भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी, कलियुग वर्ष ५११६
श्रद्धालुओंकी आस्थाके जितना ही धर्मशास्त्र भी महत्त्वपूर्ण है ! – रमेश शिंदे, हिन्दू जनजागृति समिति
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मुंबई – २६ अगस्तको रात्रि ९.०० बजे जय महाराष्ट्र समाचारप्रणालपर आयोजित लक्षवेधी कार्यक्रममें ‘आखाडा धर्मसंसदका’ चर्चासत्रमें बोलते हुए हिन्दू जनजागृति समितिके राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदेने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा कि अंनिसवालोंने भी स्वीकार किया है कि संत सांईबाबा उच्च श्रेणीके संत थे । इसलिए उनके संतत्वके विषयमें अलगसे कुछ कहनेकी आवश्यकता नहीं है । प्रत्येक व्यक्तिको व्यक्तिगत आस्था रखने, पूजा करने, तथा संतोंकी प्रतिमा लगानेका अधिकार है; परंतु इसी समय श्रद्धालुओंको धर्मशास्त्रका भी सम्मान करना चाहिए ।
कुछ दिन पूर्व छत्तीसगढके कवर्धामें आयोजित हिन्दू संतोंकी धर्मसंसदमें सांईबाबाके मंदिरोंके विषयमें एक प्रस्ताव पारित किया गया । इससे उठे विवादके विषयमें यह चर्चासत्र आयोजित किया गया था । इस चर्चासत्रमें द्वारकापीठके जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वताजीrकी ओरसे अधिवक्ता श्री. सतीश हुके, सांईभक्त श्री. दिलीपकाका, अंनिसके मच्छिंद्र मुंडे, संत साहित्यके अभ्यासक डॉ. मुरहरी केले एवं सुकृत खांडेकर सम्मिलित हुए थे । जयराम पुरीने सूत्रसंचालन किया ।
श्री. रमेश शिंदेने कहा कि…
१. आदि शंकराचार्यने ही शंकराचार्यजीको हिन्दू धर्मके विषयमें नियम निश्चित करनेका अधिकार दिया है । इसके अनुसार हिन्दुओंको मार्गदर्शन करनेके लिए ही यह धर्मसंसद आयोजित की गई थी । हिन्दुओंके धर्माचरणके विषयमें मार्गदर्शन करनेका अधिकार उनको है ।
२. कथित धर्मसंसदमें सांई संस्थानके लोगोंको अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने हेतु आमंत्रित किया गया था, तो संस्थानके लोग वहां नहीं गए । इसलिए उनसे संवाद करनेका एक अच्छा अवसर उन्होंने खोया । हमें इसका विचार करना चाहिए कि ऐसी बातोंमे हम क्यों पीछे रह जाते हैं ।
३. जो लोग वहां गए थे, वे संस्थानके अधिकृत सदस्य नहीं, अपितु केवल भक्त थे ।
४. आस्था किसपर रखें, यह सांईभक्तोंका अधिकार है; परंतु धर्मशास्त्रमें कहा गया है कि अनेक स्थानोंपर सांईबाबाके मंदिरोंका निर्माणकार्य करना अनुचित है । मंदिर देवी-देवता एवं अवतारोंके लिए होते हैं । देवी-देवताओंकी शक्ति सहस्रों वर्षतक टिकती है तथा संतोंकी समाधिके स्थानपर रहनेवाली शक्ति कुछ सैकडों वर्ष टिकती है । तत्पश्चात लुप्त होती है । अतः एक समाधिके आधारपर अनेक स्थानोंपर मंदिरोंका निर्माणकार्य करना अनुचित है ।
५. स्वयं सांईबाबाने भी यह नहीं कहा था कि ‘मेरा नाम लो, मेरा पूजन करो अथवा मेरे लिए मंदिरका निर्माणकार्य करो ।’ उन्होंने साधनाका मार्ग सिखाया था । इस सीखके अनुसार आचरण करना आवश्यक है ।
६. कुछ दिनपूर्व साई संस्थानने भी ऐसी सूचना (नोटिस) जारी की थी कि जिन सांई मन्दिरोंमें स्थित पादुकाएं हमसे ली गई हों, उन्हें ही वैध माना जाए ।तो यदि शंकराचार्यने अनेक स्थानोंपर स्थित सांईमंदिरोंके संदर्भमें मार्गदर्शन किया, तो उसमें अयोग्य क्या है ?
७. वर्तमानमें जगद्गुरु शंकराचार्यजीके पीठोंको देखते हुए उनकी प्रसिद्धिके लिए इस प्रकारके किसी निमित्तकी आवश्यकता नहीं है । अतः यह कहना अनुचित होगा कि स्वामी स्वरूपानंद प्रसिद्धिके लिए ऐसा कर रहे हैं ।
८. धर्मसंसदमें यदि कोई हिंसाकी भाषा करता है, तो अनुचित है । जिसप्रकार किसी रेखाको छोटी करने हेतु अन्य बडी रेखा खींचनी पडती है, उसीप्रकार वास्तव धर्मके विषयमें लोगोंको समझाकर बताना चाहिए ।
९. जिसप्रकार प्रेमकी गिनती करना असंभव है, उसीप्रकार आस्थाकी गिनती करना असंभव है । सांईबाबापर भक्तोंकी आस्था एवं भक्तोंको उनके विषयमें आनेवाले अनुभव देखकर अंनिसवालोंको भी यह स्वीकार करना चाहिए कि विज्ञानके आगे भी कुछ तो होता ही है ।
महत्त्वपूर्ण !
१. सांईभक्त दिलीपकाकाने स्पष्ट किया कि साई संस्थानमें स्वच्छ कामकाज चला रहा है । (ऐसे भक्त जहां होंगे, वहां अधर्मी लोगोंकी नहीं, चलेगी, तो आश्चर्य ही है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) उन्होंने धर्मके विषयमें बतानेवाले शंकराचार्य कौन होते हैं, ऐसा अज्ञानजनक प्रश्न भी पूछा । (शास्त्र ज्ञात न होते हुए इस प्रकारके वक्तव्य कर पाप अपने माथे लेनेवालोंको क्या ईश्वर कभी क्षमा करेंगे ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
२. सुकृत खांडेकरने धर्मसंसदमें अनुचित घटनाओंको उपद्रव कहकर उपहास किया । (धर्मसंसदका ठीक स्वरूप न जानते हुए इस प्रकारसे निम्नस्तरपर जाकर आलोचना कर खांडेकरने अपनी मनोविकृतिका ही दर्शन कराया है ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
३. अधिवक्ता श्री. हुकेने धर्मशास्त्रके अनुसार शंकराचार्यजीके पदका महत्त्व बताया एवं कहा कि संत साईबाबाके नामसे अत्यधिक चमत्कार बताकर समाजमें अंधश्रद्धा फैलाई जा रही है एवं श्रद्धालुओंको पंâसाया जा रहा है ।
४. अंनिसके मुंडेने चर्चाकी अपेक्षा उनकेद्वारा लिखी जानेवाली ‘मैं साईबाबा बोलता हूं’ पुस्तकका ही अधिक विज्ञापन किया । इस पुस्तकमें ऐसा उल्लेख किया गया है कि साईबाबा स्वयं लोगोंको कहते हैं कि चमत्कारोंपर विश्वास न करें । ( यह है अंनिसवालोंकी पुस्तक लिखनेकी पद्धति ! क्या मुंडेको ऐसा दृष्टांत हो गया कि साईबाबाने चमत्कारोंपर विश्वास न करनेका विधान किया ? स्वयंके अंतःकरणमें आनेवाले विचार साईबाबाके मत्थे मारकर स्वार्थी प्रचार करनेवाले अंनिसवाले समाजको निश्चित रूपसे पंâसा रहे हैं । आज साईबाबाके चमत्कार अस्वीकार करने हेतु ऐसी पुस्तक लिखनेवाले कल ‘मैं विट्ठल बोलता हूं,’ पुस्तकमें जनाबाईके साथ विट्ठल आटा पीसनेके लिए गए ही नहीं थे ऐसा लोगोंसे कहेंगे ! नागरिको, ऐसी पुस्तकोंका बहिष्कार करें ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात )
साई संस्थानके घोटालेके विषयमें हिन्दू जनजागृति समितिके रमेश शिंदेद्वारा प्रहार !
१. शासनद्वारा नियंत्रित शिर्डी संस्थानके पदाधिकारियोंका भ्रष्टाचार गैरव्यवहार दैनिक लोकसत्ताने प्रसिद्ध किया है ।
२. संस्थानके पदाधिकारियोंने चेन्नई यात्राका व्यय वसूल करनेहेतु दुपहियेके इंधनके देयक प्रस्तुत किए थे ।
३. मुंबई-नासिक-शिर्डी मार्गपर श्रीरामपुर नहीं है । तब भी वहां भक्त निवासके लिए ११२ करोड रुपयोंकी राशि प्रयुक्त की गई ।
४. शिर्डीके हवाईअड्डेके लिए महाराष्ट्र शासन ६० करोड रुपए देगा, इससे किसका हित होनेवाला है ?
५. साईभक्तोंको शिर्डी संस्थानके अपकृत्योंके विरुद्ध कृत्य करना चाहिए ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात