भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितिया, कलियुग वर्ष ५११६
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नई दिल्ली – दागियों को मंत्री बनाने के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को आपराधिक छवि वाले लोगों को केबिनेट में शामिल नहीं करना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मल लोढ़ा की पांच सदस्यीय पीठ ने यह व्यवस्था देते हुए कहाकि जिन नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामले तय कर दिए गए हो, उन्हें मंत्री नहीं बनाना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने दागी मंत्रियों को पद से हटाने के लिए प्रधानमंत्री को निर्देश देने से मना कर दिया।
पांच सदस्यीय पीठ ने मंत्री बनाने का फैसला प्रधानमंत्री पर छोड़ते हुए कहाकि उनसे साफ छवि वाले लोगों को चुनने की उम्मीद की जाती है इसलिए उन्हें जिम्मेदारी से काम करना चाहिए जिससे लोकतंत्र के सिद्धांत बरकरार रहे। राजनीति के आपराधिकरण से नागरिकों की उम्मीदों और आशाओं को ठेस लगती है। प्रधानमंत्री के पास मंत्री बनाने का विशेषाधिकार होता है। हालांकि अपेक्स कोर्ट ने साफ किया कि ऎसे सांसदों को अयोग्य ठहराने के लिए आदेश जारी नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने कहाकि आपराधिक मामलों वाले केबिनेट मंत्रियों को हटाने के लिए वह प्रधानमंत्री को निर्देश नहीं दे सकते। अपराध सिद्ध होने पर चुनाव लड़ने पर पाबंदी वाले निर्णय की याद दिलाते हुए कहाकि ऎसे लोगों को मंत्री बनने से रोकने के लिए पहले से ही योग्यता निर्घारित की जा चुकी है। एडवोकेट मनोज नरूला ने इस संबंध में याचिका दायर की थी। नरूला ने 2004 में यूपीए-1 की केबिनेट में लालू यादव, मोहम्मद तस्लीमुद्दीन और अन्य लोगों को शामिल करने पर हुए विवाद के बाद 2005 में याचिका दायर की थी।
इस पर केन्द्र सरकार ने तर्क दिया था कि मंत्रियों को हटाना संसद के संवैधानिक विशेषाधिकार के खिलाफ है। संसद के सदस्य लोकतांत्रिक रूप से चुने जाते हैं इसलिए जनता के चुनाव के विरूद्ध भी है। वहीं वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने इसका विरोध करते हुए कहाकि जिन लोगों पर अपराध तय किए जा चुके हो उन्हें मंत्री नहीं बनाना चाहिए। गौरतलब है कि वर्तमान केन्द्र सरकार में लगभग एक दर्जन मंत्रियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
स्त्रोत : पत्रिका