भाद्रपद शुक्ल पक्ष सप्तमी, कलियुग वर्ष ५११६
आश्चर्यकी बात यह है कि…
विश्वका एक भी देश इस प्राचीन संस्कृतिको जीवित रखनेके लिए आगे नहीं बढ रहा हैं !
बगदाद (इराक) : इराक देशके उत्तर क्षेत्रमें तथा कुर्दीस्तोंकी सीमापर स्थित लगभग ७ लक्ष लोकसंख्यावाला येजीदी समाज वर्तमानमें प्रसारप्रणालोंके समाचारोंका केंद्रबिंदु बना है । इस्लामिक स्टेटके धर्मांध आतंकवादी इस समाजका वंशसंहार करनेकी स्थितिमें हैं । सहस्रों येजीदी आतंकवादियोंकी क्रूरताके शिकार हुए हैं । धर्मांध आतंकवादियोंने अपनी सेनाकी शारीरिक भूख बुझानेके लिए लगभग ७०० येजीदी महिलाओंकी, प्रत्येककी, केवल ९ सहस्र रुपएमें नीलामी की । विश्वका एक भी देश इस प्राचीन संस्कृतिको जीवित रखनेके लिए आगे नहीं बढा । आजतक येजीदी समाजके प्रति बाहरके जगतको अधिक पता नहीं था । किंतु अब विनाशकी सीमापर खडे येजीदी समाजका प्राचीन इतिहास सामने आया है । इसमें आश्चर्यकी बात यह है कि समाजके साथ इस येजीदी समाजकी अत्यधिक समानता है । पत्रकार रॉबर्ट स्पेंसरने इस सम्बन्धमें अभ्यासपूर्ण संशोधन किया है ।
१. येजीदी समाज प्राचीन हिन्दू धर्मियोंकी एक खोई हुई आदिवासी जमाति है । उनकी प्रथाएं हिन्दू धर्मकी प्रथा एवं परम्परामें अधिक मात्रामें समानता पाई जाती है ।
२. येजीदियोंके घरोंमें तथा मंदिरोंमे मोरके आकारके दीए पाए जाते हैं । हिन्दू उसमें बाती लगाते हैं, तो येजीदी उसका चुम्बन लेते हैं ।
३. येजीदियोंके मंदिरोंका आकार हिन्दू मंदिरोंके समान ही होता है । उसमें गर्भागार होते हैं ।
४. मोर येजीदीका चिह्न है । मोर पक्षी शिवपुत्र कार्तिकेयका वाहन है तथा वह भारतका राष्ट्रीय पक्षी है । यह केवल दक्षिण एशिया खण्डमें पाया जाता है । इराक, सीरिया इत्यादि देशोंमें मोर नहीं पाए जाते ।
५. येजीदीके पवित्र लतीश मंदिरकी दीवारोंपर साडी पहनी हुई महिलाका भित्तिचित्र पाया जाता है । साडी यह भारतका सर्वमान्य वेश है ।
६. येजीदियोंके पवित्र लतीश मंदिरके प्रवेशद्वारपर नागका चिह्न है । इस क्षेत्रके किसी भी प्राचीन संस्कृतिके मंदिरमें नागका चिह्न नहीं है ।
७. येजीदियोंके सूर्यकी २१ किरणें हैं । २१ यह अंक हिन्दू धर्ममें पवित्र माना जाता है । उदाहरणार्थ गणपतिको २१ मोदक इत्यादि ।
८. येजीदियोंके विवाह सम्बन्ध उनके ही मुरीद, शेख, पीर इन जातियोंमें किए जाते हैं । जातिके बाहर नहीं होते । हिन्दू समाजमें भी यही पद्धति है । कदाचित येजीदी समाजमें भी गोत्रादि रूढि प्रचलित होंगी ।
९. येजीदियोंके घरोंमें आरतीकी थाली पायी जाती है । इस थालीसे हिन्दू भी देवताओंकी आरती करते हैं ।
१०. येजीदियोंको पुर्नजन्मपर विश्वास है ।
११. येजीदी हिन्दुओंके अनुसार सुंता नहीं करते । सुंता न करना यह प्रथा मध्य पूर्व एशियामें नहीं पाई जाती ।
१२. येजीदियोंकी देवताको प्रार्थना करनेकी पद्धति हिन्दू धर्ममें स्थित नमस्कारके समान ही है । साथ ही येजीदी प्रातः तथा सायंकालके समय सूर्यकी ओर मुंह कर नमस्कार एवं प्रार्थना करते हैं । हिन्दुओंमें भी उगते तथा डूबते सूर्यको इसी पद्धतिसे करते हैं ।
१३. येजीदी मंदिरमें प्रार्थना करते समय बिंदी, कुमकुम धारण करते हैं । हिन्दू धर्ममें भी ऐसी पद्धति प्राचीन कालसे है ।
१४. किसी भी मंगल समयपर दीए जलानेकी पद्धति येजीदियोंमें हैं ।
१५. येजीदी पुरुष मंदिरमें अग्नि जलाकर मेलेक तौस नामकी पूजा करते हैं । यह हिन्दुओंके यज्ञानुसार है ।
१६. येजीदियोंके बर्तनोंपर त्रिशुलका चिह्न होता है । उनके वाद्य भी ढोल एवं ताशानुसार होते हैं । सूर्यकी पूजा करनेकी पद्धति भी हिन्दुओंके समान ही है ।
इसके आगे भी रॉबर्ट स्पेंसरने उनका संशोधन आरम्भ ही रखा है ।
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात