शतरंज खेलते समय, जेलर ने नथुराम से पूछा कि, आप ने गांधीजी के स्थान पर नेहरू पर गोलियां क्यों नहीं बरसाई ? इस पर गोडसे ने उत्तर दिया था कि, मेरा यह अधूरा काम आप पूरा करें !
५. मैं एक बार शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरेजी की सभा के लिए शिवाजी पार्क में गया था। इस सभा के पश्चात जब जब मैं ‘भगवा’ देखता हूं, तब तब मैं अंदर से कुछ अलग ही ‘उर्जा’ का अनुभव करता हूं !
६. मुझे अथवा मेरी पत्नी को यह देश छोड कर जाना चाहिए, ऐसा कभी नहीं लगता। इस सारे भू-तल पर भारत ऐसा एकमात्र देश है जहां, सभी जाति-धर्म के लोगोंको ‘सुरक्षित’ लगता है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात