भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया, कलियुग वर्ष ५११६
समितिद्वारा धार्मिक उत्सवमें होनेवाले अनाचारोंका विरोध
मुंबई – हिन्दू जनजागृति समितिके राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदेने एक प्रसिद्धिपत्रकद्वारा यह आवाहन किया है कि स्वतंत्रतापूर्वकी कालावधिमें लोकमान्य तिळकने हिन्दुओंका संगठन एवं संस्कृतिकी रक्षाके उद्देश्यसे गणेशोत्सव आरंभ किया; किंतु वर्तमानमें उत्सवमें प्रविष्ट हुए अनेक अनुचित प्रकारणोंके कारण यह उत्सव अपना मूल उद्देश्य खो चुका है । उत्सव हेतु निधिसंकलनमें बलका उपयोग, मंहगी सजावट, अभिरुचिहीन गीत, हिडीस नृत्य, महिलाओंके साथ असभ्यताका व्यवहार, मद्यसेवन, गुटका-सिगरेटके विज्ञापनोंके फलक, इनके समान अनाचार, हिन्दुओंके सामूहिक उत्सव एवं जत्रोत्सवमें निरंतर ही ये प्रकरण होते रहते हैं । उत्सवोंमें ऐसे अनाचार होना धर्म एवं संस्कृतिका ह्रास ही है । इसमें भी हमारा गणपति मन्नतें पूरी करता है, सद्यस्थितिमें कुछ गणेशोत्सव मंडलोंद्वारा इस प्रकारके विज्ञापनका प्रयास अर्थात श्रद्धालुओंके साथ पूरी तरहसे प्रतारणा करना ही है ।
१. अध्यात्मशास्त्रीय सिद्धांत है कि श्रद्धालुओंको उनकी श्रद्धाके अनुसार फल प्राप्त होता है ।
२. श्रद्धापूर्वक धर्माचरण एवं साधना करनेसे धर्मसंबंधी विभिन्न अनुभव आते हैं ।
३. धर्म एवं श्रद्धा ये बातें व्यक्तिगत होनेके कारण उनके द्वारा आनेवाले अनुभव, अनुभूति अथवा प्रचीति भी व्यक्तिगत स्वरूपमें ही होती है । ऐसा नहीं कि वे सभीको आएं ही ।
४. ऐसा होते हुए भी, हमारा गणपति मन्नतें पूरी करता है, यह कहना अर्थात समाजमें अंधश्रद्धा फैलानेके समान है ।
५. इस प्रकार निधिसंकलनकी लालसाके कारण किया गया विज्ञापन, यह टोनाटोटका (जादूटोना)विरोधी अधिनियम २०१३ नुसार अपराध सिद्ध हो सकता है; क्योंकि अंधश्रद्धाका प्रसार कर उसके द्वारा आर्थिक प्राप्ति करना, यह अधिनियमानुसार अपराध है ।
६. ऐसे लोगोंपर वैध मार्गसे कार्रवाई हो सकती है ।
७. आजतक सभीका यह अनुभव है कि भ्रष्टाचारी एवं स्वार्थी समाजके राजनीतिक नेता, अभिनेता, प्रशासकीय अधिकारी आदि अपनी स्वयंकी इच्छाओंकी पूर्तिके लिए अथवा स्वयंके अनुचित कार्यपर किसी भी प्रकारकी आंच आनेके पश्चात मन्नत मांगते हैं । क्या ऐसे लोगोंपर कभी श्री गणेशकी कृपा हो सकती है ?
८. शुद्ध हेतुकी अपेक्षा मन्नतें मांगनेवालोंको संत तुकाराम महाराजने इस प्रकार कडवे शब्दोंमें सुनाया है, ‘नवसे कन्या-पुत्र होती । तरी का करणे लागे पती ?’
९. क्या कभी किसीने मेरा देश, समाज तथा धर्म संकटमें हैं, उनपर आया संकट दूर करें, उसके लिए मुझे प्रयास करनेकी शक्ति प्रदान करें, इस प्रकारकी मांग की है ?
१०. अतः श्रद्धालुमनके हिन्दुओंको सद्यस्थितिमें व्यक्तिगत इच्छापूर्ति हेतु नहीं, अपितु समाजकल्याण, राष्ट्रोत्कर्ष एवं धर्महितके लिए मन्नतें मांगनी चाहिए । यदि ऐसा किया, तो ही वास्तवमें हमपर श्री गणेशकी कृपा हो सकती है !
‘स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात