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हिन्दुओ, पाश्चात्योंको महत्त्व देने की अपेक्षा सदैव अपनी महान परंपरा का अभिमान करें !
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क्या कभी भारतीय वैज्ञानिक ऐसा संशोधन करते हैं ?
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हिन्दुओंके देवताओंपर टिप्पणी करनेवाले, क्या अब इस पर बोलेंगे ?
सर्न (स्वित्जरलैंड) : ‘विश्व’ की उत्पत्ति भगवान शिव के तांडवनृत्य से होने की संभावना है। स्वित्जरलैंड की प्रयोगशाला ने यह अनुमान लगाया है तथा उसी दिशा में उनके अभ्यास भी चल रहे हैं !
यहां के वैज्ञानिक श्री. फ्रिजोफ काप्रा ने इन बातोंपर प्रकाश डालते हुए बताया कि ….
१. ‘विश्व’ की उत्पत्ति के संदर्भ में आधुनिक भौतिकशास्त्र की संकल्पना तथा प्राचीन हिन्दू तत्त्वज्ञान की संकल्पना में अत्यधिक समानता है ! साथ ही प्राचीन हिन्दू तत्त्वज्ञान की यह संकल्पना आधुनिक विज्ञान के लिए दिशादर्शक सिद्ध हो रही है। (प्राचीन हिन्दू तत्त्वज्ञान परिपूर्ण होने के कारण पाश्चात्त्य वैज्ञानिक जिज्ञासा से उसका अभ्यास करते हैं, किंतु भारत के तथाकथित स्वाभिमानशून्य बुद्धिवादी इस पर उपहासपूर्ण टिप्पणी कर ‘दिया तले अंधेरा’, कहावत सार्थ करते हैं ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात)
२. भगवान शिव का तांडव अत्यंत गतिशील नृत्य है। इस नृत्य से सृष्टि अर्थात विश्व की उत्पत्ति तथा नाश होता है तथा इस नाश में ही नई सृष्टि के बीज होते हैं !
३. धार्मिक संकल्पना यह है कि, उत्पत्ति एवं नाश के बीच का काल स्थिति अर्थात जीवन है !
४. वैज्ञानिक संकल्पना भी साधारणरूप से यही है। अणु जिन कणोंसे उत्पन्न होता है, उन सूक्ष्मातिसूक्ष्म कणोंकी सृष्टि ऊर्जानृत्य से ही हुई है। इन्हें ही ‘देवकण’ संबोधित किया गया है। वर्तमान में इन देवकणोंका अभ्यास कार्य चल रहा है।
५. इस प्रयोगशाला में संशोधन के ‘प्रेरणास्रोत’ अर्थात तांडव नृत्य करनेवाली शिवप्रतिमा की स्थापना की गई है। यह प्रतिमा २ मीटर ऊंची है। श्री. काप्रा के कथनानुसार यह प्रतिमा विश्व का जन्म, उसकी धारणा तथा अंत का प्रतीक है !
६. प्रयोगशाला के अन्य वैज्ञानिकोंने भी श्री. काप्रा के इस मत से सहमति प्रदर्शित की है !
स्त्रोत : दैनिक सनातन प्रभात