श्रावण शुद्ध ११, कलियुग वर्ष ५११४
मुंबईमें हिंदी एवं अंग्रेजी भाषामें प्रकाशित होनेवाले मासिक ‘हिंदु वॉईस’ में प्रकाशित अग्रलेखका अनुवाद अपने पाठकोंके लिए प्रकाशित कर रहे हैं ।
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कहा जाता है कि ‘कुछ विलक्षण घटनाएं इतिहासके प्रवाहकी दिशा बदल देती हैं ।’, ऐसी ही एक चमत्कारिक घटना ‘हिंदु राष्ट्र’ स्थापित करने हेतु ‘अखिल भारतीय हिंदु अधिवेशन’ के रूपमें रामनाथी, गोवामें घटी । यह अधिवेशन इतिहासको पलट देनेके प्रयासोंमें एक छोटासा; परंतु दृढ कदम सिद्ध होगा । ‘हिंदु जनजागृति समिति’ एवं ‘सनातन संस्था’ द्वारा आयोजित १० से १४ जून २०१२ की कालावधिमें संपन्न हुए इस अधिवेशनमें सहभागी होनेका मुझे सौभाग्य मिला । इस अधिवेशनमें कश्मीरसे लेकर कन्याकुमारीतक हिंदुहितके लिए कार्यरत संस्थाओंके सदस्य सहभागी हुए थे । अधिवेशनमें सभी प्रतिष्ठित व्यक्तियोंद्वारा पूरे भारतमें एवं उनके क्षेत्रमें स्थित हिंदुओंकी स्थिति परिवर्तित करने हेतु किए गए प्रयासोंका ब्यौरा प्रस्तुत किया गया । इन प्रतिष्ठितोंने अपने अपने क्षेत्रमें स्थित हिंदुओंकी स्थिति स्पष्ट की । सभी प्रतिष्ठित इस निष्कर्षपर पहुंचे कि अपने क्षेत्रमें स्थित हिंदुओंकी स्थिति सुधारने हेतु हिंदु राष्ट्र स्थापित करना अनिवार्य है ।’, इसीलिए अधिवेशनमें भारतको हिंदु राष्ट्र घोषित करनेका प्रस्ताव पारित किया गया । सभी प्रतिनिधियोंद्वारा ‘जयतु जयतु हिंदुराष्ट्रम् ।’ ऐसी सिंहगर्जना की गई । भारतमें सर्वत्र निराशा एवं उदासीनता फैली हुई है । ऐसी स्थितिमें ‘हिंदु राष्ट्र’ स्थापित करनेका संकल्प कर ‘हिंदु राष्ट्र’ के लिए चिंतित सभी व्यक्तियोंको एक स्थानपर एकत्र लानेवाला संगठन स्वतंत्र भारतके इतिहासमें प्रथम ही निर्माण हुआ है । अधिवेशनमें सहभागी प्रतिनिधियोंका उत्साह देखकर ऐसा लग रहा था, मानों वे इसी क्षणकी प्रतीक्षामें थे । इस अधिवेशनसे सभी हिंदु प्रतिनिधियोंमें एक आश्चर्यकारक स्फूर्ति एवं प्रेरणा जागृत हुई । इसलिए ऐसा विश्वास लगता है कि ‘हिंदु राष्ट्र’ की स्थापनामें विलंब नहीं है । इसके लिए सभीको उस दृष्टिसे प्रयत्न आरंभ करना है । अधिवेशनमें सहभागी प्रत्येक हिंदूको ऐसा लग रहा था मानों ‘हिंदू राष्ट्र’ की स्थापनामें हम अकेले नहीं, अपितु पूरा देश अपने साथ है । इसलिए ‘हिंदू जनजागृति समिति एवं ‘सनातन संस्था’ के आभार मानना चाहिए । किसी भी संगठनके विनाशके लिए सुविधाओंका उपभोग लेनेवाले कार्यकर्ता एवं श्रेष्ठत्वका अभिमान रखनेवाले नेता उत्तरदायी होते हैं । ऐसे कार्यकर्ता ‘हिंदु जनजागृति समिति’ एवं ‘सनातन संस्था’ में नहीं है । सभीको ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इन संस्थाओंके कार्यकर्ता एवं नेताओंका आध्यात्मिक बल, नम्रता, समर्पण, तथा राष्ट्रनिष्ठ हिंदुओंके सहयोगसे ‘हिंदू राष्ट्र’ की संकल्पना शीघ्र साकार होगी ।
-पी. दैवमुत्तु, संपादक, ‘हिंदू वॉईस’, मुंबई
स्त्रोत – दैनिक सनातन प्रभात