श्री. जितेंद्र आव्हाड का ‘संविधानद्रोह’ !
मुंबई : डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने देश को दिए हुए ‘संविधान’ में ही ‘धर्म-स्वातंत्र्य, प्रचार-स्वातंत्र्य एवं विचार-स्वातंत्र्य’ प्रदान किये गये हैं ! डॉ. आंबेडकर का नाम लेनवाले ‘आदर्श घोटाला’ में सम्मिलित श्री. जितेंद्र आव्हाड को कदाचित यह जानकारी ना हो !
डॉ. आंबेडकर ने ‘मनुस्मृति’ का प्रतिकात्मक रूप में दहन किया था; किंतु वही बाबासाहेब ने २४ फरवरी १९४९ को संविधान निर्मिती सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि, जिन १३७ ऋषी-मुनियोंने स्मृतियां लिखी हैं, उसमें मैने उल्लेख की हुई ‘याज्ञवल्क्य’ एवं ‘मनु’ यह दोनों ‘स्मृति’ उच्च स्तर की हैं !
ऐसा होते हुए भी बिना किसी कारण ‘मनु-स्मृति’ पर प्रतिबंध है, ऐसा झूठ बताकर श्री. आव्हाड, जिन दुकानों में वह बिक्री के लिए होंगी, उन दुकानोंकी तोडफोड करेंगे, यह धमकी की भाषा बोल रहे हैं, क्या यही उनका ‘गांधीवाद’ है ?
वास्तव में ऐसी धमकी दे कर श्री. आव्हाड ने संविधानद्वारा दिए गए ‘लेखन-स्वातंत्र्य’ पर आंच तो लाई है ही; साथ ही, आतंकवादी इशरत जहां को ‘शहीद’ कहकर संविधान से ‘द्रोह’ भी किया है, ऐसा स्पष्ट मत, सनातन संस्था के प्रवक्ता श्री. अभय वर्तक ने एक प्रसिद्धि पत्रकद्वारा व्यक्त किया है !
बिना पढें, समझें ‘मनुस्मृति’ पर टीका-टिप्पणी करना अविवेक है !
महिलाओंके अधिकारों के संदर्भ में ‘मनुस्मृति’ ने महिलाओंको सबसे पहले संपत्ति में चौथा हिस्सा दिया है, इसकी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने प्रशंसा भी की है !
केवल ‘जातिवादी विचारधारा’ समाज में बोनेवाले श्री. आव्हाड को ‘मनु’ ब्राह्मण नहीं था, क्या यह ज्ञात है ? ‘मनु’ इक्ष्वाकु वंश का राजा था। वेदाध्ययनद्वारा ‘कानून एवं न्यायव्यवस्था’ के संदर्भ में ‘आदर्श’ कैसे हों, इसके लिए उसने ‘मनुस्मृति’ यह ग्रंथ लिखा था।
अंग्रेजोंने उसका अयोग्य अनुवाद फैलाकर भारत में ‘जातिवाद’ उत्पन्न करने के प्रयास किए तथा श्री. आव्हाड जैसे व्यक्ति ‘यह प्रयास’ कैसे सफल हुए, यही दर्शाते हैं !
जिस देश में ‘भारत का विनाश’ और ‘पाकिस्तान झिंदाबाद’ कहना ‘अभिव्यक्ति’ की स्वतंत्रता समझी जाती है, क्या, उस देश में ‘मनुस्मृति’ की बिक्री करना तथा उसे पढना, उस ‘अभिव्यक्ति’ की स्वतंत्रता में नहीं बैठता ? यह सनातन संस्था के मन में आया हुआ प्रश्न है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात