भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया, कलियुग वर्ष ५११६
एक भी हिन्दू युवती धर्मांधोंके चंगुलमें नहीं फंसेगी, ऐसा समाधान निकालना (उपाययोजना करनी) चाहिए ! मुसलमान युवतियोंका धर्मपरिवर्र्तन किए जानेका उदाहरण कभी सुनाई नहीं देता !
हिन्दूनिष्ठों यह बात ध्यानमें रखें कि हम जो कुछ कर रहे हैं, वह धर्मरक्षाका कार्य धर्मशास्त्रसम्मत होना चाहिए !
कुछ हिन्दूनिष्ठोंद्वारा ऐसा अविचारी सुझाव दिया जाता है कि लव जिहादके प्रत्युत्तरके रूपमें मुसलमान युवतियोंको भगाएं ! इस समादेशका समर्थन करनेके लिए ‘कृण्वन्तो विश्वम् आर्यम् ।’, ऋग्वेदमें विद्यमान इस ऋचाका पालन पूरे विश्वके आर्य अर्थात हिन्दू करेंगे !, ऐसा अर्थ देकर संदर्भ भी दिया जाता है । प्रत्यक्षमें इस ऋचाका अर्थ व्यापक है, समस्त विश्वको सुसंस्कृत करेंगे । अतः लव जिहादके प्रत्युत्तरके रूपमें अन्य पंथोंकी युवतियोंका अपहरण करना, यह सुसंस्कृति नहीं है । ऐसे स्थानोंपर सभीको निम्न निर्देशित दृष्टिकोण भी ध्यानमें रखना अत्यावश्यक है ।
१. हिन्दू धर्मशास्त्रकी दृष्टिसे : हिन्दू धर्म अन्य पंथोंके अनुसार द्वेषभावनापर नहीं, अपितु शास्त्रपर आधारित (शास्त्रप्रामाण्य) है । हिन्दू धर्मशास्त्रमें कहीं भी यह नहीं बताया है कि अन्य पंथियोंकी युवतियोंको भगाएं ।
२. नैतिकताकी दृष्टिसे : बलात्कारका उत्तर बलात्कारसे देना, यह जिस प्रकार अनुचित बात है, उसीके अनुसार मुसलमान युवक हिन्दू युवतियोंका अपहरण करते हैं; इसलिए हिन्दुओंको मुसलमान युवतियोंका अपहरण करना अनुचित सिद्ध होता है ।
अतः हिन्दूनिष्ठोंकोने भावनिक स्तरपर विचार कर केवल संख्याबल बढानेके लिए ऐसे कृत्य करनेकी अपेक्षा हिन्दू धर्मानुसार आचरण कर मूलतः हिन्दू बननेके प्रयास करने चाहिए अन्यथा धर्मविरोधी बातोंका प्रचार करनेके कारण पाप लग सकता है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात